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बिहार चुनाव : अंतिम चरण में बीजेपी गोमाता की शरण में

पटना : बिहार चुनाव का अंतिम चरण आते-आते बीजेपी एक बार फिर गाय माता की शरण में चली गयी है. पार्टी ने गोमाता को लेकर अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित करवाया है. विज्ञापन में कुछ सवाल किया गया है और अंत में यह संदेश लिखा गया है कि जवाब नहीं तो वोट नहीं. क्या है […]

पटना : बिहार चुनाव का अंतिम चरण आते-आते बीजेपी एक बार फिर गाय माता की शरण में चली गयी है. पार्टी ने गोमाता को लेकर अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित करवाया है. विज्ञापन में कुछ सवाल किया गया है और अंत में यह संदेश लिखा गया है कि जवाब नहीं तो वोट नहीं.

क्या है विज्ञापन में

विज्ञापन की शुरूआत में लिखा गया है कि मुख्यमंत्री जी आपके साथी हर भारतीय की पूज्य गाय का अपमान बार-बार करते रहे और आप चुप रहे. विज्ञापन में लिखा गया है कि वोट बैंक की राजनीति बंद कीजिए और जवाब दीजिए क्या आप अपने साथियों के इन बयानों से सहमत हैं. उसके बाद तीन नेताओं के गाय और गोमांस को लेकर दिए गए बयानों को दर्शाया गया है.

सबसे पहला बयान लालू प्रसाद यादव का है. जिसमें लिखा गया है कि लालू ने कहा था कि बीफ जो खाता है खाता है, हिंदू में नहीं खाता है क्या बीफ ? जो बाहर जाता है बीफ खा रहा है कि नहीं ? हिंदुस्तान में भी तो बीफ खा रहा है. जो मांस खाता है उसको गाय और बकरा में क्या फर्क पड़ता है. लालू के बाद राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के बयान का भी उसमें उल्लेख है. उसमें लिखा गया है कि रघुवंश ने कहा था कि वेद पुराण में क्या सब लिखा है, ऋषि-महर्षि भी खाते थे पहले के जमाने में. जबकि विज्ञापन में कर्नाटक के मुख्यमंत्री का भी बयान है जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर मैं बीफ खाना चाहूं तो कोई रोक नहीं सकता.

अंतिम चरण और गाय

राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो पांचवे फेज से ठीक पहले गोमांस और गाय को लेकर इस तरह का विज्ञापन देना सियासत के नजरिए से कुछ ना कुछ तो जरूर कहता है. जातिगत गोलबंदी और सीमांचल की सियासत पर नजर डालें तो इस इलाके में एनडीए को पूर्व में भी बहुत सफलता नहीं मिली है. इन इलाकों में मुस्लिम वोटों की संख्या ज्यादा है और बाकी वोटर भी अपने-अपने हिसाब से बंटे हुए हैं. गाय का गणित यह साफ दिखाता है कि बीजेपी वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए इस तरह का विज्ञापन दे रही है. बीजेपी का लक्ष्य है कि इस तरह के विज्ञापनों के जरिए मतदाताओं को लुभाया जा सके.

क्या होगा धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण

राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि वर्ष 2010 के चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो इन इलाकों में 23 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था. पिछले चुनाव में भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लडने वाली जदयू की झोली में 20 सीटें आई थीं. जबकि लालू प्रसाद के राजद ने आठ, कांग्रेस ने तीन, लोजपा ने दो सीटें हासिल की थीं. एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी.
इस बार भाजपा ने सबसे अधिक 38 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं जबकि लोजपा के 11 प्रत्याशी हैं. केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने पांच विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी उतारे हैं और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा ने तीन विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी उतारे हैं. जदयू ने 25 सीटों पर, राजद ने 20 सीटों पर और कांग्रेस ने 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. सीमांचल की राजनीति के बारे में जानकारी रखने वाले बताते हैं कि गाय का मुद्दा उठाने का सिर्फ एक ही मकसद है कि बीजेपी इन इलाकों में ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सके. बीजेपी को इन इलाकों से ज्यादा सीट मिलने का मतलब उसकी जीत को सुनिश्चित होने में देर नहीं लगेगी.

कितना पड़ेगा प्रभाव

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सारा खेल मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का है. क्योंकि वहां की सियासी गणित को देंखे तो गाय का गणित बीजेपी को कुछ फायदा पहुंचा सकता है. सीमांचल के जिलों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक की भूमिका में होते हैं. मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है. किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 45, अररिया में 35 और पूर्णिया में 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. मुस्लिम भी ओवैसी के प्रवाह में आकर सीमांचल में हिंदुओं को ध्रुवीकृत करके मंडल की राजनीति की धार को 24 सीटों पर कुंद कर सकते हैं.

आयोग से शिकायत

हालांकि इस विज्ञापन के बाद महागंठबंधन के कान खड़े हो गए हैं. महागंठबंधन की ओर से एक प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग से बीजेपी के खिलाफ शिकायत करेगा. इस प्रतिनिधिमंडल में पवन वर्मा, केसी त्यागी और महागंठबंधन के नेता शामिल रहेंगे.

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