नयी दिल्ली : देश की राजनीति हवाबाज, हवालाबाज और दगाबाज पर आ टिकी है. दो दिन पहले कांग्रेस कार्यसमिति में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए उन्हें हवाबाज बताया था और कहां था कि उनके चुनावी घोषणाएं हवाबाजी साबित हुईं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज भोपाल में सार्वजनिक मंच से सोनिया गांधी को जवाब दिया. उन्होंने कांग्रेस को हवालाबाज बताया और कहा कि हवालाबाज हमसे हिसाब मांग रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान के घंटे भर के भीतर ही कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मोदीसरकार को हवाबाज के साथ-साथ दगाबाज भी बता दिया. यह तय है कि अगले कुछ घंटों में या अगले कुछ दिनों में भाजपा कांग्रेस को इसका उससे भी अधिक तीखे अंदाज में जवाब देगी.
पर, सवाल यह है कि राजनीति में कोई मर्यादा भी होती है या नहीं? हवाबाज और हवालाबाज तो ठीक है, लेकिन दगाबाज शब्द कितना उचित है?
रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हवाबाज तो हैं ही लेकिन वे दगाबाज भी हैं और उन्हें देश के 125 करोड लोगों से दगाबाजी की है. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने हर आदमी के खाते में 15-15 लाख रुपये डालने का वादा कर वोट लिया था, लेकिन उन्होंने उस वादे को पूरा नहीं किया, इसलिए वे दगाबाज हैं.
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमने हवालाबाजों की दुकान बंज करा दी है. उन्हें पैरों के नीचे की जमीन खिसकती जा रही है. उन्होंने लोकतंत्र में बाधा पैदा की है और उनके कारण हमें संसद के सत्र का कल अवसान करने का फैसला लेना पडा.
नजर भोपाल पर, निशाना बिहार
प्रधानमंत्री नरेंद्र ने भले ही आज मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में वहां की जनता को संबोधित किया, लेकिन उनके लहजे से साफ था कि उनके निशाने पर बिहार चुनाव था. कुशल राजनीतिज्ञ प्रधानमंत्री को हर उस मौके की तलाश रहती है, जब वे अपने प्रतिद्वंद्वियों पर वार कर सकें. उन्होंने कांग्रेस की नीतियां, उसके कारण सांसद में महत्वपूर्ण सुधारवादी विधेयकों के लटकने को मुद्दा बनाया. भले प्रधानमंत्री वहां विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन करने पहुंचे हों, लेकिन उन्होंने एक शानदार राजनीतिक भाषण देने का मौका ढूंढ ही लिया. उन्होंने कांग्रेस पर करारा हमला किया, जो बिहार चुनाव में महागंठबंधन का तीसरा बडा राजनीतिक घटक है. कांग्रेस पर इन हमलों के असर का लाभ उन्हें जदयू व राजद के खिलाफ भी दिख रहा है. ये राजनीतिक हमले तो बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अभी प्रासंगिक हैं ही.