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…..जब 1984 में पूरे देश की निगाहें टिकी थीं अमेठी चुनाव पर, टकराये थे राजीव गांधी व मेनका

अनुज कुमार सिन्हा रांची : चुनाव में दिग्गजाें का टकराना काेई नयी बात नहीं है. इतिहास बताता है कि भारत के चुनाव में एक से एक राेचक मुकाबले हुए हैं. जवाहरलाल नेहरू-राममनाेहर लाेहिया (फूलपुर), साेनिया गांधी-सुषमा स्वराज (बेल्लारी), इंदिरा गांधी-राजनारायण (रायबरेली), अमिताभ बच्चन-हेमवतीनंदन बहुगुणा (इलाहाबाद), लालकृष्ण आडवाणी-राजेश खन्ना (दिल्ली) के बीच के मुकाबले ताे चर्चित […]

अनुज कुमार सिन्हा
रांची : चुनाव में दिग्गजाें का टकराना काेई नयी बात नहीं है. इतिहास बताता है कि भारत के चुनाव में एक से एक राेचक मुकाबले हुए हैं. जवाहरलाल नेहरू-राममनाेहर लाेहिया (फूलपुर), साेनिया गांधी-सुषमा स्वराज (बेल्लारी), इंदिरा गांधी-राजनारायण (रायबरेली), अमिताभ बच्चन-हेमवतीनंदन बहुगुणा (इलाहाबाद), लालकृष्ण आडवाणी-राजेश खन्ना (दिल्ली) के बीच के मुकाबले ताे चर्चित रहे हैं.
इस क्रम में राजीव गांधी और मेनका गांधी के बीच 1984 में अमेठी में मुकाबला हुआ था. यह पहली बार था जब गांधी परिवार के दाे करीबी सदस्य (राजीव गांधी के छाेटे भाई संजय गांधी की पत्नी हैं मेनका गांधी) आपस में टकरा रहे थे. अमेठी से कभी मेनका गांधी के पति संजय गांधी सांसद हुआ करते थे और उन्हाेंने काफी काम भी किया था. इसलिए मेनका काे उम्मीद थी कि अमेठी की जनता उन्हें ही चुनेगी. दूसरी ओर इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बात चुनाव हाे रहे थे और राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन चुके थे. वे मैदान में थे. इसलिए जनता काे तय करना था कि वे किसे चाहते हैं.
अमेठी में शुरू से कब्जा रहा है गांधी परिवार का : अमेठी सीट का इतिहास रहा है कि एक-दाे माैकाें काे छाेड़ कर इस पर गांधी परिवार या उनके करीबियाें का ही कब्जा रहा है और एक से एक राेचक मुकाबले हाेते रहे हैं.
आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में इसी सीट से संजय गांधी हार गये थे, लेकिन 1980 के चुनाव में जाेरदार वापसी. जून, 1980 में विमान हादसे में उनकी माैत के बाद उपचुनाव हुआ. उम्मीद की जा रही थी कि मेनका गांधी राजनीति में उतरेंगी और पति की सीट से चुनाव लड़ेंगी. तब इंदिरा गांधी पीएम थीं और राजीव गांधी मां की सहायता के लिए राजनीति में आ चुके थे.
इंदिरा गांधी ने मेनका की जगह राजीव गांधी काे अमेठी से उपचुनाव में टिकट दिया. राजीव गांधी काे हराने के लिए विपक्ष ने शरद यादव काे उतारा, लेकिन राजीव गांधी चुनाव जीत गये. इस बीच मेनका गांधी और इंदिरा गांधी के संबंध खराब हाे चुके थे और मेनका अलग रहने लगी थीं. उन्हाेंने संजय गांधी के पुराने दाेस्ताें के सहयाेग से संजय विचार मंच नामक नयी पार्टी बना ली थी.
इसके बाद मेनका कभी नहीं लड़ीं अमेठी से
इस बीच 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हाे गयी. मेनका गांधी ने तय किया कि वे अपने पति के बड़े भाई यानी राजीव गांधी (तब प्रधानमंत्री) के खिलाफ मैदान में उतरेंगी. अमेठी में राेचक चुनाव हुआ. मेनका गांधी अपने पति संजय के काम की बदाैलत वाेट मांग रही थीं.
उनकी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ती थी. वे निर्दलीय लड़ रही थीं. उधर खुद प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद संवेदना कांग्रेस के प्रति थी. अमेठी की जनता ने मेनका काे नहीं बल्कि राजीव गांधी काे चुना, वह भी भारी मताें से. इसके बाद मेनका कभी भी अमेठी से लड़ने नहीं गयीं.
इस बार भी जोरदार टक्कर की उम्मीद
इस चुनाव के बाद भी अमेठी की राेचकता समाप्त नहीं हुई. 1989 के चुनाव में जनता दल ने वहां राजमाेहन गांधी (महात्मा गांधी के पाैत्र) काे राजीव गांधी के खिलाफ उतारा. इस चुनाव में बसपा के कांशीराम भी मैदान में थे, लेकिन भारी मताें से राजीव गांधी विजयी रहे. पिछले चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी का मुकाबला किया. वे हार भले ही गयीं लेकिन लगातार सक्रिय रहीं. उन्हाेंने भाजपा के लिए रास्ता तैयार किया है. इस चुनाव में भी अमेठी में जाेरदार टक्कर की उम्मीद की जा रही है.

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