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अमीर वे हैं, लेकिन फजीहत मेरी क्यों

।। बृजेंद्र दुबे।। (प्रभात खबर, रांची) चुनाव में सब कुछ ठीक है, लेकिन संपत्ति की घोषणा वाला कॉलम हटा देना चाहिए.मेरे जैसे गरीब पत्रकारों की पत्नियां बहुत ताना मारती हैं. जब से चुनाव आया है, रोज किसी न किसी नेता की संपत्ति का ब्योरा पढ़ कर पत्नी ताने मारना शुरू कर चुकी है. अब तो […]

।। बृजेंद्र दुबे।।

(प्रभात खबर, रांची)

चुनाव में सब कुछ ठीक है, लेकिन संपत्ति की घोषणा वाला कॉलम हटा देना चाहिए.मेरे जैसे गरीब पत्रकारों की पत्नियां बहुत ताना मारती हैं. जब से चुनाव आया है, रोज किसी न किसी नेता की संपत्ति का ब्योरा पढ़ कर पत्नी ताने मारना शुरू कर चुकी है. अब तो वह भूली भी रहे तो बच्चे याद दिलाते हैं, मम्मी-मम्मी फलां नेता के पास एक दर्जन लक्जरी गाड़िया हैं, मेरे लिये तो पापा आज तक एक साइकिल भी नहीं खरीद पाये. बस, पत्नी का भाषण शुरू.. अरे, दाल-रोटी चली जा रही है, यही क्या कम है. इनसे से कुछ होने से रहा.

मैं भी मन मसोस कर रह जाता हूं. लेकिन यह नहीं बोल पाता कि मैं आम आदमी के घर में पैदा हुआ और आम आदमी बन कर एक दिन मर जाऊंगा. मेरे लिये यही काफी है कि परिवार का खर्च किसी तरह चला दे रहा हूं. आज भी वही हुआ, भाजपा के अरुण जेटली की संपत्ति का ब्योरा देख कर लड़का चीखा, मम्मी -मम्मी देखो, खाली सरकार के नेता ही करोड़पति-अरबपति नहीं होते, विरोधी दल के नेता भी अरब पति हैं. और मजे की बात ये है कि जेटली किसी राजनीतिक खान से भी नहीं आते. मतलब अरुण जेटली अपनी मेहनत से नेता बने और खुद के परिश्रम से इतनी बड़ी संपत्ति हासिल कर ली. मैंने कहा, जेटली साहब बहुत पुराने नेता हैं. बेटा तुनक गया, क्या पापा…आप भी, जेटली तो आप से दो-ही चार साल बड़े होंगे. पत्नी बहस में शामिल होती, मैंने बहाना किया और घर से ऑफिस के लिए दो घंटे पहले ही बाहर निकल गया.

ऑफिस के रास्ते में गजोधर भाई ने मिलते ही ताड़ लिया. बोले, क्यों मित्र बड़ी जल्दी ऑफिस चल दिये. क्या मोदी-राहुल टाइप का कोई नेता आनेवाला है क्या. मैंने कहा, नहीं यार इस चुनाव में नेताओं की संपत्ति ने परेशान कर रखा है. पत्नी-बच्चे मुझ पर भड़ास निकाल देते हैं. इस लिए ऑफिस जा रहा हूं. कुछ तो राहत मिलेगी. गजोधर खिलखिला कर हंस पड़े, बोले-ये आपके साथ ही नहीं हर उस व्यक्ति के साथ हो रहा है, जिसके बच्चे बड़े हो रहे हैं. दरअसल, आज के बच्चे अपने दोस्तों की नकल कुछ ज्यादा ही करने लगे हैं. उनको दुनिया में उपलब्ध हर सुविधा चाहिए. अब जिनके पापा आप की तरह हैं, उनके बच्चे अपनी मम्मियों को उकसा कर कुछ इसी तरह से बदला लेने लगे हैं. गजोधर ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, लेकिन मित्र एक चीज तो है, इन नेताओं की संपत्ति के ब्योरे देख कर दंग तो मैं भी हूं. इस मामले में कोई पक्ष-विपक्ष नहीं है. जिस देश में लाखों परिवारों को दो जून की रोटी मयस्सर नहीं है. जहां गरीबी से तंग किसान आत्महत्या कर लेता हो. वहां के नेताओं का इतना अमीर होना अखरता तो जरूर है. मैंने कहा, गजोधर भाई, मुङो तो कुछ नहीं अखरता, मैं तो चाहता हूं कि नेताओं की संपत्ति का ब्योरा मांगा ही न जाये. ये लोग जैसे चाहें करें ‘भारत निर्माण..’ मुङो तो सिर्फ रोज-रोज के ताने से निजात मिले.

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