राज्य के हजारों पारा शिक्षक वर्षों से आंदोलनरत हैं. हाल के दिनों में उनका गुस्सा परवान चढ़ा हुआ है. हो भी क्यों नहीं, पिछले 17-18 वर्षों से वे सुदूर गावों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. सर्व शिक्षा अभियान के तहत खुले विद्यालय आज भवन एवं संसाधन युक्त हो गये हैं, पर कुछ साल पहले तक पारा शिक्षक बिना संसाधन के पेड़ के नीचे बच्चों को बैठाकर अल्प मानदेय में पढ़ाते रहे हैं.
इस उम्मीद के साथ कि आनेवाले दिनों में सरकार जरूर नजरें इनायत करेगी. अधिकतर पारा शिक्षक किसी अन्य नौकरियों में जाने की उम्र भी गंवा चुके हैं. पारा शिक्षकों की सभी मांगें सरकार अगर पूरी नहीं कर सकती, तो बीच का रास्ता तो जरूर निकालना चाहिए. सरकार इस बात को समझे कि वे बेगाने नहीं हैं बल्कि झारखंड के आदिवासी और मूलवासी हैं. समस्याओं का समाधान नहीं होने से वे हीन भावना के शिकार हो रहे हैं.
युगल किशोर पंडित, ताराटांड़, गिरिडीह