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पाकिस्तान से आयी है एक चिट्ठी

।। सत्य प्रकाश चौधरी।। (प्रभात खबर, रांची) जनाब गिरिराज सिंह, मुझे बताया गया कि आपके नाम का मतलब है ‘पहाड़ों का राजा’, यानी कि हिमालय. लेकिन आपकी बातों में हिमालय की तो जाने दीजिए, किसी ताजा कब्र जितनी भी ऊंचाई नहीं दिखती है. आपने क्या पाकिस्तान को कूड़ादान समझ रखा है कि अपने यहां का […]

।। सत्य प्रकाश चौधरी।।

(प्रभात खबर, रांची)

जनाब गिरिराज सिंह,

मुझे बताया गया कि आपके नाम का मतलब है ‘पहाड़ों का राजा’, यानी कि हिमालय. लेकिन आपकी बातों में हिमालय की तो जाने दीजिए, किसी ताजा कब्र जितनी भी ऊंचाई नहीं दिखती है. आपने क्या पाकिस्तान को कूड़ादान समझ रखा है कि अपने यहां का सारा कचरा हमारे यहां फेंकने पर उतारू रहते हैं! आपके बगल में इतना बड़ा हिंद महासागर है, बंगाल की खाड़ी है, जो आपके यहां रहने लायक नहीं उनको वहां धकेलिए.

लेकिन नहीं, जब देखिए आप लोग जिसको-तिसको पाकिस्तान ऐसे भेजते रहते हैं, मानो हम फूल-माला लेकर उनके इस्तकबाल के लिए हमेशा सरहद पर खड़े रहते हों! मुङो जो खबर मिली है, उसके मुताबिक आपके यहां कम से कम 70-80 करोड़ लोग नरेंद्र मोदी के विरोधी हैं. जनाब, इतने लोगों को पाकिस्तान भेज देने का एलान करने से पहले इस इलाके का थोड़ा जुगराफिया जान-समझ लेते.

इतने लोगों को जगह देने के लिए कम से कम चार पाकिस्तान की जरूरत होगी. हमारा अपना पाकिस्तान पहले ही छोटा पड़ रहा है, आपके लिए तीन पाकिस्तान और कहां से लायें? और हां, एक बात यह समझ में नहीं आती कि आप लोगों को जिसे भी अपने मुल्क से भगाना होता है, उसके लिए आपको सबसे अच्छी जगह पाकिस्तान ही क्यों लगती है? अगर आप उन्हें पड़ोस में ही भगाना चाहते हैं, तो चीन, बांग्लादेश, नेपाल वगैरह के बारे में क्यों नहीं सोचते? अगर किसी इसलामी मुल्क में भगाना चाहते हैं, तो सऊदी अरब, ईरान वगैरह क्यों नहीं भेजते?

ले-दे कर हम ही क्यों मिलते हैं आप लोगों को? हमने तो आपका कर्ज भी नहीं खाया हुआ है. कर्ज तो हम अमेरिका का खाते हैं, वह भी पूरी शान और ठसक के साथ. आपके बेहूदे बयान के चलते हमारे यहां सियासी मसला खड़ा हो गया है. कई पार्टियां कह रही हैं कि मोदी की सरकार बनने के बाद आप लोग अपने बयान पर अमल करेंगे. उनको डर है कि अगर इतनी बड़ी तादाद में भारत से लोगों को पाकिस्तान भेजा गया, तो हमारे यहां पाकिस्तानी ही अक्लीयत यानी माइनरिटी बन जायेगा. मैं इन कमबख्तों को समझा रहा हूं कि ऐसे कैसे कोई पाकिस्तान चला आयेगा, बिना पासपोर्ट-वीसा के.

लेकिन ये मानते ही नहीं. आखिर मानें भी तो कैसे? हमारे और आपके यहां की सियासत में कोई ज्यादा फर्क थोड़े ही है. एक ही जैसी जहालत पसरी हुई है. ‘कौआ कान ले गया’ के हल्ले में ये कौए के पीछे पहले भागते हैं, अपना कान बाद में देखते हैं. वैसे हमारे यहां भी सिविल सोसायटी, ह्यूमन राइट्स और न जाने किस-किस किस्म के फिजूल लोग कम नहीं हैं. आप भी अपने यहां के दरवाजे खोलें, ताकि हम इन्हें आपके यहां भेज सकें. हम अपने बीच ऐसे कोऑपरेशन पर सोच सकते हैं.

– आपका नवाज शरीफ

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