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बढ़ती बेरोजगारी
भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है, पर रोजगार के मोर्चे पर स्थिति उत्साहवर्द्धक नहीं है. अंतरराष्ट्रीय आर्थिकी की उथल-पुथल और घरेलू बाजार की मुश्किलों के बावजूद देश में निवेश, उत्पादन और उपभोग का स्तर सकारात्मक है. ऐसे में बेरोजगारी में कमी न होना चिंताजनक है. हालिया आंकड़े इंगित करते हैं कि बेरोजगारी […]
भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है, पर रोजगार के मोर्चे पर स्थिति उत्साहवर्द्धक नहीं है. अंतरराष्ट्रीय आर्थिकी की उथल-पुथल और घरेलू बाजार की मुश्किलों के बावजूद देश में निवेश, उत्पादन और उपभोग का स्तर सकारात्मक है. ऐसे में बेरोजगारी में कमी न होना चिंताजनक है. हालिया आंकड़े इंगित करते हैं कि बेरोजगारी दर पिछले 29 महीनों में अपने निचले स्तर पर है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक साल में नौकरीपेशा लोगों की संख्या में लगभग 60 लाख की गिरावट आयी है. उल्लेखनीय है कि नौकरी की चाह रखनेवालों की संख्या में कमी देखी जा रही है, फिर भी बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी हो रही है. हमारे देश में रोजगार सृजन मुख्यतः शहरों में केंद्रित रहा है, जो श्रम बाजार में आनेवाले नये लोगों की संख्या का बहुत छोटा हिस्सा है.
देश में निजी क्षेत्र की खपत क्षमता कम है और फिलहाल विनिर्माण-क्षेत्र भी सीमित हो रहा है. इस कारण निजी क्षेत्र में नया पूंजी निवेश भी कमतर है. ग्रामीण भारत में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए व्यापक सुधारों व प्रयासों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जाती रही है. देश की 60 फीसदी से अधिक आबादी ग्रामीण इलाकों में बसती है और कामकाज की तलाश में शहरों की तरफ रुख करना उनकी मजबूरी होती है. कृषि संकट कई सालों से बरकरार है.
ऐसे में गांवों में रोजगार और आमदनी के लिए कदम उठाया जाना चाहिए. आनेवाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उन्नत तकनीकें कार्य क्षेत्रों में आम हो जायेंगी और प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी. इन बदलावों के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था का तालमेल बिठाना बहुत जरूरी है.
हमारे यहां से निर्यातित वस्तुओं पर शुल्क को लेकर अमेरिका का रवैया और चीन में उत्पादित वस्तुओं की बढ़ती आमद से हमारे लघु व मध्यम उद्योग जगत पर दबाव बढ़ेगा. स्वाभाविक रूप से ये कारक रोजगार पर नकारात्कामक प्रभाव डालेंगे. भारत में अभी छह से लेकर 16 साल की उम्र के 30 करोड़ बच्चे हैं, जिन्हें निकट भविष्य में काम की जरूरत होगी, जब वे अपनी पढ़ाई पूरी कर लेंगे.
इस संबंध में ठोस तैयारी के लिए स्कूली स्तर से ही व्यावसायिक प्रशिक्षण पर जोर दिया जाना चाहिए. इसके लिए ‘कौशल भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं में व्यापक तेजी लानी होगी. रोजगार और उत्पादन में सीधा संबंध है. घरेलू मांग पूरी करने और निर्यात बढ़ाने के लिए उत्पादन पर जोर देने की दरकार है.
इसके लिए रोजगार और निवेश चाहिए. जब लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी, तो खपत में भी इजाफा होगा. उम्मीद है कि बैंकों को मजबूत करने, छोटे उद्यमों के लिए पूंजी उपलब्ध कराने तथा बड़ी परियोजनाओं को पूरा करने की पहलें जल्दी ही बेरोजगारी की बढ़त पर अंकुश लगाने में मददगार होंगी.
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