अंकिता पंवार
नयी दिल्ली : आज दिल्ली गैंग रेप की दूसरी बरसी है आज ही के दिन 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के सफदरजंग इलाके में चलती बस में मेडिकल छात्रा का गैंग रेप हुआ था. इस घटना ने न सिर्फ दिल्ली और देश को बल्कि दुनिया को हिलाकर रख दिया था.
कुछ दिनों तक जिंदगी से जूझने के बाद 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर में पीड़िता की मौत हो गयी थी.इस घटना का असर देश के किसी भी हिस्से में देखा जा सकता था. पूरी दिल्ली इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन के लिए उतर आयी थी. लोग आरोपियों के फांसी की मांग कर रहे थे. यह स्थिति सिर्फ दिल्ली की नहीं थी बल्कि पूरे देश में इस तरह के प्रदर्शन हो रहे थे.
मुझे अच्छी तरह से याद है उसके कुछ दिनों बाद जब मैं अपने गांव उत्तराखंड का कस्बा लम्बगांव पहुंचीतो वहां भी लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. जिसमें न सिर्फ स्कूल कॉलेज के छात्र-छात्राएं थीं बल्कि उम्रदराज लोग भी शामिल थे. निर्भया को इंसाफ दो दामिनी को इंसाफ दो.
मैंने जब पूछाकियहां भी इसका विरोध हो रहा है तो मेरी मित्र का कहना था कितुझे नहीं मालूम उस लड़की के साथ क्या हुआ था. ऐसे लोगों को तो फांसी होनी चाहिए. यह थी लोग लोगों की प्रतिक्रिया और गुस्सा.
खैर ये उसका कहना था मैं खुद उस दौरान दिल्ली में ही थी मुझे तो मालूम ही था क्या स्थिति है लेकिन दूरदराज के क्षेत्र में भी घटना की ये प्रतिक्रिया होगी मुझे यह मालूम नहीं था.
उस समय एक अजीब सी स्थिति थी. जहां एक ओर मां-बाप महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे खासकर वो लोग जो खुद देश के किसी दूसरे हिस्से में थे उनकी बेटियांदिल्ली में जॉब या पढाई कर रही थीं.
वहीं दिल्ली की बात करें तो जहां इस घटना से महिलाओं खुद सहमी हुईं थीं लेकिन घटना के कारण वो घरों बंद नहीं रहना चाहती थी. प्रतिरोध में वो खुद सड़कों पर उतर आईं.
गौरतलब है कुछ मीडिया समूहों ने युवती को निर्भया नाम दिया था तो कुछ ने दामिनी और शायद ही किसी अन्य रेप की घटना को इतना ज्यादा कवरेज मिला हो जितना कि 16 दिसंबर की घटना को.
ऐसा नहीं है कि उसके बाद बलात्कार की घटनाएं होनी बंद हो गयीहों. उन्हीं दिनों में दिल्ली में फिर से कई रेप की घटनाएं हुईं. एक ओर लोग विरोध कर रहे थे, मीडिया भी लगातार घटना कवर कर रहा था और पुलिस भी अतिरित्त चौकन्नी थी लेकिन घटनाएं थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं.
हालांकि निर्भया के परिजन अभी भी इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे हैं. 6 में 4 आरोपियों को अभी भी सजा होनी बाकी है, गैंगरेप के एक आरोपी ने पहले तिहाड़ जेल में खूुदकुशी कर ली थी जबकि एक आरोपी( किशोर) बाल सुधार गृह भेज दिया गया था.
इस घटना को दो साल गुजर गए लेकिन अभी भी रेप की वारदातें थम नहीं रही हैं. दिल्ली में कैब चालक द्वारा की गयी रेपकीघटना इसका ताजा उदाहरण है.
ऐसी घटनाओं में लोग आमतौर पर सख्त सजा या फांसी की मांग करते हैं. पीड़िता या उसके परिजनों की नजरों में एक सही फैसला होता है. लेकिन मृत्युदंड दिए जाने और ना दिए जाने पर भी समय-समय पर सवाल उठते रहते हैं. अधिकतरबुद्धिजीवी मुत्युदंड का विरोध करते हैं. ये सवाल सही भी है कि फांसी दे देना समस्या का समाधान नहीं है उसके लिए एक पूरे सिस्टम को सुधारे जाने की जरूरत है.
दिल्ली में 118 महिला कैबचालकों की नियुक्ति की जाएगी यह फैसला वाकई सराहनीय है. लेकिन दिल्ली की आबादी के हिसाब से ये नाकाफी है. इसके अलावा सिर्फ महिला कैब चालक ही नहीं होनी चाहिए बल्कि अन्य वाहनों में भी महिलाओं की नियुक्ति किए जाने की जरूरत है.
सारी योजनाएं दिल्ली के लिए बनाए जाने के बजाय देश भर में इस तरह के प्रयास किए जाएं. क्योंकि कई तरह के दबावों में आकर दिल्ली में तो इस तरह के फैसले ले लिए जाते हैं लेकिन देश के अन्य हिस्से इस तरह के बदलावों से अछूते ही रहते हैं.