नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 15 मुजरिमों की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करते हुये आज कहा कि भारत में प्रतिशोध का कोई संवैधानिक मूल्य नहीं है.प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘‘ सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रतिशोध का कोई संवैधानिक मूल्य नहीं है.
भारत में, यहां तक कि आरोपी को भी संविधान के तहत वस्तुत: संरक्षण प्राप्त है और यह अदालत का कर्तव्य है कि इसकी रक्षा और संरक्षण करे.’‘ पीठ ने कहा कि दया की गुहार करना संवैधानिक अधिकार है जो कार्यपालिका के विवेकाधिकार या मनमानी के अधीन नहीं है.
पीठ ने कहा कि जिस तरह मौत की सजा विधिवत पारित की जाती है, उसी प्रकार सजा का कार्यान्वयन भी संवैधानिक व्यवस्था के अनुरुप होना चाहिए न कि इसका कार्यान्वयन संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए होना चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने दया याचिकाओं के निपटारे के लिए कोई समयसीमा नहीं तय की, इसलिए ऐसे मामलों में फैसला उचित समय के अंदर पूरी सावधानी से किया जाना चाहिए.