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सरकार मृत्युदंड समाप्त करने के पक्ष में नहीं , बिल को किया गया खारिज

नयी दिल्ली: देश में मृत्युदंड के विरोध में मानव अधिकार समेत कई संगठनों ने आवाज बुलंद की है. आज सरकार ने इस पर सीधा जवाब देते हुए कहा कि आज जो स्थिति है उसको देखते हुए मृत्युदंड के प्रवाधान को खत्म नहीं किया जा सकता. भाकपा के डी राजा ने इस पर एक निजी संकल्प […]

नयी दिल्ली: देश में मृत्युदंड के विरोध में मानव अधिकार समेत कई संगठनों ने आवाज बुलंद की है. आज सरकार ने इस पर सीधा जवाब देते हुए कहा कि आज जो स्थिति है उसको देखते हुए मृत्युदंड के प्रवाधान को खत्म नहीं किया जा सकता. भाकपा के डी राजा ने इस पर एक निजी संकल्प पर चर्चा के दौरान गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने राज्यसभा में बयान दिया कि सरकार इसके पक्ष में नहीं है. इस बिल को चर्चा के बाद उच्च सदन ने इस संकल्प को ध्वनिमत से खारिज कर दिया.

दोषी व्यक्ति को मृत्युदंड होना चाहिये
गृह राज्यमंत्री ने कहा कि इस संबंध में विधि आयोग की सिफारिशें प्राप्त हुई हैं जिसमें आतंकवाद के मामले में मृत्युदंड की सजा का पक्ष लिया गया है. उन्होंने कहा कि भारत की स्थितियों में मृत्युदंड की सजा को समाप्त नहीं किया जा सकता और सदन में पूर्व में निर्भया मामले पर चर्चा के दौरान सदस्यों की भावना यह थी कि दोषी व्यक्ति को मृत्युदंड होना चाहिये.
विधि आयोग ने आतंकवाद एवं युद्ध छेडने के अलावा मृत्युदंड का विरोध किया
गृह राज्यमंत्री ने कहा कि विधि आयोग की सिफारिशों पर राज्यों से भी परामर्श मांगा गया है तथा छत्तीसगढ, मिजोरम, दिल्ली, केरल, सिक्किम, गोवा सहित नौ राज्य से उनकी रिपोर्ट भी आ गई है और बाकी राज्यों की ओर से रिपोर्ट का इंतजार है. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 71, 134 एवं 161 जैसे कई अनुच्छेद हैं जो मृत्युदंड का प्रावधान करते हैं. उच्चतम न्यायालय भी कह चुका है कि मृत्युदंड का दुर्लभतम परिस्थिति में उपयोग किया जा सकता है. रिजिजू ने कहा कि विधि आयोग ने आतंकवाद एवं युद्ध छेडने के अलावा अन्य मामलों में मृत्युदंड समाप्त करने का समर्थन किया है.
58 देशों में ही मौत की सजा का प्रावधान
इससे पहले निजी संकल्प पर चर्चा में भाग लेते हुए तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय ने इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय की राय का हवाला देते हुए कहा कि न्यायालय ने भी दुर्लभतम मामलों में फांसी दिये जाने की बात की है. उन्होंने इस मामले को विधि आयोग को भेजकर उनसे सिफारिशें प्राप्त करने की मांग की. जदयू के अनिल कुमार साहनी ने कहा कि विश्व के लगभग 58 देशों में ही मौत की सजा का प्रावधान है जबकि लगभग 140 देशों में इस सजा को समाप्त कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि लोगों की नकारात्मक सोच से अपराध जन्म लेते हैं जबकि लोगों की सोच में सुधार लाने और उन्हें सकारात्मक सोच से लैस करने की जररत है. उन्होंने कहा कि सरकार इस बात का तुलनात्मक अध्ययन कराये कि जिन देशों में मौत की सजा की व्यवस्था है क्या वहां अपराध की दर में इस सजा से मुक्त देश के मुकाबले कमी आई है.
माकपा ने की फांसी की सजा को समाप्त करने की मांग
माकपा के टी के रंगराजन ने संकल्प का समर्थन करते हुए और फांसी की सजा को समाप्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि इस मामले में विधि आयोग की राय ली जानी चाहिए. द्रमुक के तिरचि शिवा ने कहा कि मृत्युदंड इस बात का आश्वासन नहीं है कि इससे अपराध रुक जाएंगे। उन्होंने कहा कि जब कई देशों ने इस सजा को समाप्त कर दिया है तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता. द्रमुक के ही टी के एस ईलनगोवन ने कहा कि मृत्युदंड अपराध को रोकने में कारगर साबित नहीं हो सकती और इससे अपराधी में सुधार नहीं लाया जा सकता.
मृत्युदंड के अधिकतम मामलों में दलित अथवा भाषाई अल्पसंख्यक क्यों ?
अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने दुर्लभतम मामलों में ही ऐसे सजा दिये जाने का पक्ष लिया है. उन्होंने कहा कि ऐसे अपराधियों की सजा को कम करने या माफ करने के राज्यों के अधिकार में केंद्र को अतिक्रमण नहीं करना चाहिये. कांग्रेस के आनंद भास्कर रापोलू ने इस मामले में सरकार से एक आयोग बनाने की मांग की जो इस संबंध में जटिलताओं का पता लगाये। उन्होंने कहा कि इस बात का पता लगाया जाना चाहिये कि मृत्युदंड के अधिकतम मामलों में दलित अथवा भाषाई अल्पसंख्यक क्यों पाये जाते हैं. सपा के चौधरी मुनव्वर सलीम ने कहा कि 94 प्रतिशत मामलों में फांसी की सजा पाये लोगों में दलित अथवा धार्मिक अल्पसंख्यक होते हैं. उन्होंने कहा कि हमें अपराधी को नहीं बल्कि अपराध को समाप्त करने की ओर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये.
Prabhat Khabar Digital Desk
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