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सही है जाधव के पक्ष में फैसला

प्रो सतीश कुमार अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार singhsatis@gmail.com पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में भारत को बड़ी कामयाबी मिली. सदन में विदेश मंत्री ने इस कामयाबी को बखूबी बयान किया. हर दल ने इसके लिए भारतीय टीम की सराहना की. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आइसीजे) ने सुनवाई करते हुए […]

प्रो सतीश कुमार
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
singhsatis@gmail.com
पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में भारत को बड़ी कामयाबी मिली. सदन में विदेश मंत्री ने इस कामयाबी को बखूबी बयान किया. हर दल ने इसके लिए भारतीय टीम की सराहना की.
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आइसीजे) ने सुनवाई करते हुए जाधव की फांसी की सजा पर रोक लगा दी. सोलह जजों की बेंच जिसमें अलग-अलग देशों के प्रतिनिधि थे, सबने भारत के पक्ष में निर्णय लिया. यहां तक कि चीन ने भी भारत के पक्ष में वोटिंग की. केवल पाकिस्तानी प्रतिनिधि अलग रहे. इस पूरे घटनाक्रम को समझने के लिए चार बातों को जानना जरूरी है.
पहला, कुलभूषण जाधव भारत के नागरिक हैं, जो 2001 में नेवी से पदमुक्त होने के उपरांत अपने व्यवसाय में सक्रिय थे. उनका अक्सर ईरान आना-जाना होता था. तीन मार्च, 2016 को पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान से उन्हें पकड़ा और उन पर जासूसी और आतंकवाद जैसे गंभीर आरोप लगा दिये.
उसके बाद पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुना दी. भारत सरकार को अपने नागरिक के अपहरण की सूचना 25 मार्च को मिली. भारत ने तहकीकात की, तो पता चला की पाकिस्तान की दलील थोथी है. पाकिस्तान की सैन्य अदालत कंगारू न्यायालय से भी बदतर है, जहां किसी नियम-कानून और तर्क के लिए कोई स्थान नहीं होता.
यह व्यवस्था पूरी तरह से बंद कमरे में सेना के आला अफसरों द्वारा चालायी जाती है, जहां घोर अन्याय के सिवा कुछ भी नहीं है. साक्ष्य की कमी को देखते हुए भारत ने कूटनीतिक सहायता की मांग रखी, जो पाकिस्तान ने नहीं दी. भारत ने पाकिस्तान को यह हिदायत दी कि सुनवाई नागरिक कोर्ट में की जानी चाहिए. विएना समझौता- 1963 के अंतर्गत कानूनी प्रक्रिया को पूरा किया जाना चाहिए, जैसा कि भारत ने कसाब के साथ किया था. लेकिन पाकिस्तान अपनी दलील पर अड़ा रहा कि उसकी सैन्य अदालत निष्पक्ष और मुस्तैद है. पाकिस्तान ने कहा कि जाधव ने खुद कबूल किया है कि वह पाकिस्तान में भारतीय जासूस के तौर पर काम कर रहा था.
अब सवाल यह उठता है कि आइसीजे का फैसला किसी देश पर कितना बाध्यकारी होता है? संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश आइसीजे के उस फैसले को मानेंगे, जिसमें वे स्वयं पक्षकार हैं. वह फैसला अंतिम होगा और उस पर कोई अपील भी नहीं सुनी जायेगी.
ऐसे मामले भी आ चुके हैं, जब आइसीजे के आदेश का पालन नहीं किया गया. सबसे प्रसिद्ध मामला 1986 का है. उस समय निकारागुआ ने अमेरिका के खिलाफ शिकायत की थी कि एक विद्रोही संगठन की मदद करते हुए अमेरिका ने उसके विरुद्ध छद्म युद्ध छेड़ा है.
निकारागुआ के पक्ष में फैसला देते हुए आइसीजे ने अमेरिका को क्षतिपूर्ति देने का फैसला सुनाया था. लेकिन, अमेरिका ने आइसीजे के अधिकारक्षेत्र से खुद को बाहर कर लिया. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक, सुरक्षा परिषद् को अदालत का फैसला लागू करवाने का अधिकार है, लेकिन तब अमेरिका ने वीटो लगाते हुए फैसला मानने से इनकार कर दिया था.
जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप में अप्रैल, 2017 में फांसी की सजा सुनायी थी. भारत इस मामले को आइसीजे में ले गया था, जहां यह मामला तकरीबन दो वर्ष दो महीने तक चला.
इस बीच भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में काफी तल्खी आने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह मामला काफी उछला. भारत ने जाधव के खिलाफ पाकिस्तान में दायर मामले को निरस्त करने और उन्हें पाकिस्तान की जेल से रिहा करवाने की मांग भी की थी, जिसे आइसीजे ने खारिज कर दिया है.
संकट अभी टला नहीं है. भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध आतंक को लेकर ही खराब हुए हैं. जाधव पाकिस्तान के लिए एक ऐसी कड़ी बन रहे थे, जिसके बुते पर वह भारत को बदनाम करने की कोशिश में था, ताकि दुनिया भारत को मुख्य दोषी मान ले. लेकिन, भारत की तरफ से प्रमुख वकील हरीश साल्वे ने पाकिस्तान की हर उस कड़ी को तोड़ दिया, जिसके आधार पर वह कुलभूषण जाधव को दोषी मान रहा था.
बहरहाल! कानूनी और कूटनीतिक जीत के बाद मुख्य सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान यहीं रुक जायेगा या इसको पुनः सुरक्षा परिषद् में ले जाने की कोशिश करेगा, जहां पर उसे चीन की मदद मिलने की उम्मीद होगी. लेकिन, इस निर्णय में चीन ने भी भारत का साथ दिया है, इसलिए वह अपनी ही दलील को पुनः झुठला नहीं सकता. यहां दूसरा तथ्य और बड़ा है.
विगत में अमेरिका द्वारा आइसीजे के निर्णय को नहीं मानाने का उदाहरण है. लेकिन यह भी सच है कि पाकिस्तान अमेरिका नहीं है और न ही भारत निकारागुआ है. भारत की वर्तमान सरकार अपने नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. प्रधामंत्री मोदी ऐसा कई बार कह चुके हैं.
अगर पाकिस्तान कुलभूषण जाधव के मुद्दे को और तूल देता है, तो भारत-पाकिस्तान संबंध और खराब होंगे. अगर अंतरराष्ट्रीय नियमों को पाकिस्तान द्वारा ताक पर रखा जाता है, तो दुनिया में पाकिस्तान की ही फजीहत होगी. इसलिए पाकिस्तान के लिए बेहतर होगा कि वह जाधव को रिहाई देकर संबंधों को और तल्ख होने से बचा ले. दोनों देश के लिए यह एक अवसर भी बन सकता है, जहां से रुका हुआ संबंध हिचकोले खाकर आगे बढ़ने लगेगा.

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