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…ताकि बनी रहे पृथ्वी दिवस की सार्थकता!

-सुधीर कुमार- औद्योगिक विकास की गोद में पला-बढ़ा पिछला एक-दो दशक पर्यावरणीय दृष्टि से चिंता का विषय रहा है. इस दौरान,जीवन के भौतिकवादी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन कर प्राकृतिक चक्र को तोड़ने की कोशिशें की गयी,जिससे आज प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हुई है.औद्योगिक विकास की आड़ में पृथ्वी के […]

-सुधीर कुमार-

औद्योगिक विकास की गोद में पला-बढ़ा पिछला एक-दो दशक पर्यावरणीय दृष्टि से चिंता का विषय रहा है. इस दौरान,जीवन के भौतिकवादी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन कर प्राकृतिक चक्र को तोड़ने की कोशिशें की गयी,जिससे आज प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हुई है.औद्योगिक विकास की आड़ में पृथ्वी के साथ मानव का सौतेला व्यवहार जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों के सृजन के लिए उत्तरदायी रहा है.

प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अब शोषण के रूप में परिणत हो चुका है.पारिस्थितिक तंत्र के टूटने के कारण प्रतिदिन पृथ्वी का कुछ हिस्सा आपदा से प्रभावित रहता है. इक्वाडोर में आये हालिया भूकंप से चार सौ से अधिक लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं.

पृथ्वी पर उपलब्ध जैव विविधता के संरक्षण तथा प्राकृतिक असंतुलन में योगदान देने वाले मानवीय गतिविधियों पर लगाम लगाने के प्रति आमजन को जागरुक करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ का आयोजन किया जाता है.

इस तरह के दिवस का आयोजन सबसे पहले 1970 में किया गया था. इस दिन तमाम तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर बच्चों से लेकर बुजुर्गों,समाज के सभी वर्ग के लोगों को इस दिशा में जागरुक करने का प्रयास किया जाता है. प्रतिवर्ष एक थीम(विषय)के सहारे इस दिवस की सार्थकता सिद्ध की जाती है. 2016 के विश्व पृथ्वी दिवस की थीम है-‘पृथ्वी के लिए पेड़’. यह थीम वनीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से रखा गया है. संतुलित पर्यावरण की स्थापना में पेड़-पौधे महती भूमिका अदा करते हैं. ये वातावरण से अतिरिक्त व नुकसानदेह कार्बन-डाईआक्साइड को अपने अंदर सोख कर ग्लोबल वार्मिंग से हमारी रक्षा करते हैं. एक वर्ष में एक एकड़ के दरमियान लगे पेड़ उतना कार्बन सोख लेते हैं,जितना एक कार औसतन 26000 मील की दूरी तय कर उत्पन्न करता है.

वृक्ष,पर्यावरण से प्रदूषक गैसों जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड,अमोनिया,सल्फर डाइऑक्साइड तथा ओजोन को अपने अंदर समाहित कर हमें सांस लेने के लिए शुद्ध वातावरण तैयार करते हैं. बढ़ते प्रदूषण के कारण इनकी गुणवत्ता प्रभावित हो रही है.

हमारी पृथ्वी सौरमंडल का इकलौता ग्रह है,जहां जीवन जीने की अनुकूल परिस्थितियां विद्यमान हैं. यहां हम खुली हवा में सांस लेते हैं. शुद्ध पेयजल पीते हैं और आराम से जीवन भी गुजारते हैं. कृषिगत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के क्रमशः औद्योगिक और नगरीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तित होने के परिणामस्वरुप प्राकृतिक असुंतलन की स्थिति उत्पन्न हुई है.

वर्तमान समय में पृथ्वी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती-बढ़ती जनसंख्या के नियंत्रण की है.धरती की कुल आबादी आज आठ अरब के इर्द-गिर्द पहुंच चुकी है.बढ़ती आबादी,उपलब्ध संसाधनों पर नकारात्मक दबाव डालती है,जिससे वसुंधरा की नैसर्गिकता प्रभावित होती है.बढ़ती जनसंख्या के आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पृथ्वी के शोषण की सीमा आज चरम पर पहुंच चुकी है.जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम से कम करना दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है.गत दिनों पेरिस में आयोजित सम्मेलन इसी दिशा में एक सकारात्मक प्रयास था.आज,ग्लोबल वार्मिंग अपने ऊफान पर है.

ओजोन परत का क्षय अनवरत जारी है.अनियंत्रित विकास से जल,मृदा,वायु सभी प्रदूषित हो रहे हैं.यह ना सिर्फ पेड़-पौधों के लिए खतरे की स्थिति है,बल्कि इसके खतरे को कम करना मानव समुदाय के लिए भी एक बड़ी चुनौती है.वर्तमान में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है.संसार के कई भागों में सूखे की उत्पन्न स्थिति से भूजल स्तर घटा है और नतीजा यह है कि व्यक्ति को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो रहा.वैज्ञानिकों और विद्वानों का एक वर्ग,जब तीसरा विश्व युद्ध पानी के कारण होने की बात करते हैं,तो वे गलत नहीं हैं.

अनुमान है कि निकट भविष्य में पानी की स्थिति दुर्लभ संसाधनों जैसी हो जाएगी.वर्तमान में विश्व की एक तिहाई जनसंख्या ताजे पानी की पहुंच से दूर है,जिसके 2050 तक दो तिहाई होने की संभावना है.अपनी प्यास बुझाने के लिए पहले पृथ्वी की प्यास बुझानी होगी.उसका कंठ भी सूखा है.जल संसाधन के सभी रुपों का संरक्षण निहायत जरुरी है.दूसरी तरफ,ग्लोबल वार्मिंग की समस्या आज विकराल रुप धारण करती जा रही है.वैश्विक ऊष्मण ने पृथ्वी पर उपस्थित सभी सजीवों का जीवन-यापन करना कठिन कर दिया है.पिछली सदी के दौरान धरती का औसत तापमान 1.4 फारेनहाइट बढ़ चुका है.अगले सौ साल के दौरान इसके बढ़कर 2 से 11.5 फारेनहाइट होने का अनुमान है.

वैज्ञानिकों का मत है कि सदी के अंत तक धरती के तापमान में 0.3 डिग्री से 4.8 डिग्री तक की बढ़ोतरी हो सकती है. आज,जिस तरह अनियंत्रित विकास की बुनियाद पर पृथ्वी की हरियाली को नष्ट कर मानव समाज उन्नति का सपना देख रहा है,वह एक दिन सभ्यता के अंत का कारण बनेगी.प्राकृतिक संसाधनों के उपभोग के स्थान पर शोषण की बढ़ रही प्रवृत्ति से पर्यावरण का प्राकृतिक चक्र विच्छेद हो गया है.पृथ्वी के औसत तापमान में निरंतर वृद्धि से ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. पिछले दो दशकों के दौरान अंटार्कटिक और उत्तरी गोलार्द्ध के ग्लेशियरों में सबसे ज्यादा बर्फ पिघली है.वर्तमान में समुद्र के जलस्तर में 0.9 मीटर की औसत बढ़ोतरी हो रही है,जो अब तक की सबसे अधिक बढ़ोतरी है.

आज पृथ्वी की जो दुर्दशा हमने की है,उस परिस्थिति में विद्वान हेनरी डेविड थोरियू का कथन सटीक बैठता है,जिन्होंने कहा था-‘भगवान को धन्यवाद कि हम इंसान उड़ नहीं सकते,अन्यथा धरती के साथ ही आकाश को भी बरबाद कर देते.’आज जीवनदायिनी पृथ्वी चतुर्मुखी समस्याओं से घिरी हुई है. कभी-कभी लगता है कि अब यहां जीवन की कोई गारंटी नहीं है.एक अदद शुद्ध वातावरण हमें नसीब नहीं हो रहा.सुबह से शाम तक व्यक्ति प्रदूषण के थपेड़े खाता है और बेवजह अपने स्वास्थ्य का नुकसान कर बैठता है.आज हमारी पृथ्वी भी बीमार हो गयी है. आज पृथ्वी को बेहतर इलाज की आवश्यकता है.ब्रह्मांड का अद्वितीय ग्रह होने के बावजूद हम इसकी महत्ता को समझ नहीं रहे हैं.

विडंबना यह है कि अपनी अनुचित क्रियाविधियों पर नियंत्रण करने की बजाय प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर इसकी नैसर्गिक गुणवत्ता को प्रभावित कर अपने लिए मौत की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं.पृथ्वी पर जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए यह जरुरी है कि पृथ्वी को तंदुरुस्त रखा जाये.धरती की सेहत का राज है-वृक्षारोपण.नाना प्रकार के पेड़-पौधे हमारी पृथ्वी का श्रृंगार करते हैं.वृक्षारोपण कई मर्ज की दवा भी है.पर्यावरण संबंधी अधिकांश समस्याओं की जड़ वनोन्मूलन है.वैश्विक ऊष्मण,बाढ़,सूखा जैसी समस्याएं वनों के ह्रास के कारण ही उत्पन्न हुई है.

मजे की बात यह है कि इसका समाधान भी वृक्षारोपण ही है.पौधे बड़े पैमाने पर लगाए जाने चाहिए.पौधे लगाकर उसकी रक्षा करना कठिन कार्य जरुर है,किंतु मुमकिन है.जंगल,पृथ्वी का महत्वपूर्ण हिस्सा है.एक समय धरती का अधिकांश हिस्सा वनों से आच्छादित था,किंतु आज इसका आकार दिन-ब-दिन सिमटता जा रहा है.मानसून चक्र को बनाए रखने,मृदा अपरदन को रोकने,जैव-विविधता को संजोये रखने और दैनिक उपभोग की दर्जनाधिक उपदानों की सुलभ प्राप्ति के लिए जंगलों का होना बेहद जरूरी है.

विश्व भर के जंगलों पर वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार सीधे तौर पर वन आधारित उद्योगों से 13 लाख लोगों को रोजगार मिलता है,जबकि अनौपचारिक रूप से दुनिया भर में 41 लाख लोगों को यह जीविका प्रदान करता है. औद्योगीकरण और नगरीकरण के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों का सफाया किया जा रहा है,जो प्रकृति के लिए गंभीर चिंता की बात है.आंकड़े बता रहे हैं कि 1990 के बाद विश्व में वर्षा वनों की संख्या आधा घट चुकी है.वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार,पिछले 50 वर्षों में दुनिया के आधे से ज्यादा जंगल गायब हो चुके हैं.

ऐसा अनुमान लगाया गया है कि वनोन्मूलन के कारण पृथ्वी पर से प्रतिदिन 137 पौधे,जंतु व कीड़ों की प्रजातियों को खो रहे हैं.यह आंकड़ा 5000 प्रजाति प्रतिवर्ष के बराबर है.इस तरह आहार श्रंखृला के विच्छेद होने और जैव-विविधता में कमी लाने का एक बड़ा कारक जंगलों का सफाया करना है. इसके साथ ही यह सूखे की समस्या और प्राकृतिक असंतुलन के लिए भी जिम्मेवार है.

अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.

जहां अधिकारों की बात होती है,वहां हमारा कर्तव्य भी संलग्न रहता है.जैसे,यदि हमें जीवन जीने का अधिकार है,तो हमारा यह कर्तव्य भी है कि हम दूसरों की जान ना लें.उसी प्रकार,हमारी पृथ्वी हमें जीवन जीने के लिए तमाम सुख-सुविधाएं प्रदान करती है,तो हमारा यह कर्तव्य भी है कि हम समर्पित भाव से उसकी रक्षा करें.आज हमारी पृथ्वी अनेक समस्याओं से जूझ रही है.यह स्थिति अनियंत्रित व अंधाधुंध विकास के चलते उत्पन्न हुई है.पृथ्वी दिवस महज औपचारिकता भर नहीं है.पृथ्वी की रक्षा हेतु विकास के सततपोषणीय रूप को व्यवहृत करने की जरूरत है.आज हमारा एक पौधा लगाने का संकल्प कई मायनों में खास हो सकता है.सुखद भविष्य की यह एक जरुरी शर्त भी है.

पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना में,जहां बड़े पैमाने पर वनों का विनाश हो चुका है,सरकार ने हरेक नागरिक जो 11-60 आयु वर्ग के मध्य आते हैं, को हर साल 3 से 5 पौधे लगाने के आदेश हैं. यही नहीं,प्रतिवर्ष 12 मार्च को वहां ‘प्लांटिंग हॉलीडे’ के रुप में मनाकर अधिकाधिक पौधे लगाने के प्रयास किये जाते हैं.इसी तरह की पहल हमारे देश में भी की जानी चाहिए.घर के बड़े-बुजुर्ग,छोटे बच्चों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं.प्रत्येक व्यक्ति के लिए पौधे लगाना एक संस्कार की तरह होना चाहिए.जन्मदिन,सफलता प्राप्ति तथा अन्य खास अवसरों पर पौधे लगाकर सुखमय जीवन की ओर सार्थक कदम बढ़ाया जा सकता है.

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