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कोयला खदान आवंटन:केंद्र ने न्यायालय से कहा कुछ गलत हुआ

नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय में स्वीकार किया कि कोयला खदानों के आवंटन में कहीं कुछ गलत हुआ है और अधिक बेहतर तरीके से इस काम को किया जा सकता है. न्यायमूर्ति आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने एक तरह से कोयला खदानों […]

नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय में स्वीकार किया कि कोयला खदानों के आवंटन में कहीं कुछ गलत हुआ है और अधिक बेहतर तरीके से इस काम को किया जा सकता है.

न्यायमूर्ति आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने एक तरह से कोयला खदानों के आवंटन में सरकार की गलती स्वीकार करते हुये कहा, ‘‘हमने सदाशयता में निर्णय किये लेकिन लगता है कि कुछ गलत हुआ है. हम कह सकते हैं कि कहीं कुछ गलत हुआ है और कुछ सुधार करने की जरुरत है.’’ वाहनवती ने यह प्रतिक्रिया उस समय व्यक्त की जब न्यायाधीशों ने कहा कि यह कवायद कहीं अधिक बेहतर तरीके से की जा सकती थी.

अटार्नी जनरल ने कहा, ‘‘यह सब अधिक बेहतर तरीके से किया जा सकता था. मैं आपके विचार से सहमत हूं.’’ इस मामले की आज सुनवाई शुरु होते ही न्यायाधीशों ने चुनिन्दा कोयला खदानों के आबंटन निरस्त करने के प्रति केंद्र के दृष्टिकोण के संबंध में अटार्नी जनरल से जानना चाहा. अटार्नी जनरल ने इस पर कहा कि सरकार अगले सप्ताह इस मसले पर अपना दृष्टिकोण स्प्ष्ट करेगी.

अटार्नी जनरल ने सितंबर, 2013 में कहा था कि कोयला खदानों का आवंटन तो महज आशय पत्र है और यह प्राकृतिक संसाधनों पर कंपनियों को कोई अधिकार नहीं देता है जिसके बारे में राज्य सरकार ही निर्णण करेगी. वाहनवती ने यह भी कहा था कि कंपनियों को कोयला खदान आबंटित करने का निर्णय तो पहला चरण है और तमाम मंजूरी प्राप्त करने के बाद जब कंपनियां खनन शुरु करेंगी तभी उन्हें कोयले पर अधिकार मिलेगा.

मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडीशा, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल जैसे खनन वाले राज्यों ने शीर्ष अदालत में कहा था कि कोयला खदानों के आबंटन पर पूरी तरह से केंद्र का नियंत्रण है और इस मामले में उनकी भूमिका तो बहुत कम ही है.न्यायालय इस समय कोयला खदानों के आबंटन में नियमों का उल्लंघन किये जाने के आधार पर 1993 से किये गये आबंटन निरस्त करने के लिये दायर तीन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि इस प्रक्रिया के दौरान चुनिन्दा कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया है.

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