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पाकिस्तान में इमरान का अर्थ
तरुण विजय नेता, भाजपा tarunvijay2@yahoo.com पाकिस्तान में चुनाव कुछ ऐसे ही होते हैं, जैसे सहारा के रेगिस्तान में पानी. वहां आज भी भूमि सुधार कानून कभी बने ही नहीं और जमींदारी बनाम साधारण गरीब में बंटा देश बंदूक की प्राथमिक शाला में पल-बढ़कर आज ऐसा मुल्क बन गया है, जहां दुनिया में सबसे बड़ी तादाद […]
तरुण विजय
नेता, भाजपा
tarunvijay2@yahoo.com
पाकिस्तान में चुनाव कुछ ऐसे ही होते हैं, जैसे सहारा के रेगिस्तान में पानी. वहां आज भी भूमि सुधार कानून कभी बने ही नहीं और जमींदारी बनाम साधारण गरीब में बंटा देश बंदूक की प्राथमिक शाला में पल-बढ़कर आज ऐसा मुल्क बन गया है, जहां दुनिया में सबसे बड़ी तादाद में मुसलमान ही गोलियों से मारे जा रहे हैं.
पाकिस्तान में हुकूमत का मतलब है फौज और इस बार के चुनावों में नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टो को हराकर फौज को जिताया है, जिसके उम्मीदवार इमरान खान अब वहां के प्रधानमंत्री पद के रूप में आगामी 11 अगस्त को शपथ लेंगे. इमरान खान क्रिकेट कप्तानी और पठान खानदान की रवायत से संबंध रखते हैं.
इमरान खान की पहली शादी ब्रिटेन के प्रसिद्ध यहूदी परिवार में जैमिमा से हुई थी और हाल ही में उनकी तीसरी शादी हुई है. क्रिकेट में उनकी कप्तानी शानदार रही और पाकिस्तान को उसकी इकलौती विश्व कप विजय उनकी कप्तानी में 1992 में मिली थी. 1996 में उन्होंने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी बनायी और 2002 में पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली के सदस्य बने. इस बीच उन्होंने काफी सामाजिक कार्य भी किये और अपनी मां के नाम पर शौकत खानम मेमोरियल कैंसर अस्पताल भी बनाया.
उन्होंने राजनीति में प्रवेश से पहले सिंधु नदी की महानता और विराटता पर एक शानदार काॅफी टेबल पुस्तक लिखी, जिसमें न्यू याॅर्क टाइम्स के फोटाेग्राफर माइक गोल्ड वाटर ने पाकिस्तान में सिंधु नदी के ओर-छोर तक के शानदार चित्र छापे. इमरान का मानना है कि अगर सिंधु नदी का अर्थ हिंदुस्तान है यानी सिंधु के इलाके को ही हिंदुस्तान कहा जाना है, तो उसका हकदार आज का पाकिस्तान है, यह इंडिया कहा जानेवाला हिंदुस्तान नहीं. जब हम साल 1996-97 में लद्दाख में सिंधु दर्शन आयोजन की कल्पना कर रहे थे, उस समय इमरान खान से मेरा पत्र व्यवहार हुआ था और उन्होंने इस आयोजन के लिए अपनी शुभकामनाएं भी दी थी.
राजनीति में आने के बाद इमरान पूरी तरह सेना और आतंकवादियों के गुटों के साथ हो गये. उन्होंने एक बार भी पाकिस्तान में पल रहे इस्लामी आतंकवाद पर न कोई चिंता जतायी है और न ही उसकी भर्त्सना की है.
वे राजनीति में सेना की दखल के समर्थक नहीं, बल्कि सेना को राजनीति का नियंत्रक मानने से भी आगे बढ़ जाते हैं. इमरान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी पाकिस्तान के पश्चिमी सीमावर्ती प्रांत पख्तूनख्वाह में सरकार बना चुकी है और इस बार के चुनावों में पाकिस्तान की तकदीर का फैसला करनेवाले सबसे महत्वपूर्ण प्रांत पंजाब में भी उन्होंने नवाज शरीफ को मात दी है.
इमरान खान लोगों के सामने अपने ‘नया पाकिस्तान’ नारे को लेकर चलते हैं, जिसमें वे वादा कर रहे हैं कि पाकिस्तान के अमीर-गरीब के लिए एक जैसी शिक्षा-व्यवस्था लागू करेंगे और अमेरिकी छाया में चल रहे आतंकवाद विरोधी मुहिम से पाकिस्तान को मुक्त कर देश में अमन बहाल करेंगे.
उन्होंने बांग्लादेश में 1971 के दौरान पाकिस्तान फौज द्वारा किये गये भयंकर नरसंहार में दोषी पाये गये अपराधियों का बचाव किया और बांग्लादेश में किसी भी नरसंहार में फौज की भागीदारी से इनकार किया. पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ जितनी भी कार्रवाइयां हुई हैं, चाहे वह लाल मस्जिद का घेराव हो या आतंकी ठिकानों पर अमेरिकी हमले हों, इमरान खान से उन सबका विरोध किया है और इस कारण उन्हें ‘तालिबान खान’ भी कहा जाने लगा.
इमरान के प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद वे आंतकवादियों पर कार्रवाई करेंगे, यह सोचना भी गलत होगा, बल्कि आशंका है कि फौज के सहारे और आतंकवादियों की मुबारकबाद से बल पाकर इमरान के शासन में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और घृणा की विचारधारा के प्रसार में बढ़ोतरी होगी.
क्या इमरान के काल में भारत से युद्ध भी हो सकता है? इस बात पर विश्लेषकों के दो मत हैं- इमरान अपनी ताकत और कश्मीर पर अपनी कठोर आतंक समर्थक नीति दिखाने के लिए छिटपुट हमलों में बढ़ोतरी को अनुमति दे सकते हैं, जो किसी एक सीमित संघर्ष में तब्दील हो जाये.
पूर्ण स्तरीय युद्ध के लिए इमरान नाकाफी होंगे. अमेरिका में ट्रंप भी इमरान को ऐसे किसी जोखिम की इजाजत नहीं देंगे और इमरान तो वैसे भी नरेंद्र मोदी से इतने प्रभावित हैं कि वे भारत की बढ़ती ताकत से छेड़छाड़ का कोई खतरा मोल नहीं ले सकते, बल्कि इस बात की संभावना व्यक्त की जा रही है कि इमरान इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने के लिए भारत के साथ संबंध बेहतर बनाने का कोई बड़ा और आश्चर्यजनक कदम उठा सकते हैं.
भारत ने इमरान खान के जीतने पर नपी-तुली और सधी दृष्टि का ही परिचय दिया है. लेकिन, भारत के मीडिया में जिस तरह से पाकिस्तानी चुनावों का असर छाया रहा, उससे जाहिर है कि यहां के सामान्यजन की चीन से बढ़कर पाकिस्तानी घटनाओं में रुचि है. सीमा पर प्रतिदिन का संघर्ष हमारे सैनिकों की शहादतें कश्मीर से लेकर देश के अन्य भागों में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद तथा पाकिस्तान के कारण तीन हजार किलोमीटर से बड़ी सीमा पर निरंतर युद्ध जैसा तनाव भारत को पाकिस्तान के प्रति हमेशा सशंकित ही रखता है.
कश्मीर में महबूबा मुफ्ती जैसी नेता की, जिन्होंने सबसे पहले इमरान को बधाई का ट्वीट किया, दोहरी निष्ठा उनकी प्रश्नांकित राष्ट्रीयता का परिचय देती है. ऐसे में भारत के लिए अपना चौकन्नापन और प्रहारत तैयारियां मजबूत ही रखनी होंगी. इमरान अमन का एलान कतई नहीं हो सकते.
इमरान खान की जीत पर भारत ने स्वागत करते हुए संयत प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जो यह बताती है कि यदि इमरान साथ चलने को तैयार होंगे, तो उन्हें गर्मजोशी भरा ही प्रत्युत्तर मिलेगा. मुझे ऐसा लगता है कि इमरान की ताजपोशी के बाद भारत से युद्ध अथवा संबंध ज्यादा बिगड़ने की भविष्यवाणियां गलत भी सिद्ध हो सकती हैं.
भारत के सामने यह स्पष्ट है कि किसी की मुखौटा सरकार से नहीं, बल्कि शक्ति की नियंत्रक वास्तविक सत्ता से सीधे संबंध रखना है, तो काम सरल हो जाता. इमरान उस सत्ता के प्रवक्ता हैं, इसलिए शक्तिशाली भारत पाक सेना की राजनीतिक सरकार से सरलता से सीधी बात कर सकेगा. आनेवाले समय में उसके वास्तविक तेवर और भारत-पाक संबंधाें के रंग 2019 के चुनावों के बाद निखरकर सामने आयेंगे.
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