केरल में सोमवार से देश का सबसे बड़ा तैरता हुआ सौर ऊर्जा संयंत्र चालू हो गया है. पांच सौ किलोवाट क्षमतावाली यह परियोजना स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में बड़ी उपलब्धि है. भारत समेत दुनियाभर में विकास की दौड़ ने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया है. जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान में वृद्धि और प्रदूषण के गहराते साये ने मानव सभ्यता के अस्तित्व पर ही बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है. ऐसी स्थिति में स्वच्छ ऊर्जा के अधिकाधिक उपयोग से आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति हमारे समय की सबसे बड़ी जरूरत है.
रोजगार और नगरीकरण के लिए उद्योगों का होना जरूरी शर्त है, पर प्राकृतिक संसाधनों के समुचित और संतुलित दोहन पर भी ध्यान देना होगा. भारत ने इसके महत्व को समझते हुए 2015 में फ्रांस के साथ अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का विचार प्रस्तुत किया था, जो कल से कार्यरत हो जायेगा तथा इसका स्थायी कार्यालय भारत में होगा. इसके पहले, अंतरिम महानिदेशक उपेंद्र त्रिपाठी के अनुसार यह संस्था भू-तापिक, वायु और सौर ऊर्जा जैसे विकल्पों को प्राथमिकता देगी. आगामी दिनों में दुनिया के लगभग 121 देश इस पहल के साथ जुड़ सकते हैं. फिलहाल, 46 देश इस गठबंधन पर हस्ताक्षर कर चुके हैं और फ्रांस समेत 15 देशों ने इस पर सहमति दी है.
ऊर्जा के साथ यह मसला भी बहुत अहम है कि आबादी के हर हिस्से को यह हासिल हो सके. इस पर जोर देने के इरादे से भारत छह दिसंबर को इस अंतरराष्ट्रीय संस्था के औपचारिक स्थापना दिवस को ‘सार्वभौम ऊर्जा पहुंच दिवस’ के रूप में मना रहा है. ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के महंगे होने का सवाल भी इसके व्यापक विस्तार में एक बाधा है. कुछ माह पहले राजस्थान में एक सौर परियोजना की नीलामी के दौरान 2.44 रुपये प्रति इकाई की सर्वाधिक कम दर तय हुई थी. जानकारों का कहना है कि बढ़ती मांग के साथ तकनीक और अन्वेषण के बेहतर होते जाने से कीमतों में और कमी होगी. तुलनात्मक रूप से देखें, तो मौजूदा दरें पारंपरिक कोयला आधारित बिजली से सस्ती ही हैं.
अंतरराष्ट्रीय संस्था के सदस्य-देशों के लिए 2030 तक एक हजार गीगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संयंत्रों की स्थापना तथा शोध और अनुसंधान में करीब एक हजार बिलियन डॉलर के बड़े निवेश की जरूरत है. इस दिशा में वैश्विक वित्तीय संस्थाओं और सरकारों की भूमिका बहुत अहम होगी.
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विकसित देशों के कुछ नकारात्मक रवैये से हाल-फिलहाल में चिंताएं बढ़ी हैं, लेकिन संतोष की बात है कि सभी देश पर्यावरण और पारिस्थितिकी से जुड़ी समस्याओं के प्रति गंभीर हैं तथा बहुपक्षीय वार्ताओं का दौर जारी है. वर्ष 2020 में पेरिस जलवायु समझौते के लागू होने के बाद इस दिशा में वैश्विक सहयोग तेज होने की उम्मीद है.