10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शिक्षा हर बच्चे का अधिकार

शफक महजबीन टिप्पणीकार बच्चों के अधिकारों के लिए लड़नेवाली पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई कहती हैं- ‘एक बच्चा, एक शिक्षक, एक किताब और एक कलम से बदल सकती है पूरी दुनिया’. कट्टरता के खिलाफ ऐसी विचारधारा रखनेवाली मलाला का आज जन्मदिन है और इसे दुनियाभर में ‘मलाला दिवस’ के नाम से भी जाना जाता है. लड़कियों […]

शफक महजबीन
टिप्पणीकार
बच्चों के अधिकारों के लिए लड़नेवाली पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई कहती हैं- ‘एक बच्चा, एक शिक्षक, एक किताब और एक कलम से बदल सकती है पूरी दुनिया’. कट्टरता के खिलाफ ऐसी विचारधारा रखनेवाली मलाला का आज जन्मदिन है और इसे दुनियाभर में ‘मलाला दिवस’ के नाम से भी जाना जाता है.
लड़कियों की शिक्षा के लिए की गयी उनकी कोशिशों की सराहना करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने उनके सोलहवें जन्मदिन (12 जुलाई, 2013) को हर साल ‘मलाला दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की.
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के स्वात जिले में जियाउद्दीन यूसुफजई और तोर पेकई के घर में 12 जुलाई, 1997 को मलाला का जन्म हुआ. साल 2007 से 2009 तक स्वात पर तालिबान ने कब्जा कर रखा था. तालिबान को लड़कियों का घर से बाहर निकलना, खेलना, पढ़ना और मनोरंजन आदि पसंद नहीं था. उसने इन चीजों पर पाबंदी लगा रखी थी और लड़कियों के स्कूलों को बंद कर दिया था.
मुहल्ले की बदहाली को देखते हुए मलाला ने सिर्फ ग्यारह साल की उम्र में छद्म नाम ‘गुल मकई’ से बीबीसी पर डायरी लिखना शुरू किया और तालिबानियों की ज्यादतियां बताने लगीं. इस तरह वह कट्टरपंथियों की नजर में आ गयीं.
मलाला ने ब्लॉग भी लिखे. उसके बाद मलाला को कट्टरपंथियों की धमकियां मिलने लगीं. आखिरकार, 9 अक्तूबर, 2012 को तालिबानियों ने मलाला पर गोलियां चला दी. उनके सिर में गोली लगी और वह गंभीर रूप से जख्मी हो गयीं. लेकिन, मौत से जंग जीतने के बाद उनके हौसले और बुलंद हो गये.
मलाला को अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले हैं. पाकिस्तान का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार, अंतराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार, 2013 में यूरोपियन यूनियन का सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार, साल 2014 में भारत के कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार वगैरह. अब तक नोबेल पुरस्कार विजेताओं में मलाला सबसे कम उम्र (सिर्फ 17 वर्ष) की नोबेल विजेता हैं.
इस्लाम के पैगम्बर हजरत मुहम्मद (स.अ.स.) कहते हैं कि ‘तुमने अगर एक मर्द को पढ़ाया तो सिर्फ एक इंसान को पढ़ाया, लेकिन एक औरत को पढ़ाया तो एक खानदान को और एक नस्ल को पढ़ाया.’
सच बात है. औरत अपने बच्चों के सबसे ज्यादा करीब होती है. पढ़ी-लिखी मां अपने बच्चे को अच्छे संस्कार सिखायेगी. विडंबना है कि 21वीं शताब्दी में भी हमारे समाज का इतना खराब हाल है कि आज भी कुछ लड़कियों को शिक्षा पाने के लिए तमाम जद्दोजहद करनी पड़ रही है.
ग्यारह साल की उम्र में बच्चे पढ़ाई से दूर भागते हैं. लेकिन इतनी छोटी सी उम्र में मलाला ने जिस तरह कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज उठायी, अपने लेखन के जरिये जागरूकता लाने की कोशिश की और लड़कियों को बिना डर के स्कूल जाने की हिम्मत दी, वह किसी मिसाल से कम नहीं. हर उस जगह पर एक मलाला की जरूरत है, जहां लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता है. क्याेंकि, शिक्षा एक बुनियादी अधिकार है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें