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लोकतंत्र को शर्मसार करती अभद्र भाषा

सार्वजनिक राजनीति में विरोधियों पर चुटकी लेना और आलोचना में हास्य-व्यंग्य का पुट देना स्वाभाविक है. टीका-टिप्पणियां बहस को सरस और दिलचस्प बनाती हैं. लेकिन मौजूदा आम चुनाव के लिए चल रहे प्रचार में राजनेताओं के बीच भाषणों और बयानों में इस्तेमाल की जा रही भाषा व शब्दों के चयन में शालीनता की हर हद […]

सार्वजनिक राजनीति में विरोधियों पर चुटकी लेना और आलोचना में हास्य-व्यंग्य का पुट देना स्वाभाविक है. टीका-टिप्पणियां बहस को सरस और दिलचस्प बनाती हैं. लेकिन मौजूदा आम चुनाव के लिए चल रहे प्रचार में राजनेताओं के बीच भाषणों और बयानों में इस्तेमाल की जा रही भाषा व शब्दों के चयन में शालीनता की हर हद को लांघने की होड़ लगी हुई है.

इस स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छह चरणों के मतदान के बाद चुनाव आयोग ने फिर से दिशा-निर्देश जारी कर किसी के व्यक्तिगत जीवन व गरिमा के बारे में अपमानजनक टिप्पणी से बचने को कहा है. दिशा-निर्देश की अवहेलना करने पर अभद्र बयान देनेवालों के प्रचार करने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. माना जा रहा है कि बाबा रामदेव के राहुल गांधी के निजी जीवन पर अपमानजनक टिप्पणी के बाद आयोग को यह निर्देश जारी करना पड़ा है.

इस टिप्पणी पर हुई चौतरफा निंदा और मुकदमे के बाद रामदेव ने गोलमटोल अंदाज में खेद तो प्रकट कर दिया है, लेकिन लखनऊ प्रशासन ने 16 मई तक शहर में उनकी सार्वजनिक बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिया है. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी इस प्रकरण पर प्रशासन से पूरा विवरण मांगा है. कई दलों और संगठनों ने रामदेव पर दलित उत्पीड़न निरोधी कानूनों के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने की मांग भी की है.

यह अपने-आप में बहुत विरोधाभाषी स्थिति है कि देश में राजनीतिक चेतना निरंतर बढ़ रही है, मतदान में भागीदारी भी बढ़ रही है, कई मामलों में बहसों का विस्तार हुआ है, पर दूसरी तरफ बेतुके, भड़काऊ व नफरत फैलानेवाले बयान बढ़ते ही जा रहे हैं. विरोधियों पर व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी का चलन भी इस बार बढ़ा है. लोकतंत्र एक राजनीतिक दर्शन ही नहीं, बल्कि एक जीवन-मूल्य भी है.

उसे बस चुनाव या राजनीति तक सीमित करके नहीं देखा जा सकता है. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के दावे का बस यही एक आधार नहीं हो सकता है कि भारत में मतदाताओं की संख्या करोड़ों में है. हमें हर छोटी-बड़ी बात में नियमों, नीतियों और नैतिकता का ध्यान रखना होगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि आयोग के निर्देश पर अमल होगा और राजनेता अभद्र भाषा के प्रयोग से परहेज करेंगे.

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