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शहर में ऐसी गंदगी जब जनता जागेगी तब पता चलेगा

अनुज कुमार सिन्हा 15 दिन पहले दो अक्तूबर काे लगभग पूरे शहर ने शपथ ली थी-शहर काे हर कीमत पर साफ रखेंगे. शपथ लेनेवालाें में नेता-अफसर से लेकर आम जनता शामिल थी. अभी हाल क्या है, देखना है ताे बाहर नहीं जाना पड़ेगा. मुख्य सड़काें काे छाेड़ दें ताे हर जगह गंदगी मिल जायेगी. कूड़ा […]

अनुज कुमार सिन्हा
15 दिन पहले दो अक्तूबर काे लगभग पूरे शहर ने शपथ ली थी-शहर काे हर कीमत पर साफ रखेंगे. शपथ लेनेवालाें में नेता-अफसर से लेकर आम जनता शामिल थी. अभी हाल क्या है, देखना है ताे बाहर नहीं जाना पड़ेगा. मुख्य सड़काें काे छाेड़ दें ताे हर जगह गंदगी मिल जायेगी. कूड़ा भी थाेड़ा नहीं, थाेक से. एक-एक जगह एक-एक ट्रक कूड़ा निकलेगा. लगभग पूरा शहर गंदा.

हर घर के सामने कूड़ा. साफ करनेवाला काेई नहीं. दीपावली के समय ऐसी घटिया व्यवस्था पहले शायद ही कभी दिखी हो. यहां रांची की बात हाे रही है, राजधानी है जहां हर बड़े अफसर, मंत्री बैठते हैं. दूसरे जिलाें-शहराें की हालत की ताे बात ही मत कीजिए. चाैपट व्यवस्था. दुर्गा पूजा में हजारीबाग गया था. केंद्रीय मंत्री का क्षेत्र. वहां भी यही हाल. याें कहे कि रांची से भी बुरा हाल. अभी सिर्फ रांची शहर की बात करें. यहां नगर निगम में बड़े-बड़े नाम ताे हैं, लेकिन अब व्यवस्था ठीक नहीं कर सकें ताे किस काम के. दिल्ली से प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी आैर रांची से मुख्यमंत्री रघुवर दास साफ-सफाई के लिए हाथ जाेड़ कर आग्रह करते रहे, माथा फाेड़ते रहे, लेकिन ये अफसर-एजेंसी-निगम सुधरनेवाला नहीं लगता है.


मूल जिम्मेवारी है रांची नगर निगम की. सफाई के लिए पैसा वसूलते हैं जनता से. हर घर, हर फ्लैट से सफाई के नाम पर पैसा जाता है. अब यह जिम्मेवारी निगम की है कि किससे आैर कैसे शहर काे साफ कराये. निगम के कर्मचारी अगर सक्षम हैं ताे खुद करें या फिर किसी एजेंसी काे यह काम साैंपा जाये. रांची के 33 वार्ड की सफाई का ठेका मिला है एस्सेल इंफ्रा काे. 22 वार्ड में निगम खुद सफाई कराता है. अभी हालात यह है कि एसेल इंफ्रा के अधीन जाे क्षेत्र हैं, वहां सबसे बुरा हाल है. एक-एक सप्ताह से कूड़ा नहीं हट रहा है. लाेग तबाह हैं. सफाई वाहन के ड्राइवर का जहां मन करेगा, वहां गाड़ी ले जायेगा. जब मन करेगा जायेगा, जब मन नहीं करेगा, नहीं जायेगा. निगम के अधीन वाले क्षेत्र में हालात कुछ बेहतर हैं.

काेकर, चडरी, चुटिया, सामलाैंग, दीपाटाेली, बड़ा तालाब आदि इलाकाें में चले जायें. सबसे बुरा हाल है. किसी काे चिंता नहीं. यहां मेयर हैं, डिप्टी मेयर हैं, नगर आयुक्त हैं. वार्ड पार्षद हैं. क्या ये लाेग देख नहीं पा रहे हैं कि शहर में सफाई नहीं हाे रही. वह भी दीपावली के माैके पर. अगर जानते हैं ताे फिर चुप आैर लाचार क्याें. जनता क्या करे. कहां जाये, किससे फरियाद करे. सभी का एक ही हाल. अब ताे जनता ने समझाैता कर लिया है. वह सफाई कर कूड़ा कहां फेंके. क्या टेंपाे में लाद कर लाेग खुद कूड़ा फेंकने झिरी (जहां पूरा शहर का कूड़ा फेंकना है) चले जायें. ये लाेग अपनी जिम्मेवारी नहीं निभा रहे हैं. हां, जाे पार्षद दमदार हैं, जिनकी बात निगम-एस्सेल इंफ्रा सुनता है, उनके इलाके में काम हाेता है. जनप्रतिनिधि का चुप रहना समझ में नहीं आता. रांची नगर निगम क्षेत्र में कई विधायक हैं. नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ताे रांची शहर से ही हैं. कांके, खिजरी आैर हटिया का क्षेत्र भी निगम के अधीन है. अगर संबंधित एजेंसी सफाई नहीं कर रही ताे रहम क्याें. सिर्फ कागजी बयान देने से काम नहीं चलनेवाला. कार्रवाई क्याें नहीं हाेती. जाे समय आैर ध्यान शहर काे बेहतर बनाने में लगाना चाहिए, वह समय लड़ने-बयानबाजी में बीतता है. अगर यही रवैया रहा ताे राजधानी की स्थिति बदतर ही हाेगी. एजेंसी काेई मुफ्त में सफाई नहीं कर रही. समाज सेवा नहीं करती. बड़ी राशि लेती है (यह पैसा आपके टैक्स का हाेता है) लेकिन काम नहीं हाे रहा. उसके सफाई कर्मचारी काे समय पर पैसे नहीं मिलते. हड़ताल कर देते हैं. खामियाजा भुगतती है जनता. अखबाराें में खबर छापने के बाद काेरम दाे-चार दिनाें के लिए पूरा हाेता है. फिर वही हालत.

ठीक है दाेषी जनता भी है जाे जहां-तहां कूड़ा फेंक देती है. लेकिन नगर निगम इसका रास्ता ताे निकालेगा. दूसरे राज्याें के बेहतर नगर निगम के काम काे देखने के लिए यहां से टीम जाती ताे है, मस्ती ताे करती है लेकिन क्या सीख कर आती है. कुछ नहीं. सिर्फ पैसों की बर्बादी. कुछ क्षेत्राें में ताे निगम ने अदभुत काम किया है. मेन राेड में दाे मिनट के लिए गाड़ी अगर सड़क पर पार्क करते मिल गयी ताे एक से एक रंगदार पहुंच जायेंगे, ट्रक पर टांग कर गाड़ी ले जायेंगे. आगे-पीछे पुलिस भी मिल जायेगी. ठीक है नियम है ताे मानना चाहिए ही लेकिन ऐसी ही तत्परता शहर की सफाई के लिए दिखानी चाहिए.

छह माह, आठ माह पहले हाेल्डिंग नंबर के लिए आवेदन ताे ले लिया, पैसा ले लिया लेकिन नंबर आबंटित नहीं किया. यह मजाक है जनता के साथ. काेई देखनेवाला नहीं. पूछनेवाला नहीं. साेचिए, अगर जनता बगावत पर उतर जाये आैर टैक्स नहीं देने के लिए अड़ जाये (हालांकि ऐसा करना कानूनी ताैर पर गलत हाेगा) ताे क्या हाेगा. अगर किसी घर पर निगम का पैसा बकाया है, टैक्स बकाया है ताे कलेजा पर चढ़ कर एजेंसी के लाेग वसूलने पहुंच जाते हैं, सिटी बजा कर बेइज्जत (बड़े बकायादाराें काे) तक कर देते हैं. लेकिन सुविधा देने के समय चेहरा नहीं दिखाते. हां, अगर नगर निगम सफाई करने में अक्षम है ताे जनता काे साफ-साफ कह दे कि वह कुछ नहीं कर सकता. लाेग अपनी-अपनी व्यवस्था कर लें.

सरकार की भी इस पर नजर हाेनी चाहिए. नगर विकास विभाग काे भी देखना चाहिए कि सिर्फ वीआइपी इलाके में सफाई करने से कुछ नहीं हाेता. गलियाें आैर दूसरे इलाकाें में भी लाेग रहते हैं, वे भी पैसा देते हैं, टैक्स भरते हैं आैर उन्हें सफाई का पूरा हक है. वार्ड पार्षद, विधायक आैर सांसद भी यह समझ लें कि जनता अगर जागेगी ताे नतीजा दिखेगा. बदला लेने का जनता काे भी माैका मिलेगा (चुनती ताे जनता ही है). आज कराेड़ाें रुपये खर्च करने के बावजूद रांची शहर में सफाई (अभी सिर्फ सफाई की बात कर रहा हूं) की जाे हालत है, उससे बेहतर स्थिति पहले थी. दीपावली में एक दिन शेष है. उम्मीद है अफसराें-निगम काे सदबुद्धि आयेगी, जिम्मेवारी समझेंगे आैर शहर साफ हाेगा. हां, यह जरूर देखना हाेगा कि जाे पैसा ले रहे हैं, अपना काम नहीं कर रहे हैं, उन्हें अपने पद पर बने रहने का अधिकार भी नहीं है.

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