हमारे देश की राजनीति में कितना दोमुंहापन और ढकोसला व्याप्त हो गया है, इसकी रोज-रोज नयी मिसालें पेश की जा रही हैं. आज राजनीति में कोई सिद्धांत नहीं रह गया है. अगर कुछ बची है तो शुद्ध मौकापरस्ती. जाति, धर्म, क्षेत्रीयता की राजनीति करनेवाली पार्टियां सही मौका देख अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए कब पलट जायें, कुछ कहा नहीं जा सकता. ताजा उदाहरण शिवसेना का है.
जो शिवसेना कभी तमिलनाडु के लोगों के खिलाफ, कभी उत्तरप्रदेश के लोगों के खिलाफ, कभी बिहार के लोगों के खिलाफ, कभी बाहर से आये व्यवसायियों के खिलाफ, कभी देश भर के मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने के लिए बदनाम है, देश के लोगों में फूट डालने के लिए बदनाम है, वह जब राष्ट्रीय एकता की बात करती है, तो इनका राष्ट्रप्रेम देख कर आंखों में आंसू आ जाते हैं!
संजय शाह, रांची