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शहीद हेमराज की विधवा सौरभ कालिया के पिता से सहमत, कहा- अंतरराष्ट्रीय न्यायालय नहीं जाने का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण

मथुरा: दो वर्ष पूर्व 8 जनवरी को जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में पाक सीमा पर दुश्मन सैनिकों द्वारा सिर कलम कर मौत के घाट उतारे गए, 13 राजपूताना रायफल्स के लांसनायक हेमराज सिंह की विधवा धर्मवती ने कैप्टन सौरभ कालिया के मामले में केंद्र सरकार के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न जाने के निर्णय पर रोष […]

मथुरा: दो वर्ष पूर्व 8 जनवरी को जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में पाक सीमा पर दुश्मन सैनिकों द्वारा सिर कलम कर मौत के घाट उतारे गए, 13 राजपूताना रायफल्स के लांसनायक हेमराज सिंह की विधवा धर्मवती ने कैप्टन सौरभ कालिया के मामले में केंद्र सरकार के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न जाने के निर्णय पर रोष प्रकट किया. धर्मवती ने बताया कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन सैनिकों के बूते पर देशवासी चैन की नींद लेते हैं उन्हें उनकी शहादत पर भी सम्मान नहीं मिल पाता.

धर्मवती ने कहा कि हमारी सरकारें ऐसे मामलों में बातें तो बहुत करती हैं किंतु जब कार्रवाई का समय आता है तब चुपके से पैर पीछे खींच लेती हैं. धर्मवती ने अपने पति के साथ हुई घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 1999 में करगिल युद्घ में कैप्टन सौरभ को दुश्मन सैनिकों ने जिस प्रकार यातनाएं देकर मार डाला था, उसी प्रकार उनके पति को भी भारतीय सीमा में घुसकर धोखे से मार डाला गया तथा उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया था.

उन्होंने कहा कि तब एक के बदले दस-दस पाक सैनिकों के शीष काट कर ले आने का दावा करने वाली भाजपा की सरकार यदि इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाने से पीछे हटती है तो यह शहीदों के साथ अन्याय होगा. धर्मवती ने 4 जाट रेजीमेंट के करगिल शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के पिता एनके कालिया का साथ देने की बात कही है. उन्होंने बताया कि वे कैप्टन कालिया के पिता, पत्नी, मां व देवर आदि से दिल्ली में मिल चुकी हैं. मैं उनकी बात का पूरा समर्थन करती हूं. मथुरा के कोसीकलां थाना क्षेत्र के शेरनगर-खिरार निवासी धर्मवती के पति लांसनायक हेमराज सिंह और मध्य प्रदेश के सीधी जनपद निवासी लांसनायक सुधाकर सिंह सीमा पर दुश्मन सेना के हाथों शहीद हो गए थे.

उल्लेखनीय है कि करगिल के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया को पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दी गई बर्बर यातना के मुद्दे पर जन दबाव के आगे झुकते हुए सरकार ने अपना रुख बदलने का मन बनाया और पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) जाने का विकल्प तलाशे जा सकने की घोषणा की. कैप्टन कालिया और पांच अन्य सैनिकों को 15 मई 1999 को करगिल के कासकर इलाके में गश्त ड्यूटी के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ लिया था. उन्हें बंधक रखा गया जहां उन्हें प्रताड़ित किया गया और उनके क्षत विक्षत शवों से देश में रोष की लहर दौड़ गई. उनके शव 15 दिन बाद भारत को सौंपे गए. कैप्टन कालिया के कान के परदे को गर्म सलाखों से छेद डाला गया था, उनकी आंखें फोड़ दी गई थी और उनके शरीर के अंगों को तथा लिंग को काट डाला गया था. उनके अधिकांश दांत और हड्डियां तोड़ डाली गई थीं.

शहीद सैनिक के पिता एनके कालिया ने 2012 में उच्चतम न्यायालय का रुख कर इस मामले में एक अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की थी. सरकार ने पहले कहा था कि आईसीजे जाने का रुख व्यवहार्य नहीं है. लेकिन बाद में कहा कि 1999 में करगिल में कैप्टन कालिया को पकड़ने के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें जिसे बेदर्दी से यातनाएं दीं, उन असाधारण परिस्थितियों के मद्देनजर इसने पुनर्विचार करने की घोषणा की.

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