केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश दिल से बात करने के लिए जाने जाते हैं. और, राजनीति में जो दिमाग की जगह दिल की बात करता है, उसके बयानों को लेकर अक्सर विवाद होता है. यही कारण है कि जयराम रमेश का विवादों के साथ चोली और दामन का साथ है.
वक्त, जरूरत पड़ने पर, वह अपने संगठन की आलोचना से भी नहीं चूकते. गलतियां कबूल करने से पीछे नहीं हटते. पिछले दिनों उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में यह बात साफ तौर पर मानी कि ‘2014 के आम चुनाव में कांग्रेस धारणा के स्तर पर लड़ाई पहले ही हार गयी. यह संवादहीनता की वजह से हुआ. सरकार का नेतृत्व कर रहे लोग जनता से संवाद नहीं कर पाये.’ कांग्रेस के बारे में ऐसा अनेक लोग सोचते हैं, इस पार्टी के कई नेता भी ऐसा सोचते होंगे, पर शायद ही कोई नेता यह बात खुलेआम कबूल करे.
पर जयराम रमेश ने ऐसा किया. ऐसी ही हिम्मत उन्होंने रविवार को झारखंड में एक चुनावी सभा के दौरान दिखायी. उन्होंने माना कि मधु कोड़ा सरकार को समर्थन देना कांग्रेस की बड़ी भूल थी. लेकिन, लोगों के मन में एक सवाल यह पैदा हो रहा है कि कांग्रेस को सत्य का बोध केंद्र की संप्रग सरकार की विदाई की घड़ी में ही क्यों हो रहा है? जब वक्त था, तब वह क्यों नहीं चेती? अगर उसने पहले ही इन बिंदुओं पर विचार किया होता, तो शायद हालात उसके हाथ से इस तरह न निकल जाते.
कांग्रेस की ऐसी ही गलतियों से देश के प्रधानमंत्री की साख मिट्टी में मिल गयी. प्रधानमंत्री ने भले ही खुद कोई घोटाला न किया हो, पर वह घोटाले देख कर चुपचाप रहे. ऐसे में वह राजनीतिक जिम्मेदारी से नहीं बच सकते. इसी तरह मधु कोड़ा के समय हुए घोटाले में भले ही कांग्रेस भागीदार न रही हो, पर वह अपनी राजनीतिक जिम्मेदार से नहीं बच सकती. राजनीति में धारणा कई बार यथार्थ से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है.
2002 के दंगों के लिए नरेंद्र मोदी कहीं से भी ‘क्लीन चिट’ ले आयें, उन पर उंगलियां उठती ही रहेंगी, क्योंकि उनके मुख्यमंत्री रहते ही गुजरात एक महीने तक दंगों में जलता रहा. इसी तरह अगर मधु कोड़ा भी अदालत से बरी हो जायें, तो भी उनकी छवि पर लगा दाग नहीं मिटेगा और उस दाग की कुछ न कुछ कालिमा कांग्रेस के हिस्से भी जरूर आयेगी.