नयी दिल्ली : आपातकाल के दौरान समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को संविधान में जोडे जाने पर एक बहस छेडने की कोशिश करते हुए आरएसएस के मुखपत्र ने आज कहा कि इसके द्वारा लगाये गये दागों की अवधारणात्मक, मनोवैज्ञानिक और जरुरत पडी तो संवैधानिक स्तर पर ऑपरेशन करने की जरुरत पड सकती है.
आपातकाल के 40 साल होने से पहले आर्गेनाइजर के संपादकीय में उन्हें ‘पारिभाषिक दाग’ कहा गया है जो राजनीतिक दुरुपयोग में तब्दील हो गये हैं और वोट बैंक की राजनीति को लेकर समाज में वैमनस्य बनाने के लिए जनता परिवार जैसी पार्टियों द्वारा उन्हें शिक्षा देने को लेकर उन पर हमला बोला.
इसने कहा है कि आपातकाल द्वारा लगाये गये कुछ दाग अभी तक भारतीय लोकतंत्र को परेशान कर रहे हैं. मुखपत्र ने अपने संपादकीय ‘आपातकाल के दाग’ में उन पार्टियों पर हमला बोला है जो धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी राजनीति की शिक्षा देते हैं.
मुखपत्र ने कहा है कि 42 वें संशोधन के जरिए इन शब्दों को प्रस्तावना में कुछ लोकतांत्रिक मांग या समकालिक जरुरत को लेकर नहीं डाला गया बल्कि यह एक तनाशाह नेतृत्व की राजनीतिक साजिश थी. ऐसी राजनीति की शिक्षा देने वालों को आडे हाथ लेते हुए इसने कहा कि ये नेता धडल्ले से जाति की पहचानों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक मकसद को पूरा करने में कर रहे हैं.