-मुकुंद हरि-
भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने यूपीए नीत मनमोहन सरकार के दौरान हुए फ्रांसिसी लड़ाकू जहाज रफाल के सौदे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर एक सनसनीखेज आरोप लगाया है. वैसे तो स्वामी पहले से ही इस सौदे में बरती गयी अनियमितता को लेकर इसका खुलेआम विरोध करते रहे हैं, लेकिन अबकी बार इस विरोध में उन्होंने देश की बड़ी हस्ती सोनिया गांधी का नाम इसमें लपेटा है. स्वामी के सोनिया गांधी और उनके परिवार को लेकर विरोध जग-जाहिर हैं.हाल ही में स्वामी ने हेराल्ड संपत्ति घोटाले को लेकर सोनिया और राहुल गांधी को कोर्ट में घसीटा है.
आउटलुक में प्रकाशित उनके इंटरव्यू के मुताबिक स्वामी का कहना है कि फ्ऱांस से 22 अरब डॉलर में खरीदे जाने वाले रफाल लड़ाकू जहाज के सौदे में तत्कालीन यूपीए सरकार ने भारी अनियमितता बरती है. इसलिए, वर्तमान मोदी सरकार को तत्काल इस सौदे को रद्द करके नयी प्रक्रिया के तहत सौदा करना चाहिए.
सोनिया ने गलत दबाव में करवाया रफाल सौदा !
स्वामी का आरोप है कि वर्तमान रफाल सौदे में वित्तीय हितों की जगह व्यक्तिगत हितों और संबंधों को वरीयता दी गयी है. यूपीए सरकार ने ये सौदा यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनकी बहन और पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सार्कोजी की पत्नी कार्ला ब्रूनी की निजी तौर पर की गयी आपसी बातचीत और उनके व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर सोनिया द्वारा तत्कालीन यूपीए सरकार पर दबाव दिये जाने की वजह से किया गया था.
सिर्फ अपने देश फ्रांस में ही बिक पाया है रफाल
डॉ स्वामी के अनुसार रफाल लड़ाकू विमान की उपयोगिता सही साबित न होने की वजह से ही उसे फ्रांस के अलावा और किसी देश में खरीदार नहीं मिला है. कुछ देशों ने उसे खरीदने के लिए चुना था मगर उसके महंगे रख-रखाव और अन्य कारणों से उन्होंने भी रफाल को आखिरकार ठुकरा दिया था. सरकार को इस बिंदु पर भी ध्यान देना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि वे कौन से कारण थे कि अन्य देशों ने रफाल को ठुकराया था.
इतने पैसों में रफाल की पूरी कंपनी खरीदी जा सकती है
आरोपों के मुताबिक सरकार ने जिस 22 अरब डॉलर की भारी कीमत पर ये सौदा किया है उतने में रफाल जहाज बनाने वाली इस पूरी कंपनी को खरीदा जा सकता है. गौरतलब है कि रफाल लड़ाकू जहाज का निर्माण फ्रांस की ही दासो नाम की एक कंपनी करती है.
रद्द हो चुका रफाल सौदा पक्का करवाने कौन आया था फ्रांस से दिल्ली !
स्वामी ने कहा है कि जब यूरोफाइटर का नाम इस सौदे के लिए लगभग तय हो चुका था तभी एक पुराने फ्रांसीसी सलाहकार बर्नौल्ड बैओक्को का रफाल के साथ सौदा पक्का करने के लिए आना अपनेआप में शक का कारण है. दरअसल बर्नौल्ड बैओक्को थेल्स नाम की एक फ्रांसीसी रक्षा कंपनी का कर्मचारी रह चुका है और ये कंपनी रफाल के निर्माण में रडार और इलेक्ट्रिकल सामान मुहैया करवाती है. स्वामी के अनुसार, बर्नौल्ड बैओक्को के दिल्ली आने के बाद इस सौदे का रुख बदल गया और जो सौदा यूरोफाइटर जैसी कंपनी के हक में जानेवाला था, वो रफाल को मिल गया. यूपीए सरकार के इस तरह अचानक हुए हृदय परिवर्तन को स्वामी शक पैदा करने वाला बताते हैं.
स्वामी का कहना है कि ऐसी खबरें हैं कि रफाल सौदे के लिए दासो कंपनी किसी खास प्रभावशाली भारतीय उद्योगपति की कंपनी को इस सौदे में अपना साझीदार बनाकर इस सौदे को अपने हक में करवाने के जुगाड़ में लगी हुई है.
अनुपयोगी साबित हो चुका है रफाल
ये जांच का विषय है कि जब रख-रखाव और ईंधन खर्च के मामले में रफाल अपने अन्य प्रतियोगी जहाजों से काफी महंगा माना जाता है तो फिर यूपीए सरकार ने किस आधार पर इस जहाज के सौदे को हरी झंडी दी थी? अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पूरी दुनिया ने लीबिया में हुए सैन्य अभियानों के दौरान इस जहाज को अप्रभावशाली माना है. ऐसे में स्वामी की बात से इसकी उपयोगिता पर सवाल खड़े होते हैं.
देश के लिए बहुत ही महंगा होगा रफाल का रख-रखाव
सुब्रह्मण्यम स्वामी के मुताबिक रफाल की उड़ान पर हर घंटे 16,500 डॉलर का खर्च देश को उठाना पड़ेगा जबकि उसके मुकाबले रफाल से बेहतर माने जाने वाले स्वीडिश लड़ाकू जहाज साब जेएएस-39 जैसे उम्दा जहाज को उड़ाने में सरकार को हर घंटे महज 4,700 डॉलर का खर्च आयेगा. उड़ान और रख-रखाव में इतने भारी खर्च की ऐसी वजहों से भी रफाल जैसे जहाज का सौदा देश के लिए फायदे का नहीं है.
स्वामी का कहना है कि उनके ये आरोप किसी व्यक्तिगत वजहों से नहीं हैं बल्कि उनका ये कहना है कि इस सौदे को को अंतिम रूप देते वक्त मनमोहन सिंह की सरकार ने रफाल की उपयोगिता और उससे बेहतर और सस्ते विकल्पों पर ध्यान नहीं दिया और महज सोनिया गांधी के दबाव में आकर देश के लिए काफी महंगे और अनुपयोगी रहने वाले इस सौदे को चुना.
क्या हुआ था 2012 के इस रक्षा सौदे में !
साल 2012 में किये गये इस सौदे से जुड़ी ये खबरें सामने आयी थीं कि तकरीबन 42 हजार करोड़ रुपये कीमत के दुनिया के सबसे बड़े 126 मल्टीरोल लड़ाकू विमानों के लिए सरकार ने पहले यूरोपियन यूनियन के लड़ाकू विमान यूरोफाइटर को चुना था मगर अचानक दूसरी खबर ये मिली थी कि बहुत ही कड़ी प्रतिस्पर्धा में सौदा फ्रांस की दासो कंपनी के विमान रफाल ने यूरोफाइटर को परास्त कर ये सौदा अपने नाम कर लिया.
इस रक्षा सौदे में अमेरिका के दो विमानों के अलावा रूस और स्वीडन के विमान भी शामिल थे. अमेरिका की दो कंपनियां बोईंग की एफ-18 सुपर हार्नेट, लाकहिड मार्टिन की एफ-16, रूस का मिग-35 और स्वीडन की साब ग्रिप्पन भी इस दौड़ में प्रमुख रूप से शामिल थे.
उस वक्त रफाल के अंतिम चयन में एक बात यह भी सामने आयी थी कि फ्रांस की दासो कंपनी का ही लड़ाकू विमान मिराज-2000 पहले से ही भारतीय वायुसेना में अपनी सेवाएं दे रहा है और इसका रिकार्ड काफी अच्छा है. इसलिए राफाल के चयन में इस तथ्य की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी. 1980 में भारत ने फ्रांस से 49 मिराज-2000 खरीदे थे जबकि साल 2004 में दुबारा 10 और मिराज विमानों की खरीद की गयी.
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने ये आरोप उस वक्त लगाये हैं जब नरेंद्र मोदी के कुर्सी संहालने के तुरंत बाद फ्रांस के साथ हुए इस बड़े रक्षा सौदे को जल्द अमल में लाने के लिए फ्रांस के विदेश मंत्री हाल ही में भारत दौरे पर आये थे. ऐसे में, एक तरफ स्वामी ने सोनिया गांधी पर आरोप गलत दबाव डालने का आरोप लगाया है तो दूसरी तरफ अपनी ही पार्टी की सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री मोदी से इस सौदे को निरस्त कर नए विकल्पों पर सोचने की मांग की है. स्वामी के ये नए खुलासे इस पूरे सौदे को ही शक के दायरे में डाल रहे हैं. ऐसे में बेहतर यही लगता है कि इस मुद्दे पर राजनीतिक नफा-नुकसान की जगह देशहित पर ध्यान दिया जाये ताकि इससे जुड़ा पूरा सच देश के सामने आ सके.