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कितनी संभावना है केजरीवाल में, क्या आप पार्टी बनेगी वैकल्पिक राजनीति का केंद्र?
दिल्ली से कौटिल्य आप की जीत आंखें फाड़ने वाली है. भारतीय राजनीति में कम ही ऐसे उदाहरण हैं, जब किसी पार्टी को ऐसी जय मिली हो. भाजपा के लिए चिंतन-मनन करने की बात इसलिए है कि राजनीतिक अस्तित्व में आने के बाद उसे एक नवजात पार्टी ने उसके सबसे पहले किले दिल्ली में ऐसी शिकस्त […]
दिल्ली से कौटिल्य
आप की जीत आंखें फाड़ने वाली है. भारतीय राजनीति में कम ही ऐसे उदाहरण हैं, जब किसी पार्टी को ऐसी जय मिली हो. भाजपा के लिए चिंतन-मनन करने की बात इसलिए है कि राजनीतिक अस्तित्व में आने के बाद उसे एक नवजात पार्टी ने उसके सबसे पहले किले दिल्ली में ऐसी शिकस्त दी, जैसा शिकस्त वह कांग्रेस को देने का दंभ पिछले नौ महीन से भर रही थी. भाजपा ने सबसे पहले दिल्ली नगर निगम में सत्ता का स्वाद चखा था, जिसके प्रमुख को मुख्यमंत्री के बराबर का संवैधानिक दर्जा हासिल होता था. अब हम बदले राजनीतिक हालात में आप पार्टी और उसके नेता की संभावनाओं की मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में विेषण करते हैं.
सीएम अरविंद पर हावी रहा आंदोलनकारी केजरीवाल
2011 के अन्ना आंदोलन के गर्भ से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ. आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी के पक्ष में खड़ा होकर जनवादी राजनीति की, जिसका लोप जनवादी राजनीति का दावा करने वाले वाम दलों की व्हाइट कॉलर पॉलिटिक्स में साल-दर-साल नजर आ रहा है. अरविंद केजरीवाल ने न समर्थन लेने और न समर्थन देने की कसम खाने के बाद कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनायी. धुरंधर आंदोलनकारी केजरीवाल के लिए सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना बिल्कुल नया अनुभव था और एक सत्ताधीश के व्यक्तित्व पर उसका आंदोलनकारी व्यक्तित्व ही हावी रहा. जिसका परिणाम था कि यमुना किनारे स्थित दिल्ली सचिवालय के सामने सड़क पर उन्होंने जनता दरबार लगायी और भीड़ नहीं संभलने व लोगों की समस्याएं सुनने का मैकेनिज्म तैयार नहीं किये जाने के कारण मीडिया में उपहास के पात्र बने. फिर उन्होंने गाजियाबाद के अपने आवास पर भी अधिकारियों की बैठक व वहां से फैसले सुनाने का सिलसिला शुरू किया. दूसरे राज्य से किसी अन्य राज्य के सत्ता संचालन का यह तरीका भी आलोचनाओं का शिकार हुआ. हद तो तब हो गयी जब वह तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के खिलाफ रेल भवन के सामने सड़क पर धरने पर बैठ गये. लुटियन दिल्ली की वह सड़क उत्तर व दक्षिण दिल्ली को जोड़ने वाली सबसे अहम सड़क है और नि:संदेह केजरीवाल के इस कदम से वहां की जनता को काफी परेशानी हुई. अंतत: नाटकीय अंदाज में केजरीवाल ने 49 दिन में सरकार से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि उन्हें कांग्रेस-भाजपा वाले काम नहीं करने देते.
केजरीवाल का क्रांतिकारी कदम
केजरीवाल की खुद की परिभाषा में उनके ये कदम क्रांतिकारी हों, लेकिन भारत की जनता इसे पचा नहीं पाती. टीम केजरीवाल को भी थोड़े समय बाद इस गलती का अहसास हुआ. आम आदमी पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने माना कि सरकार छोड़ना उनकी गलती थी. इसके लिए उन लोगों ने बारंबार जनता से माफी मांगी. उनके माफी मांगने से पहले मीडिया, आमलोगों व राजनीतिक गलियारों में यह संदेश गया था कि अब आम आदमी पार्टी उठ कर खड़ी नहीं हो सकेगी. पर, टीम केजरीवाल ने मेहनत की, जनता को भरोसा दिलाया कि वे अब गंभीरता से सरकार चलायेंगे. इसलिए इस बार चुनाव में आम आदमी पार्टी ने नारा दिया पांच साल केजरीवाल. अरविंद ने अपने अंतिम-अंतिम दिन तक के चुनाव प्रचार में कहा कि चाहे कुछ हो जाये इस बार वे इस्तीफा नहीं देंगे, क्योंकि जनता नाराज हो जाती है.
क्रांतिकारी केजरीवाल का राजनीतिक रूपांतरण
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल के हाव-भाव से यह लगा कि आंदोलनकारी केजरीवाल अब राजनीतिक केजरीवाल बन चुके हैं. उन्होंने कहा कि वे इस बार हर हाल में पांच साल सरकार चलायेंगे. उन्होंने दलितों, गरीबों को लुभाने वाले वादे किये. भाजपा के विज्ञापनों पर केजरीवाल ने जबरदस्त राजनीति खेली. गोत्र विवाद को उन्होंने अपना नहीं, बल्कि अग्रवाल समाज की प्रतिष्ठा का मुद्दा बना दिया और एक आम भारतीय मंङो राजनेता की तरह कहा कि भाजपा इसके लिए माफी मांगे उन्होंने अग्रवाल समाज का अपमान किया है. अग्रवाल की यह कवायद वनिक समुदाय के वोटों को खुद के पक्ष में ट्रांसफर करने की कोशिश से प्रेरित था, जिस पर राजनीतिक पंडित अबतक भाजपा का एकाधिकार मानते थे. केजरीवाल इससे पहले भी व्यापारी मतदाताओं को लुभाने के लिए कह चुके हैं कि वे बनिया हैं और धंधा को अच्छे से समझते हैं. केजरीवाल के नजदीकी सहयोगी कुमार विश्वास के शब्दों में अरविंद की सबसे बड़ी कमजोरी उनकी भावुकता है. यह बात विश्वास ने चुनाव के दौरान केजरीवाल पर केंद्रित एक चैनल को दिये अपने साक्षात्कार में कही थी. तो अब यह माना जाना चाहिए कि केजरीवाल अपनी भावुकता पर लगाम लगायेंगे और अब एक मंङो राजनेता की तरह दूसरों की चाल में भी खुद के लिए अवसर तलाशेंगे!
क्या दिल्ली से देश की राजनीति का रास्ता निकलेगा!
आम आदमी पार्टी के नेताओं के बयानों से यह संकेत मिल रहा है कि वे अब दिल्ली को मॉडल राज्य बनाने में जी जान लगा देंगे, जो देश की मीडिया में चर्चा में बनी रहे और इसके आधार पर वे दूसरे राज्यों में अपना विस्तार करें. आप नेता आशुतोष ने बीबीसी से कहा है कि दिल्ली के बाद पंजाब उनका अगला लक्ष्य होगा और उसके बाद वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व हिमाचल प्रदेश भी बेहतर करेंगे. उधर, गोवा में भी आप पार्टी ने बेहतर करने का दावा किया है. अगर पांच-छह राज्यों में भी अगले एक दशक में आम आदमी पार्टी की जड़ें मजबूत हो जाती हैं या फिर वह वहां मुख्य विपक्ष बन जाती है तो नि:संदेह देश को एक नया राजनीतिक विकल्प मिल जायेगा. लेकिन, इसके लिए धैर्य और संयम की जरूरत होगी, अधीरता पूर्व की तरह एक बार फिल आप पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर देगी.
गैर भाजपावादी गठजोड़ की आहट!
आप पार्टी की जीत के बाद अरविंद केजरीवाल को बधाई देने वालों का तांता लग गया. देश की राजनीति की दो सबसे अहम धुरी नरेंद्र मोदी और सोनिया गांधी ने उन्हें फोन कर बधाई तो दी ही, उनके अलावा कई दूसरे नेताओं ने बधाई दी. बिहार के नीतीश कुमार, बंगाल से ममता बनर्जी, महाराष्ट्र से उद्धव ठाकरे ऐसे अहम नेता हैं, जिन्होंने केजरीवाल को बधाई दी. उद्धव भाजपा के साथ हैं, लेकिन उसके व्यवहार से दुखी हैं, ऐसे में उसकी हार से शायद उन्हें कुछ सुकून मिला हो. लेकिन, नीतीश, ममता, लालू ने जिस अंदाज में उन्हें बधाई दी, उससे यह संकेत मिलता है कि गैर भाजपावाद की राजनीति करने वाले लोग अब आम आदमी पार्टी से दोस्ती करने की इच्छा रखते हैं, ताकि एक ठोस विकल्प तैयार हो सके. ध्यान रहे 2014 के आम चुनाव में देश में गैरकांग्रेसवाद की राजनीति का पटाक्षेप हो गया और उसके चुनाव परिणाम के बाद गैर भाजपावाद की राजनीति शुरू हो गयी. अब यह समय बतायेगा कि क्या केजरीवाल इस गैरभाजपावादी राजनीति की धुरी भी बनेंगे?
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