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यूं तो कश्मीर बड़ा मुद्दा ही नहीं

दुर्भाग्य है कि कश्मीरी पंडितों को अपनी पुश्तैनी घर बार छोड़ शरणार्थियों का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है. आतंकवादियों की बर्बरता से भयाक्रांत पंडित अपनी संपत्ति और रोजगार छोड़कर देश के विभिन्न हिस्सों में बस गये हैं. भारत सरकार की विफलता ही है कि जम्मू के नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिल सकी. आजादी […]

दुर्भाग्य है कि कश्मीरी पंडितों को अपनी पुश्तैनी घर बार छोड़ शरणार्थियों का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है. आतंकवादियों की बर्बरता से भयाक्रांत पंडित अपनी संपत्ति और रोजगार छोड़कर देश के विभिन्न हिस्सों में बस गये हैं. भारत सरकार की विफलता ही है कि जम्मू के नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिल सकी. आजादी के सात दशक बाद भी वहां अमन चैन नहीं है.
भारत जैसे संप्रभु राष्ट्र के लिए कश्मीर कोई बड़ा मुद्दा नहीं होना चाहिए था, लेकिन राजनीतिक पार्टियों की तुष्टीकरण नीति ने इसे फलने-फूलने दिया. देश के छोटे से तबके को खुश करने के लिए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ कठोर फैसले लेने से कतराते रहे, जिसका खामियाजा कश्मीरी पंडित सहित जम्मू-कश्मीर के समस्त नागरिकों को चुकाना पड़ रहा है. बेहतर हो कि पीडीपी गठबंधन से बाहर हुई भाजपा सियासत से ऊपर उठकर घाटी में अमन-चैन पुनर्स्थापित करे.
रवि, ई-मेल से.

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