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#मी टू : आधी हकीकत आधा फसाना
मी टू कैंपेन एक आंदोलन के रूप में पूरी दुनिया में फैल चुका है. महिलाओं द्वारा अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले को बताने का यह एक प्लेटफार्म मुहैया करा रहा है. यौन उत्पीड़न के मामला बॉलीवुड, मीडिया, राजनीति, खेल, स्टार्टअप्स, कला एवं साहित्य, कॉमेडी, यू ट्यूब और इन्वेस्टमेंट कंपनी तक फैल चुका है. […]
मी टू कैंपेन एक आंदोलन के रूप में पूरी दुनिया में फैल चुका है. महिलाओं द्वारा अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले को बताने का यह एक प्लेटफार्म मुहैया करा रहा है. यौन उत्पीड़न के मामला बॉलीवुड, मीडिया, राजनीति, खेल, स्टार्टअप्स, कला एवं साहित्य, कॉमेडी, यू ट्यूब और इन्वेस्टमेंट कंपनी तक फैल चुका है. कहां तक यह विस्तार लेगा, कहना मुश्किल है.
इस कैंपेन के फायदे हैं, तो इसके नुकसान भी हैं. जहां इस कैंपेन से शोषण की प्रकृति पर लगाम लगेगा, वहीं इसके दुरुपयोग होने की भी संभावना है. राजनीतिक द्वेष या किसी अनुचित फायदे के लिए भी इसे पुरुषों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
इतनी भारी मात्रा में इस कैंपेन को बढ़ावा मिला है कि इसकी हकीकत को समझना मुश्किल हो गया है. इसलिए इस दिशा में बहुत ही सोच समझकर कदम उठाने की जरूरत है, ताकि बेवजह किसी का कैरियर बर्बाद न हो या मर्यादा की क्षति न हो.
गुलाम गौस आसवी, धनबाद
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