देश सभी क्षेत्रों में तरक्की कर रहा है, लेकिन भ्रष्टाचार पर हमारा सिर झुक जाता है. सरकार बदल जाती है, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहते है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और सीबीआइ के प्रयत्नों का बावजूद उच्चतम स्तर पर भ्रष्टाचार के मामले उभरकर सामने आ जाते है. सबूतों के अभाव में अधिकांश दोषियों को दंड नहीं दिया जा सका है. संविधान में कानून का प्रावधान के बावजूद सजा नहीं मिलना भ्रष्टाचार की रोकने की नाकामी और इसके प्रति कमजोर इच्छाशक्ति की दर्शाता है.
विदेशों में कालाधन रखने वालों की सूची के बावजूद कोई बड़ी मछली शिकंजे में नहीं आयी है. अगर एजेंसी ईमानदार और निष्पक्ष जांच करती है, तो कोई दोषी को सजा से नहीं रोक सकता है. यह सवाल गहराता जा रहा है कि देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिये नियम काफी है या नाकाफी है? घोटालों की जांच के लिए फास्टट्रैक कोर्ट बने क्योंकि लंबित मामलों को निस्तारण करने वाले जजों की संख्या को संख्या पर्याप्त नहीं है.
महेश कुमार, इमेल से