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क्या इन प्रतिभाओं का साथ सरकार देगी?

।। अनुज सिन्हा ।। वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर सवा तीन करोड़ की आबादीवाले झारखंड से अगर 20 से ज्यादा लड़के-लड़कियां सिविल सेवा परीक्षा में निकले हैं तो यह बड़ी उपलब्धि है. पिछड़े और नक्सल प्रभावित जिले पलामू के रचित राज ने देश भर में तीसरा स्थान ला कर साबित कर दिया कि प्रतिभाओं को रोका […]

।। अनुज सिन्हा ।।

वरिष्ठ संपादक

प्रभात खबर

सवा तीन करोड़ की आबादीवाले झारखंड से अगर 20 से ज्यादा लड़के-लड़कियां सिविल सेवा परीक्षा में निकले हैं तो यह बड़ी उपलब्धि है. पिछड़े और नक्सल प्रभावित जिले पलामू के रचित राज ने देश भर में तीसरा स्थान ला कर साबित कर दिया कि प्रतिभाओं को रोका नहीं जा सकता.

यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा का जब दो दिन पहले रिजल्ट निकला तो उसमें बिहार व झारखंड के लड़के-लड़कियों की संख्या अच्छी खासी थी. बिहार में पहले से सिविल सेवा का क्रेज रहा है. हर साल वहां से ठीकठाक संख्या में आइएएस-आइपीएस बनते रहे हैं. कुछ ऐसे भी गांव हैं जहां से कई आइएएस निकल चुके हैं. देश में नौकरशाही के शीर्ष पर बिहार के लोग रहे हैं.

अब झारखंड भी उसी राह पर है. यहां पहले आइएएस-आइपीएस बनने का बहुत ज्यादा क्रेज नहीं था. लेकिन अब यह क्रेज बढ़ा है. इसका असर भी दिखा है. ऐसे तो इसी क्षेत्र से सुनील वर्णवाल ने 1997 में सिविल सेवा परीक्षा में देश में पहला स्थान लाकर यह संदेश दे दिया था कि इस क्षेत्र में प्रतिभाएं हैं. इसे कम मत आंकिए.

इस बार झारखंड ने सबको चौंका दिया है. सवा तीन करोड़ की आबादीवाले झारखंड से अगर 20 से ज्यादा लड़के-लड़कियां सिविल सेवा परीक्षा में निकले हैं तो यह बड़ी उपलब्धि है. पलामू, राज्य के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में माना जाता है. नक्सल प्रभावित है. शिक्षा का बुरा हाल है. लेकिन इसी पलामू के रचित राज ने देश भर में तीसरा स्थान ला कर साबित कर दिया कि प्रतिभाओं को रोका नहीं जा सकता. वो दिन गये जब बड़े शहरों से ही आइएएस-आइपीएस निकलते थे.

रांची जिले के बुंडू को देखिए. एक छोटी जगह (भले ही अनुमंडल बन गया हो), जहां नक्सलियों के खौफ का साया हरदम रहता था. उसी बुंडू की सुजाता वीणापाणि ने सिविल सेवा परीक्षा में 214वां स्थान पाया है. राजधनवार और चतरा से आइएएस बन रहे हैं. यह बड़ा बदलाव है. राजधनवार, बुंडू, चतरा, पलामू में रांची की तुलना में कुछ भी सुविधा नहीं है. प्रारंभिक पढ़ाई तो ये बच्चे अपने गांव या छोटे-छोटे शहरों में ही करते हैं. फिर आगे की पढ़ाई के लिए रांची या दिल्ली जाते हैं.

इस बार सिविल सेवा परीक्षा में सफल होनेवालों में अधिकतर लड़के-लड़कियों की पृष्ठभूमि इंजीनियरिंग की रहा है. सच है कि गरीब से गरीब मां-बाप भी जमीन बेच कर, रात-दिन परिश्रम कर अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा देना चाह रहा है, इंजीनियर बनाना चाह रहा है. यहां के बच्चों में प्रतिभा पहले भी थी, लेकिन अभिभावक उतने सक्रिय नहीं थे जितने आज हैं. लड़के-लड़कियां खुद अपने कैरियर के प्रति सचेत हैं. आज अगर झारखंड के लड़के-लड़कियां अच्छा कर रहे हैं तो उनका अपना प्रयास है, उनकी अपनी मेहनत है, उनके अभिभावकों का योगदान है. सरकार कहां कुछ कर पा रही है? बारहवीं पास करने के बाद इस राज्य में कहां संभावनाएं हैं? कुछ कॉलेजों को अगर अपवाद मानें तो अधिकतर कॉलेजों में पढ़ाई का माहौल नहीं है. इसलिए लोग आगे की पढ़ाई के लिए, कोचिंग के लिए दिल्ली भागते हैं.

अगर झारखंड में पढ़ाई की सुविधा ठीक कर दी जाये, माहौल मिले तो सिविल सेवा हो या आइआइटी की परीक्षा, यहां के बच्चे और बेहतर कर सकते हैं. अभी राज्य का हाल यह है कि पढ़ने के समय बिजली नहीं रहती, पढ़ाई का समय काट कर पानी ढोना पड़ता है, स्कूल में बेहतर लाइब्रेरी नहीं है, शिक्षकों के पद खाली हैं. जब सुविधा न होने के बावजूद ऐसा नतीजा आ रहा है, तो सोचिए अगर सुविधा मिलने लगे तो झारखंड के बच्चे क्या कमाल दिखायेंगे. राज्य में कई अच्छे निजी स्कूल हैं. हाल में 10वीं और 12 वीं की परीक्षा में झारखंड में कई बच्चे देश भर में पहला स्थान लाये हैं. ऐसे बच्चे झारखंड के अनमोल रत्न हैं, भविष्य के आइआइटीयन हैं, भविष्य के आइएएस-आइपीएस हैं. इन्हें हर हाल में सुविधा मिलनी चाहिए.

जो बच्चे अच्छा कर रहे हैं, अगर उनके अभिभावक के पास पैसा है, तो वे दिल्ली में पढ़ा कर बच्चों को तराश सकते हैं, उनका भविष्य बना सकते हैं. लेकिन जिनके पास पैसे नहीं हैं, वे क्या करेंगे? कहीं ऐसा न हो कि ऐसी प्रतिभाएं दब कर रह जायें. इसलिए झारखंड सरकार सुविधाएं बढ़ाये, पढ़ाई का माहौल दे. बाकी का काम यहां के प्रतिभावान बच्चे करके दिखा देंगे.

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