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रोजगार व दिहाड़ी के मामले में कैसी है गांवों की स्थिति, जानिए कौन-से राज्य हैं टॉप पर

भारत में कामगारों की मजदूरी को लेकर बड़े राज्यों की तुलना में छोटे राज्य अपने कामगारों को कहीं अधिक मजदूरी दे रहे हैं. देशभर में कृषि क्षेत्र के श्रमिकों को मध्य प्रदेश में सबसे कम, 217.8 रुपये ही मजदूरी दी जाती है, जबकि 220.3 रुपये के साथ गुजरात दूसरे स्थान पर है.

आरती श्रीवास्तव

भारत की आधे से अधिक जनसंख्या गांवों में रहती है. इस लिहाज से देश के विकास का रास्ता गांवों से होकर गुजरना चाहिए और यहां के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अवसर उपलब्ध कराना चाहिए. जब अपने गांव-घर के आसपास ही लोगों को रोजगार मिल जायेगा और इससे इतनी कमाई हो जायेगी कि वे सही तरह से अपने घर-परिवार का भरण-पोषण कर सकेंगे, तभी सच मायने में गांवों का विकास संभव है, पर अभी तो ऐसा होता नहीं दिख रहा है. ग्रामीण मजदूरी को लेकर रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़े इसी बात की तस्दीक करतेेे हैं. रोजगार व दिहाड़ी के मामले में कैसी है गांवों की स्थिति, कौन-से राज्य शीर्ष और कौन-से निचले स्तर पर हैं, समेत अनेक जानकारियों को समेटे हुए है.

ग्रामीण मजदूरी बढ़ाने की आवश्यकता

वित्त वर्ष 2021-2022 के लिए ग्रामीण भारत में कामगारों की मजदूरी को लेकर रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि बड़े राज्यों की तुलना में छोटे राज्य अपने कामगारों को कहीं अधिक मजदूरी दे रहे हैं. मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कृषि क्षेत्र के कामगारों को देशभर में सबसे कम मजदूरी मिलती है. जबकि केरल, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु ऐसे राज्य हैं जो अपने कामगारों को देश में सबसे अधिक मजदूरी देते हैं. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र व मजदूरों की आर्थिक सेहत सुधारने के लिए मजदूरी में सुधार करने की आवश्यकता है.

कृषि क्षेत्र में न्यूनतम मजदूरी में मध्य प्रदेश-गुजरात टॉप पर

देशभर में कृषि क्षेत्र के श्रमिकों को मध्य प्रदेश में सबसे कम, 217.8 रुपये ही मजदूरी दी जाती है, जबकि 220.3 रुपये के साथ गुजरात दूसरे स्थान पर है. इन दोनों राज्यों के अतिरिक्त देश में अनेक ऐसे राज्य हैं जो श्रमिकों को उनके कार्य के बदले में राष्ट्रीय औसत 323.2 रुपये से भी कम की दैनिक मजदूरी देते हैं. ऐसे समय में जब महंगाई उच्च स्तर पर है और ब्याज दरें बढ़ रही हैं, कामगारों के लिए इतने कम पैसों में घर-परिवार चलाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है. उदाहरण के लिए, बिहार के खेतों में काम कर रहे श्रमिक यदि महीने में 30 दिन भी काम करें, तो वे महीने का महज 8,709 रुपये ही कमा पायेंगे, पर यदि वे सप्ताह में एक दिन विश्राम के साथ 26 या 25 दिन काम करते हैं, तो महीने में उनकी कमाई 7,547 या 7,257 रुपये ही होगी, क्योंकि इस राज्य में खेतिहर मजदूरों के लिए प्रतिदिन महज 290.3 रुपये ही मजदूरी निर्धारित है. ऐसे में ये श्रमिक अपने घर-परिवार का खर्च चलाने के लिए दूसरे राज्य जाने को मजबूर हैं.

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गैर-कृषि क्षेत्र में भी केरल पहले स्थान पर

गैर-कृषि क्षेत्र में काम कर रहे पुरुष कामगारों को पैसे देने के मामले में एक बार फिर मध्य प्रदेश और गुजरात फिसड्डी साबित हुए हैं. इन राज्यों की दैनिक मजदूरी क्रमश: 230.3 और 252 रुपये ही है. दिहाड़ी के मामले में महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार की स्थिति भी अच्छी नहीं है. महाराष्ट्र में प्रतिदिन श्रमिकों को 277.2, कर्नाटक में 297.9 और बिहार में 299.1 रुपये ही उनकी हाड़-तोड़ मेहनत के बदले मिलते हैं. यहां भी इन राज्यों की दैनिक मजदूरी राष्ट्रीय औसत 326.6 रुपये से कम ही है. जबकि केरल, जम्मू व कश्मीर, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य दैनिक मजदूरी में यहां भी शीर्ष पर हैं.

राष्ट्रीय औसत से दोगुना कमाते हैं कामगार केरल में

कृषि क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों को पैसे देने के मामले में केरल शीर्ष पर है. यहां एक मजदूर दैनिक आधार पर 726.8 रुपये कमाता है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुने से भी अधिक है. ऐसे में एक मजदूर महीने में 25 दिन भी काम करे, तो वह 18,170 रुपये कमा लेगा. चूंकि केरल में मजदूरी देशभर में सबसे अधिक है, ऐसे में यह राज्य उन राज्यों के मजदूरों को भी आकर्षित करता है, जो पैसे देने के मामले में फिसड्डी हैं. इसी कारण करीब 25 लाख प्रवासी श्रमिक इस राज्य में रह रहे हैं.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

विशेषज्ञों की मानें, तो कृषि क्षेत्र की अपेक्षा गैर-कृषि क्षेत्र की मजदूरी में अधिक कमी दर्ज हुई है. इससे साफ पता चलता है कि गैर-कृषि क्षेत्र के कामगारों की तुलना में कृषि क्षेत्र की स्थिति अच्छी है. ऐसे में रोजगार व नौकरी के लिहाज से बहुत से श्रमिकों को निर्माण क्षेत्र में कम वेतन वाली नौकरियों की तरफ जाने की जरूरत है, क्योंकि सेवा क्षेत्र अच्छा नहीं कर रहा है.

बेरोजगारी दर में बढ़त

ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी में बढ़त के चलते अक्तूबर में बेरोजगारी दर 1.3 प्रतिशत अंक (परसेंट प्वाइंट) बढ़कर 7.8 पर पहुंच गयी, इस कारण 6.43 प्रतिशत के साथ सितंबर में इस दर में जो गिरावट दर्ज हुई थी, वह उलट गयी. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार, 27 नवंबर, 2022 को देश की बेरोजगारी दर 7.78 प्रतिशत थी, जिसमें शहरी क्षेत्र का योगदान 8.71 प्रतिशत, जबकि ग्रामीण क्षेत्र का 7.34 प्रतिशत था.

एलपीआर में भी दर्ज हुई कमी

एक रिपोर्ट के अनुसार, अक्तूबर में बेरोजगारी दर में वृद्धि के साथ ही श्रम भागीदारी दर (लेबर पार्टिसिपेशन रेट (एलपीआर)) में भी थोड़ी गिरावट- सितंबर के 39.3 प्रतिशत से अक्तूबर में 39 प्रतिशत- दर्ज हुई. सीएमआईई की मानें, तो बेरोजगारी दर बढ़ने के साथ जब एलपीआर में भी गिरावट दर्ज होने लगे, तो इसका अर्थ है कि रोजगार दर में कमी आ रही है. एलपीआर में निरंतर गिरावट गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह बताता है कि कामकाजी जनसंख्या का एक छोटा अनुपात रोजगार के लिए तैयार हो रहा है.

निर्माण कार्य मजदूरी में भी पीछे हैं कई बड़े राज्य

ग्रामीण क्षेत्र में कृषि कार्यों के बाद निर्माण कार्य भी बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार देता है. यहां काम कर रहे लोगों (पुरुषों) की दैनिक मजदूरी का राष्ट्रीय औसत 373.3 रुपये प्रति कामगार है. पर यहां भी कई राज्यों की स्थिति अच्छी नहीं है. त्रिपुरा 250 रुपये, मध्य प्रदेश 266.7 रुपये, गुजरात 295.9 रुपये दिहाड़ी के साथ देश में निचले स्थान पर है. केरल ने इस क्षेत्र में भी बाजी मारी है. यह राज्य निर्माण कार्य के श्रमिकों को 837.7 रुपये दैनिक मजदूरी के हिसाब से भुगतान करता है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुना होने के साथ बाकी राज्यों से कहीं अधिक है. इतना ही नहीं, जम्मू व कश्मीर और तमिलनाडु की दैनिक मजदूरी भी क्रमश: 519.8 व 478.6 रुपये है.

मौसम की अनियमितता का ग्रामीण आय पर प्रभाव

क्रिसिल के एक अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण आय की संभावनाएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि मौसम कैसा रहेगा. इसका अर्थ यह हुआ कि कृषि और इससे जुड़े क्षेत्र ग्रामीण आय का प्रमुख स्रोत हैं. परंतु अनियमित मौसम और उसके चरम की घटनाओं की बारंबारता के कारण कृषि, उससे जुड़े कार्य समेत अनेक क्षेत्रों के प्रभावित होने से ग्रामीण रोजगार और आय पर बीते समय में काफी प्रभाव पड़ा है तथा लोगों की आय में कमी आयी है. हालांकि एक सच यह भी है कि मौसम के अनियमित होने और इससे खेती के प्रभावित होने के बाद भी मनरेगा नौकरियों की मांग में कमी आयी है, जो नौकरी के नजरिए से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक उत्साहजनक संकेत है, पर कम मजदूरी ग्रामीण मांग के लिहाज से चिंता का विषय है.

ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश रोजगार व नौकरियां कृषि पर निर्भर हैं जो मानसून और रबी व खरीफ उत्पादन से प्रभावित होती हैं. मई 2021 से फरवरी 2022 के दौरान कृषि और गैर-कृषि श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि क्रमशः 4.4 प्रतिशत और 3.6 प्रतिशत के औसत पर रही एवं इसका कारण ग्रामीण क्षेत्र में कम मुद्रास्फीति व कमजोर मांग थी. हालांकि, फरवरी 2022 में कृषि मजदूरी बढ़कर छह प्रतिशत हो गयी. जबकि इसी अवधि में गैर-कृषि क्षेत्र की मजदूरी बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गयी, आरबीआई की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार.

ग्रामीण रोजगार महामारी पूर्व स्तर से अभी भी कम

वास्तविक ग्रामीण मजदूरी (रियल रूरल वेज) इस वर्ष सितंबर तक लगातार दसवें महीने नकारात्मक रही. ग्रामीण आय में आयी इस कमी का प्रमुख कारण बढ़ती महंगाई व ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुस्ती है जिस कारण कामगारों की मांग ठहर गयी है, और इसके चलते मजदूरी में कोई खास बदलाव नहीं हो पा रहा है और वह स्थिर होकर रह गयी है. इससे भी चिंताजनक यह है कि ग्रामीण भारत को अभी भी उन लाखों नौकरियों का फिर से सृजन करना बाकी है जो महामारी की अवधि में खत्म हो गयी थीं. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के एक अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण रोजगार की संख्या महामारी पूर्व की स्थिति से अभी भी 83 लाख (8.3 मिलियन) कम हैं. सेवा क्षेत्र को अभी भी उन 79 लाख (7.9 मिलियन) नौकरियों का पुन: सृजन करना है, जो महामारी के दौरान समाप्त हो गयी थीं. ग्रामीण क्षेत्र की नौकरी में आये संकुचन के कारण घर की साफ-सफाई, खाना पकाना, कपड़े धोना जैसे घरेलू काम करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है और यह अक्तूबर 2019 यानी महामारी पूर्व के स्तर से अधिक है. फिर भी, हालिया महीनों में इस तरह के कार्य करने में कम ही लोगों ने रुचि दिखाई है.

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