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”प्रभु” का रेलवे को ट्वीट- तुमको न भूल पायेंगे, पढ़ें कुछ खास रिपोर्ट

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपनी कैबिनेट का विस्तार किया. 3 साल के कार्यकाल में मोदी कैबिनेट का यह तीसरा विस्तार है, जिसमें 9 नये चेहरों को शामिल किया गया. कैबिनेट विस्तार के बाद सुरेश प्रभु ने अपने ट्विटर वॉल पर लिखा कि, ‘सभी 13 लाख रेलवे के कर्मचारियों का उनके […]

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपनी कैबिनेट का विस्तार किया. 3 साल के कार्यकाल में मोदी कैबिनेट का यह तीसरा विस्तार है, जिसमें 9 नये चेहरों को शामिल किया गया. कैबिनेट विस्तार के बाद सुरेश प्रभु ने अपने ट्विटर वॉल पर लिखा कि, ‘सभी 13 लाख रेलवे के कर्मचारियों का उनके साथ और प्यार के लिए शुक्रिया…मैं हमेशा इन पलों को याद करूंगा… रेल मंत्री सुरेश प्रभु की मंत्रालय से विदाई के बाद नौ सालों में वह दसवें रेल मंत्री हो गये हैं जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये.

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मोदी सरकार में सदानंद गौड़ा सिर्फ छह माह ही रेल मंत्री के पद पर रहे थे और नये रेल मंत्री को काम करने के लिए दो साल से भी कम वक्त मिलेगा. रेलवे विशेषज्ञों की मानें तो रेल मंत्रियों के आने-जाने से विभाग में अस्थिरता का माहौल बनता है जिसका असर रेलवे बोर्ड, जोनल रेलवे व डिविजन के अधिकारियों के मनोबल पर पड़ता है. स्थिर रेल मंत्री के रहने से स्थिर नीति बनती है, तभी रेल विकास की पटरी पर तेजी से दौड़ लगाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी सरकार का फोकस रेल सुरक्षा, आधुनिकीकरण, ट्रैक क्षमता पर है, उम्मीद है कि नया रेल मंत्री उक्त नीतियों को आगे बढ़ाने का काम करेगा.

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पिछले नौ साल से लगातार स्थिर रेल मंत्री नहीं मिलने से रेलवे और रेल यात्रियों को भारी खामियाजा भुगतना पड़ा है.

बंगाल के हाथों रेल की कमान
जानकारों की मानें तो यूपीए-एक में पूर्व रेल मंत्री लालू यादव ने डेडिकेट फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी), कोच, वैगन, इंजन बनाने के लिए कारखाने व ट्रैक क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम आरंभ किया लेकिन 2009 में पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी के कार्यकाल में इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया. पूर्व की योजनाओं के बजाए ममता ने पश्चिम बंगाल में नयी योजनाओं की घोषणाएं की. इस दौरान उन्होंने दैनिक यात्रियों के लिए उपनगरीय सेवा व मेट्रो को विस्तार देने का काम किया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता ने जुलाई 2011 में दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री बनाया. लेकिन आठ महीने में वह भी कुछ खास नहीं कर सके. रेलवे के आधुनिकीकरण, संरक्षा, सुरक्षा आदि के लिए दो समितियां बनाकर रूपरेखा तैयार की गयी. त्रिवेदी रेलवे को पेशेवर तरीके से चलाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने रेल बजट में किराया बढ़ाना चाहा, जिसके कारण उनकी कुर्सी चली गयी.

दिनेश त्रिवेदी के बाद

इसके पश्चात मुकुल राय, सी.पी. जोशी, पवन बंसल, मल्लिकार्जुन खड़गे में से कोई एक साल तक रेल मंत्री की कुर्सी पर नहीं जम सके. मोदी सरकार में सदानंद गौड़ा को भी छह महीने में कुर्सी छोड़नी पड़ी. प्रभु के टिकने की उम्मीद थी, लेकिन सिलसिलेवार बेपटरी होती ट्रेनों पर वह लगाम नहीं लगा सके और नैतिकता के आधार पर अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को सौंप दिया.

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