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क्या इस चुनाव में ‘मोदी लहर’ है!

।। आकार पटेल।। (वरिष्ठ पत्रकार) इस साल के लोकसभा चुनाव में यह सवाल हर बहस में पूछा जा रहा है कि क्या इस बार पूरे देश में सचमुच कोई ‘मोदी लहर’ है, या क्या इस बार का लोकसभा चुनाव देश में हुए पिछले आम चुनावों से कुछ अलग है? हाल के दशकों का भारत का […]

।। आकार पटेल।।

(वरिष्ठ पत्रकार)

इस साल के लोकसभा चुनाव में यह सवाल हर बहस में पूछा जा रहा है कि क्या इस बार पूरे देश में सचमुच कोई ‘मोदी लहर’ है, या क्या इस बार का लोकसभा चुनाव देश में हुए पिछले आम चुनावों से कुछ अलग है? हाल के दशकों का भारत का चुनावी इतिहास गवाह है कि अब यहां का जनादेश आमतौर पर खंडित होता है. कोई एक पार्टी कुछ राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करती हैं, तो वही पार्टी कुछ दूसरे राज्यों में हाशिये पर चली जाती है. जैसे कांग्रेस किसी राज्य में पूर्ण विजय प्राप्त कर लेती है, तो किसी में उसका खाता भी नहीं खुलता है. ऐसा नतीजा अकसर सामने आता है. देश में पिछले चार दशकों के दौरान हुए तमाम चुनावों में, एक पार्टी यानी कांग्रेस की एकतरफा जीत यदा-कदा ही देखी गयी है. इस तरह हाल के दशकों में हमारे यहां यह एक परिपाटी सी बन गयी है कि चुनाव में प्रमुख दल राज्यों के स्तर पर एकसमान प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं.

लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में स्थिति कुछ अलग लग रही है. अगर भारतीय जनता पार्टी की मौजूदगी वाले बड़े राज्यों पर नजर डालें, तो एक अजीब सी स्थिति दिखती है. कम-से-कम चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में तो यही अनुमान जताया जा रहा है कि महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में से कहीं भी कांग्रेस भाजपा से अधिक सीटें नहीं जीतने जा रही है. यहां तक कि कर्नाटक, जहां कुछ महीने पहले ही कांग्रेस को जीत हासिल हुई है, को भी ज्यादातर सर्वेक्षण भाजपा के खाते में ही जाता हुआ दिखा रहे हैं. सिर्फ एक सर्वेक्षण वहां कांग्रेस की बढ़त बता रहा है.

इस तरह के संकेतों का सिर्फ एक ही मतलब निकाला जा सकता है : इस चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर एक माहौल बना है, जो भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के पक्ष में है और कांग्रेस के खिलाफ. हालांकि यह माहौल आज नहीं बना है, पूर्व के कुछ विधानसभा चुनावों में भी कमोबेश ऐसा ही माहौल दिख रहा था. हालिया कुछ विधानसभा चुनावों में ज्यादातर राज्यों में विपक्ष ने कांग्रेस को पराजित कर दिया. इतना ही नहीं, अब कांग्रेस विरोधी कई पार्टियां एकजुट होकर एक बड़े गंठबंधन की नींव रख रही हैं.

कांग्रेस के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह का निराशाजनक माहौल इससे पहले सिर्फ दो बार बना है. पहला, 1977 के आम चुनाव में और दूसरा, 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ वीपी सिंह के नेतृत्व में बना विशाल गंठबंधन. लेकिन उन दोनों ही मौकों पर कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर अकेले सबसे बड़ी पार्टी होने का अपना रुतबा बरकरार रखा था और देश के कई राज्यों, खासकर दक्षिण भारत, में उसकी अच्छी-खासी उपस्थिति बनी रही थी.

यहां तक कि जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में आयी थी और तीन चुनावों में उसने अच्छा प्रदर्शन किया था, तब भी कांग्रेस को बड़ी पराजय का सामना सिर्फ एक बार, 1999 में करना पड़ा था. हालांकि कर्नाटक जैसे कुछेक अपवादों को छोड़ कर बड़े राज्यों में कांग्रेस भाजपा पर अपनी बढ़त लंबे समय तक बरकरार नहीं रख सकी, फिर भी कुल मतों में इसकी ठीक-ठाक हिस्सेदारी बनी रही.

लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे जनमत सव्रेक्षणों के नतीजे यदि सही हैं, तो कांग्रेस सिर्फ 100 सीटों के आसपास सिमट जायेगी, जबकि भाजपा अकेले 200 के करीब सीटें हासिल कर सकती है. इस तरह यह पहली बार होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को कांग्रेस से अधिक सीटें मिलेंगी. मुङो लगता है कि इस तरह के अनुमानों से निकला संकेत यह नहीं है कि देश में मौजूदा चुनावी माहौल कांग्रेस के खिलाफ नकारात्मक रुझान के कारण बना है, बल्कि यह नरेंद्र मोदी के पक्ष में सकारात्मक रुझान का नतीजा है. यहां तक कि जिस राज्य में कांग्रेस स्थानीय स्तर पर अच्छी स्थिति में दिख रही थी, (जैसे कर्नाटक), वहां भी लग रहा है कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर बने रुझानों के आगे हथियार डाल चुकी है.

इस मामले में नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के लिए एक असाधारण व्यक्तित्व हैं और हमें मान लेना चाहिए कि इस बार के चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर एक ‘मोदी लहर’ है. मोदी पिछले करीब एक साल से लगातार चुनाव प्रचार पर निकले हुए हैं. उनके अनथक प्रचार अभियान और कार्यशैली से उनकी छवि अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित राजनेता की बनी है.

मोदी ने अब देश के मतदाताओं से 300 सीटें देने का आह्वान किया है. (इस आंकड़े को करीब 30 साल पहले राजीव गांधी ने हासिल किया था.) यह आह्वान प्रचार अभियान के दौरान जीत के प्रति उनके आत्मविश्वास को दिखाता है. यानी मोदी के लिए अब 272 कोई संतोषजनक आंकड़ा नहीं रह गया है और वे प्रबल बहुमत की उम्मीद कर रहे हैं. यह आत्मविश्वास नरेंद्र मोदी और पूरी तरह रक्षात्मक मुद्रा में आये कांग्रेसी नेताओं के बीच के अंतर को सामने लाता है. कुल मिला कर चुनाव अभियान के मौजूदा संकेत साफ हैं, सोनिया और गांधी परिवार रेस में लगातार पीछे छूटता जा रहा है. मीडिया का सामना करने में कांग्रेसी नेताओं की अनिच्छा तब तक तो ठीक थी, जब तक पार्टी सत्ता का आनंद उठा रही थी, लेकिन चुनाव प्रचार अभियान में यह पार्टी को लगातार नुकसान पहुंचा रही है.

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