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मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे..

।। अनुज सिन्हा ।।(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर) हाल ही में एक खबर आयी. एक महिला ने अपने तीन बच्चों को जहर देने के बाद खुद जहर खा कर आत्महत्या कर ली. एक बकरी बेचने को लेकर पति से मामूली विवाद हुआ था. कुछ दिन पहले एक महिला ने अपनी बेटियों को डैम में डुबा कर […]

।। अनुज सिन्हा ।।
(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर)

हाल ही में एक खबर आयी. एक महिला ने अपने तीन बच्चों को जहर देने के बाद खुद जहर खा कर आत्महत्या कर ली. एक बकरी बेचने को लेकर पति से मामूली विवाद हुआ था. कुछ दिन पहले एक महिला ने अपनी बेटियों को डैम में डुबा कर मार डाला था. फिर आत्महत्या कर ली थी. वह अपने पति से नाराज थी क्योंकि उसका पति अपने पिता के इलाज पर पैसा खर्च कर दे रहा था. पूरे देश में ऐसी घटनाएं बढ़ गयी हैं. कारण है लोग अधीर हो रहे हैं, असंयमित हो रहे हैं. उनमें संघर्ष करने की क्षमता घट रही है. अपने दायित्व से भागना चाह रहे हैं. आवेश में, जल्दबाजी में निर्णय करते हैं. परिवार-समाज के असली अर्थ को समझ नहीं पा रहे हैं. पति-पत्नी और बच्चे तक ही परिवार सिमटता जा रहा है. आपसी विश्वास घट रहा है. भारतीय समाज/ परिवार की जो ताकत रही है, उस पर आक्रमण हुआ है. इसका नतीजा है कि परिवार अशांत हुआ है, समाज अशांत हुआ है. हिंसा बढ़ी है. हत्या-आत्महत्या की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.

दुनिया में आज इस बात पर अनुसंधान हो रहा है कि अग्नि में कौन-सी ताकत है, जिसके चारों ओर सात फेरे लेने के बाद भारत में पति-पत्नी अपना पूरा जीवन साथ निभा लेते हैं. हम अपनी उस ताकत को पहचान नहीं पा रहे हैं. परिवार-समाज का टूटना, तलाक के मामले बढ़ना, पति-पत्नी का विवाद बढ़ना इसका उदाहरण है. पति-पत्नी में अगर किसी बात को लेकर बहस हो गयी, मतभेद हो गये तो इसका अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ खत्म हो गया. बच्चों को मार कर खुद जान दे देने से समस्या का निदान नहीं हो सकता. यह कायरता है. उन बच्चों का क्या दोष, जिनकी जान गयी. विवाद, मतभेद या बहस तो दुनिया में हर जगह होते रहते हैं. तो क्या हर कोई जान देता रहेगा? हो सकता है पति शराबी हो, उसमें दस अवगुण हों, परिवार पर ध्यान न देता हो, कमाने के बाद पैसा बर्बाद कर देता हो, पर जान दे देने से क्या पति सुधर गया?

हालात का बहादुरी से सामना करना चाहिए. अपने ऊपर भरोसा रखना होगा. महिलाओं में इतनी ताकत-क्षमता है कि वे बगैर पति के सहयोग के भी बच्चों का जीवन बनाती हैं. महिलाएं अपनी ताकत को पहचानें और उदाहरण पेश करें. देश में अनेक महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने शादी नहीं की है और देश ही दुनिया में वे शीर्ष पदों पर हैं. हर क्षेत्र में वे नाम कमा रही हैं. ये वे महिलाएं हैं जिन्होंने हार नहीं मानी. अपना रास्ता खुद चुना. आत्मनिर्भर बनीं. ऐसा नहीं है कि उन्हें बने-बनाये रास्ते मिले. उन्होंने संघर्ष कर, मेहनत कर रास्ता बनाया. अपनी जगह बनायी.

दुनिया के उदाहरण को छोड़ भी दें, तो भारत में भी श्रीमती इंदिरा गांधी, किरण बेदी, सुनीता विलियम्स (भारतीय मूल की), लता मंगेशकर, ममता बनर्जी ने अपने-अपने क्षेत्र में साबित किया है कि महिलाओं की ताकत क्या होती है. छोटी-छोटी बातों से हार मान कर, जान देने से, भाग्य के भरोसे बैठने से किसी समस्या का हल नहीं निकलता.

पति कम पैसा कमाता है तो उसे कोसने से बेहतर है, उसका साथ दें. श्रम कर परिवार की आय बढ़ाने का रास्ता तलाशें. बच्चों की जान लेकर खुद जान देना, इसका रास्ता नहीं हो सकता. यह बहादुरी नहीं है. खुले दिमाग से सोचें. सही और गलत में फर्क करें. गलत कदम उठाने के पहले दस बार सोचें. अगर पति अपने पिता के इलाज पर पैसा खर्च कर रहा है (शराब पर नहीं), तो उसमें गलत क्या है? यह उसका धर्म है. दायित्व है. यह भी सही है कि पत्नी और बच्चों की भी जिम्मेवारी उसकी है. किसी को छोड़ नहीं सकता. सामंजस्य कर दोनों को देखना ही श्रेष्ठ रास्ता है. जो आप बोयेंगे, वही काटेंगे भी. इस बात का ख्याल करना होगा.

ईश्वर ने जिंदगी दी है. उसे पूरा जीना चाहिए. जीवन प्रकाशमय हो, इसकी तैयारी करनी चाहिए. भौतिक सुख की ओर जब-जब इंसान भागता है, कष्ट को आमंत्रित करता है. बेहतर है अपनी ताकत को इंसान पहचाने, अंतरमन से निष्पक्ष होकर चीजों को देखना सीखे, तो यही जीवन स्वर्ग बन सकता है.

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