नयी दिल्ली : जस्टिस सी एस कर्णन को सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने की जेल की सजा सुनायी है. उन्हेंअदालतकी अवमानना का दोषी माना गया है. गौरतलब है कि कल कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट केमुख्य न्यायाधीशजस्टिस जेएस खेहर और सात अन्य जजों क पांचसालकीजेलकी सजा सुना दी थी. बताया जारहा है कि जस्टिस कर्णनदेशके पहले सीटिंग जजहैंजिनके खिलाफउच्चतम अदालत ने सजा सुनायी है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसके आदेश का तत्काल पालन किया जाए. इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति कर्णन द्वारा पारित आदेशों की सामग्री को मीडिया में प्रकाशित करने पर भी पाबंदी लगाई है.सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को सुनायी गयी सजा को तत्काल प्रभाव सेपालन करने का आदेश दिया है.
ध्यान रहे कि कल ही एससी-एसटी प्रताड़ना एक्ट 1989 के तहत जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट केआठ न्यायधीशों के खिलाफ फैसला सुनाया था. जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर न्यायिक ताकतों के दुरूपयोग करने का आरोप लगाया था. उच्चतम न्यायलय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया. जस्टिस कर्णन ने जिन सात जजों पर प्रताड़ना का आरोप लगाया, उनमें जस्टिस दीपक मिश्रा, रंजन गगोई, मदन बी लोकुर, पिनाकी चंद्र घोष और कूरियन जोसफ शामिल हैं.
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पूर्व में ही शुरू हुई थी अवमानना की कार्यवाही
कलकत्ता उच्च न्यायालय के जज सीएस कर्णनकेखिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में ही कोर्ट की अवमानना के लिए कार्यवाही शुरू की थी.भारतीयन्यायपालिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ,जब सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के किसी वर्तमान जज पर यह कार्यवाही की. कोर्ट नेउनकेखिलाफ अवमानना मामले में पेश नहीं होने पर जमानती वारंट जारी करते हुए उन्हेंज्यूडिशयल और ऐडमिनिस्ट्रेटिव काम से भी रोकदियाथा. इसके बाद जस्टिस कर्णन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर सहित सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायधीशों के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी थी सूची
जस्टिस कर्णन ने 23 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट एवं विभिन्न हाइकोर्टों के 20 जजों की सूची भेजी थी, जिन्हें उन्होंने भ्रष्ट बताते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आठ फरवरी को कर्णन के खिलाफ नोटिस जारी करते हुए पूछा उनके इस पत्र को कोर्ट की अवमानना क्यों नहीं माना जाए? वे शुरुआत से ही कॉलेजियम पर आरोप लगाते रहे हैं कि यहां दलित विरोधी नीति अपनाई जाती है. 2011 से ही वे आरोप लगाते रहे हैं.