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आज के नतीजों के निहितार्थ

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया aakar.patel@gmail.com राज्यों के हालिया चुनावों के संदर्भ में जनमत सर्वेक्षणों से मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव परिणामों की कोई साफ तस्वीर नहीं उभर सकी कि इन दोनों राज्यों में किसकी सरकार बनने जा रही है. मतदान के बाद प्रकाशित नौ जनमत सर्वेक्षणों में से आठ ने […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@gmail.com
राज्यों के हालिया चुनावों के संदर्भ में जनमत सर्वेक्षणों से मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव परिणामों की कोई साफ तस्वीर नहीं उभर सकी कि इन दोनों राज्यों में किसकी सरकार बनने जा रही है. मतदान के बाद प्रकाशित नौ जनमत सर्वेक्षणों में से आठ ने यह बताया कि कांग्रेस राजस्थान में, जबकि तेलंगाना राष्ट्र समिति तेलंगाना में सफल रहेगी. मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के विषय में इन सर्वेक्षण नतीजों ने अनिश्चितता ही दिखायी. तथ्य यह है कि इन सर्वेक्षणों के औसत नतीजों ने यह बताया कि छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी अपना बहुमत हार बैठेगी.
इन दो राज्यों के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ये गुजरात मॉडल की ही राह पर जा रहे हैं, क्योंकि दोनों दो मुख्य दलों के राज्य हैं, जहां कांग्रेस स्थायी रूप से विपक्ष में बैठती नजर आ रही थी. पर यदि ये जनमत सर्वेक्षण सही हैं, तो कांग्रेस के लिए मंगलवार को यह स्थिति समाप्त हो जायेगी.पर हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं जानते, क्योंकि भारत में जनमत सर्वेक्षणों को लेकर एक समस्या है.
अमेरिका में एक हजार से भी कम आकार के सैंपल के साथ इन सर्वेक्षणों के द्वारा राष्ट्रपति चुनावों की सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है. वहां ये सर्वेक्षण टेलीफोन कॉल अथवा रोबोकॉल यानी एक रिकाॅर्डेड संवाद के आधार पर संपन्न किये जा सकते हैं, जिनमें मतदाताओं को एक मेन्यु से विकल्प चुनने को कहा जाता है. साल 2012 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान एक चुनाव विश्लेषक नेट सिल्वर ने सभी 50 अमेरिकी राज्यों में चुनाव परिणामों की सटीक भविष्यवाणी की. जैसा विदित है, अमेरिका दो मुख्य पार्टियों रिपब्लिकन एवं डेमोक्रेटिक का देश है.
अमेरिकी समाज में उच्च श्रेणी के कामगार एवं शारीरिक श्रमिक, तथा ग्रामीण एवं शहरी बाशिंदे जैसी कोटियां हैं. फिर उनके नस्ल आधारित वर्गीकरण भी हैं, जिनमें सबसे बड़े अल्पसंख्यक अश्वेत एवं लैटिनों (यानी स्पेिनश भाषा बोलनेवाले) हैं. जनमत सर्वेक्षण इन सभी विभेदों को लेकर भी चुनाव के विजेताओं की सटीक भविष्यवाणी कर देते हैं. अमेरिका में चुनाव के दिन समाचार नेटवर्क एक्जिट पोल संचालित कर चुनावी मतगणना शुरू होने के पूर्व ही नतीजों के अपने अनुमान प्रकाशित कर देते हैं, जो प्रायः हमेशा ही सही होते हैं.
भारत में हमारा सियासी समाज विश्व के लोकतांत्रिक देशों में सर्वाधिक जटिल है, जिसमें भाषा, आर्थिक स्थिति, संस्कृति संबंधी विभेदों की भरमार है. इसके अलावा हमारे धार्मिक विभेद भी हैं, जो बढ़ते ही गये हैं. इन सबके भी ऊपर, हमारे समाज का एक अनोखा तथा असाधारण विभेद जातियों का है.
इनका सम्मिलित नतीजा यह होता है कि यहां चुनाव परिणामों की भविष्य वाणी करना बहुत कठिन हो जाता है, क्योंकि उसके लिए भारत में बहुत बड़े आकार का सैंपल और सर्वेक्षण के संचालन हेतु ज्यादा खर्चकर ज्यादा बड़ी मानवशक्ति चाहिए, ताकि उक्त बड़े सैंपल में सबका इंटरव्यू किया जा सके. कई एजेंसियां इस समस्या के अनोखे समाधान निकालती हैं. एक ऐसी ही सफल एजेंसी ‘टुडेज चाणक्य’ है, जो यह कहती है कि प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के आकलन के लिए उसके अलग तरीके हैं. कभी-कभी तो यह उत्तरदाताओं को यह भी नहीं बताती है कि वह कोई मतदाता सर्वेक्षण कर रही है.
सर्वेक्षणकर्ताओं के लिए यहां एक बड़ी समस्या यह भी है कि लोग उनसे प्रायः झूठ बोल दिया करते हैं- इसलिए नहीं कि हम कोई कपटी लोग हैं, बल्कि इसलिए कि हमें यह यकीन नहीं होता कि हमारे द्वारा दी गयी सूचनाओं से हमें कोई हानि नहीं पहुंचेगी.
सीएसडीएस नामक एजेंसी अपने चुनाव पश्चात सर्वेक्षण में अपने सूचना संग्रहणकर्ताओं को लोगों के घर भेजकर उनका 30 मिनटों का एक गहरा इंटरव्यू करती है, जिनमें वह यह जानने की भी कोशिश करती है कि उत्तरदाता ने क्यों किसी खास सोच के साथ मतदान किया है और उसके लिए कौन-कौन से मुद्दे अहम हैं. परिमाण से अधिक गुणवत्ता पर गौर तथा गहराई से इंटरव्यू करने की वजह से उनके द्वारा लिये जानेवाले सैंपल का आकार बड़ा नहीं होता है.
कई बार तो ऐसी एजेंसियां महज अनुमान के आधार पर काम करने लगती हैं. मुझे लगभग 15 वर्ष पूर्व संपन्न एक आम चुनाव याद आता है, जिसमें एक एजेंसी की अगुआई मेरे मित्र जीवीएल नरसिम्हा राव कर रहे थे. राव इन दिनों भारतीय जनता पार्टी के एक नेता हैं. चुनावी परिणाम के दिन चल रहे एक शो की मेजबानी स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर कर रहे थे.
जब नतीजे आने शुरू हुए, तो ऐसा हुआ कि नरसिम्हा राव की एजेंसी द्वारा विभिन्न राज्यों के लिए घोषित सभी अनुमान एक के बाद एक गलत साबित होने लगे. अय्यर ने इस पर जब उनकी टिप्पणी चाही, तो उन्होंने यह कह दिया कि पूरे राष्ट्र के लिए उनकी एजेंसी के अनुमान का कुल जोड़ लगभग सही निकला है. जाहिर है, यह दलील स्वीकार्य न थी और यह सब वैज्ञानिक विधि के नाम पर एक अनुमान मात्र था.
भारत में चुनाव नतीजों की अनिश्चितता से निबटने का एक रास्ता परिणाम अनुमानों के लिए रेंज का दिया जाना भी है. यदि हम मध्य प्रदेश के लिए इन अनुमानों को देखें, तो ऐसी चार एजेंसियों ने विभिन्न पार्टियों के लिए सीटों की कोई निश्चित संख्या न बता कर उनकी एक रेंज बतायी है जो अधिकतम 20 सीटों तक की है. इसका अर्थ ही है कि उनके अंदर अपनी अनुमानित संख्याओं को लेकर आत्मविश्वास नहीं हैं. ये संख्याएं भ्रमित करनेवाली और कई बार एक-दूसरे की अत्यंत निकटवर्ती हैं, जो यह संकेत करती हैं कि प्रधानमंत्री द्वारा जोरदार अभियान के बावजूद इन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व छीजा है.
इन नतीजों के राष्ट्रीय निहितार्थ बहुत अहम हैं, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ से लोकसभा की 65 सीटों में से 62 जीती थीं. वर्तमान चुनाव नतीजों से विपक्ष का आत्मविश्वास परवान चढ़ेगा. यदि यह स्पष्ट हो जाता है कि उत्तर भारत में भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव घट रहा है, तो विपक्ष के लिए आपसी गठबंधन स्थापित करना सुगम हो जायेगा. इस अर्थ में, 2014 के बाद से हमारे द्वारा देखे गये सभी विधानसभा चुनावों में वर्तमान चुनाव सबसे महत्वपूर्ण हैं.

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