सऊदी अरब के तेल शोधक कारखाने पर हुए ड्रोन हमलों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 20 फीसदी तक का उछाल आ गया.
बाजार के कुछ स्थिर होने के बावजूद अभी भी दाम 2008 के उछाल से ऊपर है. इस घटना से सऊदी अरब का करीब 50 फीसदी निर्यात प्रभावित हुआ है. आपूर्ति में कमी और बाजार में उथल-पुथल का स्तर 1979 में ईरानी क्रांति तथा 1990 में इराक के कुवैत पर हमले के समय से भी अधिक गंभीर है.
इसका असर सोने तथा अनेक मुद्राओं की कीमत पर भी पड़ा है. सऊदी अरब को ऐतिहासिक तौर पर तेल का टिकाऊ स्रोत माना जाता रहा है, पर इन हमलों ने इस भरोसे को हिला दिया है. कच्चे तेल की आपूर्ति को सुरक्षित करने, कीमत तय करने के तरीकों में बदलाव करने तथा बाजार में संतुलन बनाने जैसे पहलुओं पर इस घटना का बहुत प्रभाव पड़ेगा, परंतु सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन ड्रोन हमलों से हिंसा और तनाव से ग्रस्त मध्य-पूर्व में अस्थिरता का नया सिलसिला शुरू हो सकता है.
हमलों की जिम्मेदारी यमन के हौदी लड़ाकों ने ली है, जिन्हें ईरान का समर्थन प्राप्त है. इन विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात कई सालों से मोर्चा खोले हुए हैं. ऐसा भी संदेह जताया जा रहा है कि ये हमले सीधी तौर पर ईरान द्वारा अंजाम दिये गये हैं. यमन के अलावा सीरिया में भी सऊदी अरब और ईरान छद्म युद्ध लड़ रहे हैं.
इस्राइल और ईरान के बीच भी तनातनी गंभीर है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वे सऊदी अरब की जांच का इंतजार कर रहे हैं और इन हमलों का जवाब देने के लिए तैयार हैं. ईरान को परोक्ष रूप से जिम्मेदार मानते हुए अमेरिकी विदेश सचिव माइक पॉप्म्पियो ने भी कहा है कि पिछले कुछ समय से सऊदी अरब पर हुए सौ हमले ईरान ने किये हैं. इस घटना ने परमाणु कार्यक्रम और आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत की बेहद कमजोर उम्मीद पर भी पानी फेर दिया है.
यह स्थिति भारत जैसे बड़े तेल आयातक देश के लिए भी चिंता का कारण है. तेल की कीमतें बढ़ने से हमारी अर्थव्यवस्था पर दबाव भी बढ़ेगा, जो पहले से ही अनेक चुनौतियों से जूझ रही है. इससे व्यापार घाटे में बढ़ोतरी होगी तथा डॉलर महंगा होने से विदेशी मुद्रा भंडार भी प्रभावित हो सकता है. कच्चे तेल के दाम में एक डॉलर की बढ़त हमारे आयात खर्च में करीब 10,700 करोड़ का इजाफा कर सकती है.
यदि हालात बिगड़ते हैं, तो भारत में बड़े स्तर पर निवेश की सऊदी तेल कंपनी अरामको की योजनाओं पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है. सऊदी अरब भारत के मुख्य तेल आपूर्तिकर्ताओं में है ही, साथ ही ईरान और इस्राइल समेत इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ भी हमारे अच्छे व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध हैं. ऐसे में व्यापारिक और राजनीतिक स्तर पर भारत को सावधानी बरतने की जरूरत है.