।। राजीव रंजन झा।।
(संपादक, शेयर मंथन)
पिछले साल जुलाई-अगस्त से लेकर हाल में मार्च महीने के अंत तक आनेवाले जनमत सर्वेक्षणों और उनके इर्द-गिर्द सिमटी चुनावी चर्चाओं में नरेंद्र मोदी समर्थकों का हौसला लगातार बढ़ता दिखा. पहले मोदी-समर्थक कहते थे कि 170-180 सीटें भी आ गयीं, तो सरकार बन ही जायेगी. विरोधी पूछते थे कि बाकी सीटें कहां से लाओगे? फिर यह आंकड़ा 200 तक पहुंचा, फिर 220-230 की बातें होने लगीं. सबसे अंत में आये हंसा रिसर्च के एक सर्वेक्षण में आंकड़ा 250 तक चला गया. अब नरेंद्र मोदी कहते हैं, ये दिल मांगे मोर! वे कहते हैं कि 300 सीटों से ज्यादा दीजिए.
ज्यादातर लोगों के लिए चुनावी चर्चाएं जुबानी-जमाखर्च होती हैं, लेकिन एक तबका ऐसा है, जिसके नफा-नुकसान का काफी दारोमदार अनुमान के सही-गलत होने पर टिका है. मैं सट्टा बाजार की नहीं, शेयर बाजार में निवेश और सौदे करनेवाले छोटे-बड़े खिलाड़ियों की बात कर रहा हूं. हालांकि बहुत-से लोग उन्हें भी सटोरिया ही मानते हैं, लेकिन बुनियादी फर्क यह है कि सट्टा बाजार अवैध है. दूसरा फर्क यह है कि शेयर बाजार में आपका अंदाजा सही होने पर भी घाटा हो सकता है, क्योंकि किसी घटना का सही अंदाजा लगा लेने पर भी उसे लेकर बाजार की प्रतिक्रिया अनुमान के अनुसार रहना ही जरूरी नहीं होता.
खैर, यह बात इसलिए छेड़ी कि शेयर बाजार के लोग, जिनका बड़ा पैसा चुनावी नतीजों के अनुमान सही-गलत होने को लेकर फंसा है, भी हाल तक पूरे जोश में नजर आ रहे थे. शेयर बाजार में इकतरफा ढंग से मोदी की लहर चल रही थी. लेकिन चुनाव के नतीजे किसी को पहले से मालूम नहीं होते. हाल तक एकदम निश्चिंत दिखनेवाले शेयर बाजार विश्लेषक अब कहने लगे हैं कि भई चुनाव परिणाम अनिश्चित ही होते हैं और किसी भी अनिश्चितता के साथ एक जोखिम तो जुड़ा ही रहता है. परीक्षा जारी है, कुछ परचे बाकी हैं और हाल तक एकदम आश्वस्त दिखनेवाले परीक्षार्थी परीक्षाफल को लेकर जरा सशंकित हो गये हैं.
एक विेषक ने कहा कि अन्य घटनाओं में कुछ लोगों को तो परिणाम पता होता है. मसलन अगर बजट की बात करें, तो कम-से-कम नीति-निमार्ताओं को तो पता रहता ही है कि क्या होनेवाला है. लेकिन चुनाव में तो ऐसा नहीं होता. इसलिए अब बाजार विश्लेषक थोड़ा डरने भी लगे हैं. इस डर के कारण ही कुलांचे भरता बाजार जरा ठहर गया है. अभी हाल में जो सेंसेक्स 23,000 को लगभग छू गया था, वह इन पंक्तियों को लिखते समय वापस 22,300 पर आ गया. निफ्टी के बारे में लगने लगा था कि यह किसी भी दिन 7,000 का आंकड़ा पार कर जायेगा, लेकिन यह 6,700 से भी नीचे लौटने लगा.
शेयर बाजार अगर इस बड़ी घटना से पहले जरा डरने लगा है, तो यह अकारण नहीं है. इतिहास बताता है कि चुनावी नतीजे बाजार में काफी बड़ी हलचल पैदा करते हैं. पांच साल पहले 18 मई, 2009 को ऐसा ही हुआ था. सेंसेक्स शुक्रवार 15 मई, 2009 को 12,173 पर बंद हुआ था. सप्ताहांत के दौरान नतीजे आये और कांग्रेस को अप्रत्याशित सफलता मिली. सोमवार 18 मई, 2009 को बाजार खुलते ही सेंसेक्स और निफ्टी ने ऊपरी सर्किट छू लिया. सेंसेक्स ने सीधे 1,306 अंक ऊपर 13,479 पर खुल कर 10 प्रतिशत का सर्किट तोड़ा और कारोबार को दो घंटे के लिए रोक दिया गया. इसके बाद जब कारोबार फिर चालू हुआ, तो बाजार और ऊपर चढ़ा. आखिरकार उस दिन यह 2,111 अंक से ज्यादा की बढ़त के साथ 14,284 पर बंद हुआ था. इसी तरह निफ्टी भी उस दिन 713 अंक की उछाल के साथ 4,384 पर बंद हुआ था. यह केवल एक दिन की उछाल नहीं थी, बल्कि वहां लंबी अवधि के लिए एक मील का पत्थर खड़ा हो गया. उस दिन सेंसेक्स और निफ्टी ने जिन स्तरों को पार किया था, वे तब से आज तक दोबारा लौट कर नहीं आये.
इसके पांच साल पहले कुछ उल्टा हुआ था, हालांकि तब सर्किट नहीं लगा था. मई, 2004 में बाजार की उम्मीदों के विपरीत एनडीए को चुनावी पराजय का सामना करना पड़ा था. इंडिया शाइनिंग की चमक में खोये बाजार के लिए यह एक सदमे जैसा था. नतीजतन, इन नतीजों के चलते सेंसेक्स पहले 14 मई, 2004 को 6.1 प्रतिशत गिरा और उसके अगले दिन फिर से 11.14 प्रतिशत गिरा. हालांकि जब यह स्पष्ट हो गया कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नयी सरकार बनने जा रही है, तो वहां से बाजार संभला भी. इसलिए 17 मई, 2004 को सेंसेक्स ने 4,227 की जो तलहटी बनायी थी, वहां पर फिर कभी नहीं लौटा.
इस बार के चुनावी नतीजे भी बाजार के लिए बड़ी हलचल पैदा कर सकते हैं. इस बार असर इसलिए भी ज्यादा बड़ा हो सकता है कि बाजार ने चुनावी नतीजों के साथ अभूतपूर्व ढंग से अपनी उम्मीदें जोड़ ली हैं. यूपीए-2 के शासन से निराश बाजार और उद्योग जगत ने यह मान लिया है कि मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार अर्थव्यवस्था को उबारने का काम करेगी. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन सके, तो नि:संकोच कहा जा सकता है कि बाजार बुरी तरह टूटेगा. हो सकता है कि निचला सर्किट भी लग जाये. सर्किट के नियम भी बीते वर्षो में कुछ बदले हैं. ऊपर या नीचे सर्किट की सीमा तीन चरणों में है- 10, 15 और 20 प्रतिशत पर. सेंसेक्स या निफ्टी में 10 और 15 प्रतिशत सर्किट लगने पर कारोबार कितनी देर के लिए रुकेगा, यह सर्किट लगने के समय पर निर्भर है. वहीं 20 प्रतिशत सर्किट लगने पर पूरे दिन के लिए कारोबार रुक जायेगा.
अगर निफ्टी की फरवरी, 2014 की तलहटी 5,933 से आयी उछाल को देखें, तो इसका एकमात्र कारण राजनीतिक बदलाव की उम्मीद है. फरवरी में चुनावी सर्वेक्षणों के जो नतीजे आने शुरू हुए, उन्होंने एनडीए को बढ़त मिलने की संभावनाएं दिखायीं. शुरू में एनडीए के अनुमानित आंकड़े बहुमत से थोड़े कम नजर आ रहे थे, लेकिन बाजार मान कर चल रहा था कि चुनाव के बाद एनडीए को गठबंधन के साथी मिल जायेंगे. जो सबसे ताजा सर्वेक्षण आये, उनमें तो एनडीए का आंकड़ा 250 के ऊपर जाता दिखाया गया, जिसके बाद यह धारणा बन गयी कि अब एनडीए की सरकार बनना केवल एक औपचारिकता है.
लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि सरकार जनमत सर्वेक्षणों से नहीं, जनता के मतदान से आये चुनावी परिणामों के अनुसार बनती है. भारतीय जनता अपने फैसलों से अकसर चौंकाती रही है. इसने 2004 में भी चौंकाया था और 2009 में भी. इस बार भी कौन दावे से कह सकता है कि राजनीतिक पंडितों को चुनाव परिणाम देखने के बाद दांतों तले अंगुली दबाने की नौबत नहीं आयेगी!