पिछले कुछ महीनों से भाजपा आंतरिक कलह से जूझ रही है. कहीं यह कलह मोदी की सत्ता अवरुद्ध न कर दे? भाजपा जिस मोदी की लहर की बात कर रही है, वही नरेंद्र मोदी और राजनाथ टिकट बंटवारे को लेकर आंतरिक कलह की जड़ बने हुए हैं. एक बार फिर से वही कहानी दोहरायी जा रही है जो 2004 के आम चुनाव में हुआ था. उस समय में भी भाजपा इसी तरह के लहर की बात कर रही थी, लेकिन अतिआत्मविश्वास ने पार्टी को सत्ता से दूर कर दिया.
भाजपा के पितामह माने जानेवाले आडवाणी की कोई भी बात राजनाथ और मोदी को रास नहीं आ रही है. लेकिन मोदी शायद यह भूल रहे हैं कि 2002 के दंगों के बाद आडवाणी ने ही उनकी कुरसी बचायी थी. आज की स्थिति यह है कि आडवाणी के जितने भी करीबी नेता हैं उन पर भी गाज गिरनी शुरू हो गयी है. इसमें पहला नाम सुषमा स्वराज का है, जिनके लाख विरोध के बावजूद श्रीरामुलु को वेल्लारी से और उन्हें विदिशा से टिकट दे दिया गया. यहां सुषमा स्वराज की एक नहीं सुनी गयी और उन्हें चुप होकर अपनी प्रतिष्ठा बचानी पड़ी.
ऐसे ही आडवाणी की इच्छा भोपाल से चुनाव लड़ने की थी, लेकिन उन्हें गांधीनगर का टिकट दिया गया. आडवाणी के करीबी माने जानेवले हरिन पाठक अहमदाबाद से लंबे समय से सांसद रहे हैं, लेकिन उनका टिकट काट कर परेश रावल को टिकट देना कितना सही है? फिर बारी आती है मुरली मनोहर जोशी की जिनकी इच्छा के विपरीत वाराणसी के बजाय कानपुर से टिकट दिया गया. केंद्रीय मंत्री रह चुके जसवंत सिंह कह चुके हैं कि उनका यह आखिरी चुनाव होगा, फिर भी उनकी भावना की कद्र कर उन्हें बाड़मेर से टिकट नहीं दिया गया. पार्टी से चोट खाये ये दिग्गज मोदी को जाने कितना दूर पहुंचायेंगे!
मनोज मस्ताना, धुर्वा, रांची