रायपुर: छत्तीसगढ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में नक्सली हमले में शहीद जवानों के शवों को घटनास्थल से बाहर नहीं निकाला जा सका है. राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने क्षेत्र में खराब मौसम और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है.
राज्य के नक्सल मामलों के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आर के विज ने आज यहां भाषा को बताया कि सुकमा जिले के पोलमपल्ली थाना क्षेत्र के अंतर्गत पिडमेल गांव के जंगल में शनिवार को नक्सली हमले में शहीद सात पुलिस कर्मियों के शवों को निकालने की कार्रवाई की जा रही है.
विज ने बताया कि क्षेत्र में मौसम खराब है तथा वहां की कठिन भौगोलिक परिस्थियों की वजह से शवों को निकालने में पेरशानी हो रही है. हालंकि क्षेत्र के लिए बडी संख्या में पुलिस दलों को रवाना किया गया है.
पुलिस अधिकारी ने बताया कि शनिवार को घटना के बाद अतिरिक्त पुलिस दल ने सभी घायल जवानों को वहां से निकाल लिया था लेकिन क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा भारी गोलीबारी के कारण शवों को नहीं निकाला जा सका है. चुंकि क्षेत्र में सुरक्षा बलों को पैदल घटनास्थल पहुंचना है और मौसम खराब है इसलिए कार्रवाई में देरी हो रही है.
इधर राज्य के अन्य पुलिस अधिकारियों ने बताया कि घटनास्थल क्षेत्र नक्सल प्रभावित है तथा वहां पहुंचने के लिए अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है. अक्सर ऐसी घटनाओं के बाद नक्सली पुलिस दल को अपनी जाल में फंसाने की कोशिश करते हैं. ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को सतर्क रहना होता है.
सुकमा जिले में नक्सलियों ने पुलिस दल पर घात लगाकर हमला कर दिया था. इस हमले में एसटीएफ के प्लाटून कमांडर शंकर राव, प्रधान आरक्षक रोहित सोरी, प्रधान आरक्षक मनोज बघेल, प्रधान आरक्षक मोहन उइके, आरक्षक राजकुमार मरकाम, आरक्षक किरण देशमुख और आरक्षक राजमन नेताम शहीद हो गए जबकि 10 अन्य पुलिसकर्मी घायल हैं.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि घायलों में से सात पुलिस कर्मियों को रायपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है जबकि तीन पुलिस कर्मियों का इलाज जगदलपुर में किया जा है. हमले के दौरान नक्सलियों द्वारा पुलिस के हथियार भी लूटे जाने की खबर है.
अधिकारियों के मुताबिक लगभग तीन सौ की संख्या में नक्सलियों के मिलिटरी कंपनी ने पुलिस दल पर हमला किया था तथा एसटीएफ के जवानों को घेर लिया था. लगभग दो घंटे तक मुठभेड के बाद पुलिस दल घायल जवानों को बाहर निकालने में कामयाब रहे। एसटीएफ के 70 जवान इस अभियान में थे.
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली अप्रैल से मई महीने के बीच जब जंगल में सूखा और पतझड का समय होता है तब पुलिस दल पर हमले तेज कर देते हैं. यह नक्सलियों की रणनिति का हिस्सा है जिसे टैक्टिल काउंटर अफंसिव कैम्पेन (टीसीओसी) कहा जाता है. वर्ष 2010 में सुकमा जिले के ताडमेटला की घटना भी इसी दौरान छह अप्रैल का हुई थी. इस घटना में 76 जवानों की मौत हुई थी.