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1999 के सुपर साइक्लोन से भी खतरनाक है फेनी, समझें रफ्तार से लेकर तूफानों के नाम रखने तक की वजह

भुवनेश्वर:बंगाल की खाड़ी से उठा चक्रवाती तूफान ‘फेनी’ अब सिर्फ सैटेलाइट तसवीरों में ही नहीं दिख रहा, बल्कि उसका असर ओडिशा के तटीय इलाकों में साफ दिख रहा है. पुरी के तट पर 200 किमी प्रतिघंटे की तफ्तार से हवाएं चल रही हैं. साथ ही भारी बारिश भी हो रही है. तूफान का वीडियो सोशल […]

भुवनेश्वर:बंगाल की खाड़ी से उठा चक्रवाती तूफान ‘फेनी’ अब सिर्फ सैटेलाइट तसवीरों में ही नहीं दिख रहा, बल्कि उसका असर ओडिशा के तटीय इलाकों में साफ दिख रहा है. पुरी के तट पर 200 किमी प्रतिघंटे की तफ्तार से हवाएं चल रही हैं. साथ ही भारी बारिश भी हो रही है. तूफान का वीडियो सोशल मीडिया में भी वायरल होने लगा है. हवा की गति देख कर लोग दंग है. ओडिशा में हाई अलर्ट है. करीब 12 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है.

फेनी तूफान बीते 20 सालों में अब तक का सबसे खतरनाक चक्रवात साबित हो सकता है. ओडिशा में 1999 में अक्टूबर के अंत में आये सुपर सुपर साइक्लोन में लाखों हेक्टेयर खेतों में लगी फसलें बर्बाद हो गईं थीं. 250 किमी से भी अधिक गति से हवाओं की रफ्तार थी। इस दिन को आज भी काला शुक्रवार माना जाता है। लाखों की संख्या में पशुओं की मौत हो गई थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 9885 लोगों की मौत हुई थी. राज्य के बालासोर, भदरक, केंद्रपाडा़,पुरी, जगतसिंहपुर, और गजनम जिले में सबसे ज्यादा तबाही मची थी। राज्य को इस बर्बादी से उबरने में काफी वक्त लगा था। अब फेनी की आशंका से राज्य के लोगों में फिर से दहशत है.

भारतीय मौसम विभाग सूत्रों के मुताबिक पिछले 43 सालों में यह पहली बार है जब अप्रैल में भारत के आसपास मौजूद समुद्री क्षेत्र में ऐसा कोई चक्रवाती तूफान उठा है. तूफान के कारण सैंकड़ों ट्रेनों सहित हवाई सेवा को रद्द कर दिया गया है. फेनी चक्रवात के लिए केंद्रीय गृहमंत्रालय ने हेल्पलाइन नंबर (1938) जारी किया है.

फेनी का क्या होता है मतलब?
उत्तर हिंद महासागर से उठे ताज़ा तूफान का नाम फेनी रखा गया है.जिस क्षेत्र में तूफान का खतरा पैदा होता है वहीं का मौसम विभाग इसका नाम रखता है. इस बार बांग्लादेश ने नाम रखा. फेनी का मतलब सांप होता है.
तूफानों का क्यों रखा जाता है नाम
असल में रिकॉर्ड आसानी से रखा जा सके इसलिए तूफानों का नाम रखा जाने लगा. छोटे-मोटे तूफानों का तो नहीं लेकिन 1953 से बड़े तूफानों का नाम रखा जाने लगा है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने इसकी शुरूआत की.
भारत में ये चलन 2004 से शुरू किया गया. तय हुआ कि 63 किलोमीटर प्रति घंटे से कम की रफ्तार वाले तूफान का नाम नहीं रखा जाएगा. 118 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाले तूफानों को बेहद गंभीर की श्रेणी में रखा गया. 221 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार के तूफान को सुपर चक्रवाती तूफान की कैटेगरी में रखा गया.
कैसे रखा जाता है नाम
भारत के साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, मालदीव, ओमान और थाइलैंड के सुझाए गए नामों के हिसाब से ही तूफान का नामकरण किया जाने लगा. वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइज़ेशन को इन सभी देशों ने मिलकर नाम दिए हैं जिनमें भारत ने सागर और आकाश जैसे नाम सुझाए तो पाकिस्तान ने बुलबुल और नीलोफर जैसे नाम दिए.ये भी तथ्य गौर करने लायक है कि एक नाम दस सालों में दोबारा इस्तेमाल नहीं होता. बहुत ज़्यादा तबाही मचानेवाले तूफान का नाम फिर नहीं रखा जाता.

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