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आर्थिक मोर्चे पर चिंता

अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें उछाल पर हैं, तो दूसरी तरफ रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है. इसके पीछे चाहे मध्य-पूर्व में तनाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था व राजनीति हो, पर घरेलू बाजार के लिए यह चिंता का सबब है. आनेवाले दिनों में महंगाई बढ़ने के भी आसार हैं. कच्चे तेल की कीमतों […]

अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें उछाल पर हैं, तो दूसरी तरफ रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है. इसके पीछे चाहे मध्य-पूर्व में तनाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था व राजनीति हो, पर घरेलू बाजार के लिए यह चिंता का सबब है. आनेवाले दिनों में महंगाई बढ़ने के भी आसार हैं.
कच्चे तेल की कीमतों में बढ़त का तात्कालिक कारण ईरान के साथ हुए एटमी करार से अमेरिका के अलग होने की धमकी बतायी जा रही है. ईरान कच्चे तेल के शीर्ष उत्पादकों में है और प्रतिबंध की स्थिति में वैश्विक आपूर्ति में कमी से कीमतों में उछाल की आशंका भी है. तेल की कीमतें अभी 2014 के बाद पहली दफा रिकाॅर्ड ऊंचाई पर हैं.
एक बड़ी वजह आर्थिक संकट में फंसा प्रमुख तेल-निर्यातक देश वेनेजुएला भी है. कीमतों में उछाल से भारत को पहले की तुलना में ज्यादा रकम खर्च करनी होगी और इसका असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ेगा. हर एक डॉलर की बढ़त से चालू खाता के घाटे पर लगभग एक अरब डॉलर का असर पड़ता है.
संकट का दूसरा पहलू डॉलर का महंगा होना है. पिछले तीन महीनों में इसकी कीमत 3.5 फीसदी बढ़ी है. डॉलर के मुकाबले फरवरी, 2017 के बाद रुपया फिर से अपने सबसे निचले स्तर (एक डाॅलर की कीमत लगभग 67 रुपये) पर है. हालांकि, देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार (424 अरब डॉलर) है. इसके साथ अर्थव्यवस्था के अन्य कारकों को जोड़कर देखें, तो साफ है कि आर्थिक मोर्चे पर संतुलन बनाये रखने के गंभीर प्रयासों की दरकार है.
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018 में बैंकिंग तंत्र में जमा राशि में 6.7 फीसदी की बढ़त हुई है, जो 1963 के बाद सबसे कम वृद्धि दर है. ग्राहक अपनी बचत को म्यूचुअल फंड और बीमा में निवेशित कर रहे हैं. सरकारी बांड से कमाई बढ़ने और कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में तेजी आने से विदेशी निवेशकों ने घरेलू पूंजी बाजार से अप्रैल में 15.5 हजार करोड़ रुपये निकाले हैं. यह निकासी बीते 165 महीनों में सर्वाधिक है.
फरवरी और मार्च में वित्तीय बाजार से भारी निकासी हुई थी. शेयर बाजार के टिकाऊ होने का एक बड़ा आधार उन कंपनियों से मिलता है, जिनकी साख अच्छी होती है. पर, 2018 के वित्त वर्ष में 15 लोकप्रिय कंपनियों के स्टॉक के खराब प्रदर्शन से निवेशकों को चार लाख करोड़ तक का नुकसान हो चुका है.
दिसंबर से मई के बीच बंबई स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध सभी कंपनियों की बाजार पूंजी में 22 हजार करोड़ रुपये की कमी आ चुकी है. ऐसी स्थिति में बाजार जोखिम को लेकर सतर्क है और आगे की हलचलें कर्नाटक के नतीजों और अमेरिका-ईरान रिश्तों के समीकरणों पर निर्भर हैं.
इन सब कारकों को देखते हुए सरकार के पास भी अधिक विकल्प नहीं हैं. तेल के खुदरा मूल्य को नियंत्रित रखने के लिए शुल्क कम करने पड़ सकते हैं, जिससे राजस्व वसूली प्रभावित होगी. पर, सरकार को महंगाई काबू में रखने की कोशिश तो करनी ही होगी.

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