उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों द्वारा नि:शुल्क सेवाएं देने का वादा करने का मुद्दा उठाने वाली याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किए जाने का शुक्रवार को आदेश दिया. प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उसके समक्ष तर्क रखा गया कि एस सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार एवं अन्य के मामले में शीर्ष अदालत के दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए 2013 के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.
'Freebies' by political parties: Supreme Court says that there can be no denying that in an electoral democracy, the true power lies with the electorate and the electorate judges the parties and candidates. pic.twitter.com/V9pRDAf8Ts
— ANI (@ANI) August 26, 2022
पीठ ने कहा, इसमें शामिल मुद्दों की जटिलताओं एवं सुब्रमण्यम बालाजी मामले में इस अदालत के दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले को रद्द करने के अनुरोध को देखते हुए, हम याचिकाओं के इस समूह को प्रधान न्यायाधीश का आदेश मिलने के बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि चार सप्ताह बाद इन याचिकाओं को सूचीबद्ध किया जाएगा.
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न्यायालय ने 2013 के अपने फैसले में कहा था कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 में निर्धारित मापदंडों की समीक्षा करने और उन पर विचार करने के बाद, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को भ्रष्ट आचरण घोषित करने के लिए धारा 123 के तहत नहीं पढ़ा जा सकता.
गौरतलब है कि बीते मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त चीजों के वादों का विरोध करने वाली जनहित याचिका पर विचार करते हुए कहा था कि भाजपा समेत सभी राजनीतिक दल मुफ्त योजनाओं के पक्ष में हैं और इसलिए इससे निपटने के लिए न्यायिक प्रयास किया गया है. शीर्ष अदालत ने मुफ्त योजनाओं के मुद्दे पर तथा इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप पर बयान देने के लिए द्रविण मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) और उसके कुछ नेताओं से अप्रसन्नता भी जाहिर की थी.