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सूखे के प्रति ‘शतुरमुर्ग की तरह रवैया”” नहीं अपनाएं सरकार : सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र से राज्यों को मनरेगा योजना के लिए सारी बकाया राशि और जरुरी धन देने को कहा और साथ ही निर्देश दिया कि वह सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसानों को उनकी मजदूरी देने में हुई देरी के लिए मुआवजे का भुगतान करे. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘सरकार वित्तीय कमी […]

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र से राज्यों को मनरेगा योजना के लिए सारी बकाया राशि और जरुरी धन देने को कहा और साथ ही निर्देश दिया कि वह सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसानों को उनकी मजदूरी देने में हुई देरी के लिए मुआवजे का भुगतान करे. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘सरकार वित्तीय कमी का रोना रोकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं छुपा सकती.’ न्यायाधीश एम बी लोकुर और एन वी रामन्ना की पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आयुक्तों की नियुक्ति करें और विशेष रुप से सूखा प्रभावित इलाकों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुदृढ किया जाए.

पीठ ने इसके साथ ही सरकार को केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषद की स्थापना करने और फसलों के नुकसान का मुआवजा सुनिश्चित करने को भी कहा. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्य यह नहीं कह सकते कि वे संसद द्वारा बनाए गए कानून का पालन नहीं करेंगे और ‘‘कानून का शासन राज्यों समेत सभी के लिए बाध्यकारी होता है.’ पीठ ने निर्देश दिया कि सूखा प्रभावित इलाकों में पूरे गर्मी के मौसम में मध्याह्न भोजन जारी रहना चाहिए. हालांकि अदालत ने अपने निर्देशों के क्रियान्वयन के लिए अदालत आयुक्तों की नियुक्ति करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह याचिका को निपटा नहीं रहा है और इस पर एक अगस्त को सुनवाई होगी. अदालत ने आज विभिन्न मुद्दों से संबंधित तीन हिस्सों में फैसला दिया जिसमें से पहले हिस्से का फैसला 11 मई को दिया गया था.

अदालत ने 11 मई को कहा था कि यदि राज्य सरकारें सूखे जैसी आपदाओं के प्रति ‘शतुरमुर्ग की तरह रवैया’ अपनाना जारी रखती हैं तो केंद्र अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड सकता क्योंकि आम आदमी संबंधी मुद्दों के समाधान की जिम्मेदारी उस पर है. उसने सूखे जैसी स्थिति से निपटने के लिए कई दिशा निर्देश दिए थे. पीठ ने कहा था कि यदि केंद्र और राज्य सरकारें किसी गहराते संकट या उभरते संकट पर कोई कदम उठाने में विफल रहती हैं तो न्यायपालिका उचित निर्देश जारी करने पर विचार कर सकती है और करना चाहिए लेकिन ‘‘एक लक्ष्मण रेखा’ जरुर खींची जानी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस मामले में ‘‘इच्छाशक्ति का अभाव’ इस बात से पूरी तरह जाहिर होता है कि गुजरात, बिहार और हरियाणा अपने यहां मौजूद हालात के बारे में पूरे तथ्यों का खुलासा नहीं कर ‘इसे स्वीकार करने से ही बच रहे हैं कि सूखे जैसी स्थिति उनके यहां है, समाधान की बात तो छोड ही दीजिए’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह काफी हैरान करने वाली बात है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के लागू होने के दस साल बाद भी न तो राष्ट्रीय योजना बनायी गयी और न ही कोई राष्ट्रीय आपदा समाधान कोष बनाया गया है.

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