एक ही विद्यालय में एक ही छत के नीचे पढ़ाने वाले तरह-तरह के शिक्षकों को कई वर्गों में विभाजित कर सरकार ने बहुत ही गलत काम किया है, जिसका दुष्परिणाम होता है कि शिक्षकों का मनोबल टूटता है. बात सिर्फ पुराने वेतनमान और नियोजित शिक्षकों की ही नहीं है. नियोजित शिक्षकों को भी तरह-तरह के शिक्षकों में वर्गीकृत कर दिया गया है.
कोई प्रशिक्षित तो कोई अप्रशिक्षित. कोई प्रशिक्षित होकर भी दो साल तक अप्रशिक्षित का वेतन पाता है. कोई बेरोजगारी के मारे अतिथि शिक्षक बन जाता है, लेकिन वेतन से संतुष्ट नहीं हो पाता है, क्योंकि बच्चे को पढ़ायेंगे तभी उनका वेतन बनेगा. लेकिन, सवाल यह है कि किसी भी कारण से बच्चा विद्यालय यदि नहीं आता है तो उस अतिथि शिक्षक का जीविकोपार्जन कैसे होगा.
मिथिलेश कुमार, इ-मेल से