नयी दिल्ली: आजादी के बाद से पांच हजार से अधिक परियोजनाओं के नाम पर ठोस कानून के अभाव और विस्थापन से आजीविका संकट, पुनर्वास का दंश ङोल रहे लाखों लोगों और किसानों ने अलग अलग रुपों में विरोध कर अपनी पीड़ा व्यक्त की और अब किसानों का नया हथियार ‘जल सत्याग्रह’ बन कर उभरा है.
सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे ने ‘भाषा’ से कहा कि देश में अभी पांच हजार से अधिक परियोजनाएं चल रही है, लेकिन कभी भी यह जानकारी संकलित नहीं की गई कि कहां, कौन विस्थापित हो रहा है, लोग कहां जा रहे हैं, विस्थापन के बाद उनकी जिंदगी को क्या हुआ?
उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर बलि बेदी पर चढ़ाये जाने वाले लोगों में 65 प्रतिशत आदिवासी और दलित हैं. इनमें बड़ी संख्या में किसान है जिनकी आजीविका भूमि अधिग्रहण से छीन ली जाती है. इसी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए लोगों ने ‘जल सत्याग्रह’ का नया रास्ता चुना है. सरकार भूमि अधिग्रहण कानून बनाने जा रही है लेकिन देखना यह होगा कि यह समाज के अंतिम पंक्ति के लोगों और किसानों के हितों का कितना संरक्षण करती है.
मध्यप्रदेश के खंडवा और हरदा जिले में लोगों ने 16 दिन तक नर्मदा नदी में खड़े होकर विरोध प्रदर्शन किया. इनकी मांगों में नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध में पानी का स्तर 193 मीटर से घटाकराकर 189 मीटर करना और जमीन के बदले जमीन एवं मुआवजा शामिल थी. लोगों के जल सत्याग्रह के आगे झुकते हुए प्रदेश सरकार ने इनकी प्रमुख मांगें मान ली.
एशियन ह्यूमन राइट कमिशन से जुड़े शोधकर्ता सचिन कुमार जैन ने कहा कि इस तरह से परियोजनाओं के जन विरोध के दो कारण है. पहला ज्यादातर परियोजनाएं गांव, जंगल और नदियों के आसपास है, जिनपर लोगों की आजीविका ही नहीं बल्कि उनकी संस्कृति और सामाजिक पहचान निर्भर करती है.
जैन ने कहा कि इन परियोजनाओं से प्रभावित लोग प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा भी चाहते हैं. वे एक एकड़ जमीन के बदले 10 लाख रुपया नहीं, बस उतनी ही जमीन चाहते हैं. वे सम्मानजनक पुनर्वास चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि लोगों में यह भावना है कि यदि जंगल खत्म हो गए, नदियां सूख गई और हवा जहरीली हो गई तब मानव सभ्यता खत्म हो जायेगी. भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के विषयों पर अभी 18 कानून है लेकिन एक ठोस राष्ट्रीय कानून का अभाव है. कुछ समय पूर्व तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु परियोजना का विरोध कर रहे लोगों ने भी इंडियनथकारी तट के पास समुद्र में जल सत्याग्रह शुरु करने की बात कही थी.
उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले में शारदा नदी से होने वाले कटाव और भारी संख्या में लोगों के विस्थापित होने पर सरकार की बेरुखी के विरोध स्वरुप किसानों ने ‘जल सत्याग्रह’ शुरु कर दिया है. प्रतिदिन क्षेत्र से बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष नदी के पानी में खड़े हो रहे हैं. गोमती नदी के सिल्हौर सुबेहा घाट पर पुल के निर्माण की मांग को लेकर ‘जल सत्याग्रह’ शुरु किया है.
भूमि अधिकार के समर्थन में पद यात्र निकालने वाले सामाजिक कार्यकर्ता पी वी राजगोपाल ने कहा कि यदि देश के विकास के लिए परियोजनाओं को आगे बढ़ाना, बांध बनाना जरुरी है तब लोगों के जीवन के अधिकार को खत्म करके कैसा विकास होगा? लोग प्रकृति प्रदत्त संसाधानों को अपने से दूर होता नहीं देखना चाहते हैं क्योंकि जमीन, पानी और प्राकृतिक संसाधान उनके जीवन के अधिकार हैं. ‘जल सत्याग्रह’ लोगों के शांतिपूर्ण विरोध का नया हथियार है.