क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
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बचपन से जंगल की कहानियां सुनते आये हैं. वानप्रस्थ में राजाओं तक को जंगल में जाना पड़ता था. जब राजा किसी से नाराज हो जाता था, तो उसे जंगल में भेज दिया जाता था. जिम कार्बेट ने किस तरह से खूंखार जानवरों के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलायी थी, यह कथाएं भी हम जानते ही हैं. अमेजॉन के अजाने जंगलों की कथाएं हम सुनते ही रहे हैं. और टीवी पर देखते भी रहे हैं.
जंगल में तरह-तरह के फल-फूल और पंछी तो होते ही हैं, पर वे एक पहेली की तरह भी होते हैं. हमारी पीढ़ी ने जंगलों को बहुत कम देखा है और हमसे अगली पीढ़ियों ने सिर्फ जंगल की कथाएं ही सुनी हैं. यह सुन कर दिल टूटता है कि लगातार जंगल कम होते जा रहे हैं. एक दिन ऐसा आ सकता है, जब जंगलों का कहीं नामोनिशान न बचे. इसके अलावा शहरीकरण की सभ्यता कुछ ऐसी भी है कि अपने से इतर सबको असभ्य मानती है. किसी को जंगली कहने में फख्र महसूस करती है.
मेरे मन में भी अरसे से जंगल देखने की इच्छा रही है. यह अवसर स्विट्जरलैंड में जाकर मिला है. यहां घर के पास ही घने-पेड़ पौधों से भरा हरा-भरा जंगल है. नदी भी बहती है. रास्ता चलते इसकी कल-कल सुनायी देती है.
इस जंगल में मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए बहुत-सी चीजें गढ़ी हैं. जैसे कि घुमावदार पक्की सड़क जिस पर आराम से चला जा सकता है. साइकिल चलायी जा सकती है. हर उम्र के स्त्री, पुरुष, बच्चे दौड़ते दिखायी देते हैं. उनके साथ उनके कुत्ते भी दौड़ते हैं.
यहां जंगल के भीतर तरह-तरह के व्यायाम करने के उपकरण और छोटे-मोटे जिम मौजूद हैं. आप लटक सकते हैं, कूद सकते हैं, झूल सकते हैं, और बहुत पतली बार पर चलने का अभ्यास कर सकते हैं. घने पेड़ों के बीच चिड़ियों की आवाज सुनायी देती है.
अपने आस-पास मनुष्यों को देख कर वे चुप भी हो जाती हैं, जैसे कि वे जायजा ले रही हों कि उनके लिए कोई खतरा तो नहीं है. ऊंचे, घने, और मोटे तने वाले पेड़ों को देख कर पता चलता है कि वे बहुत पुराने होंगे. पेड़ों का भी इतिहास होता है. यह इतिहास उनके तनों, टहनियों और शाखाओं में ही लिखा होता है.
जंगल में तरह-तरह के फल लगे हैं. यहां इन्हें तोड़ कर खाने का रिवाज नहीं है. जबकि हम जैसे भारत से आये लोग इन रसीले फलों को देखकर ललचाते हैं. पेड़ पर लगा फल तोड़ कर खाने, उसकी खुशबू और स्वाद का अलग ही आनंद है. मना करने पर भी नहीं मानते. आड़ू, सेब, ब्लैकबेरी अपने असली रंग और स्वाद में मौजूद हैं. इन तक न तो कोई कीटनाशक पहुंचा है, न ही इन्हें किसी रसायन इस्तेमाल करके पकाया गया है.
यह पूछने पर कि क्या यहां जंगली जानवर हैं, तो पता चलता है कि लोमड़ी और खरगोश तो दिखते हैं. बाकी मनुष्यों की आवाजाही है, इसलिए खतरनाक जंगली जानवर यहां नहीं हैं. लौटते हुए पत्तों के बीच सूरज की रोशनी के टुकड़े जगह-जगह बिखर रहे हैं. चिड़ियों के कुनबे आसमान में उड़ते हुए दिखते हैं. जैसे वे किसी लंबी यात्रा पर निकले हों.