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जम्मू-कश्मीर : चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में पार्टियां उदासीन

अनिल साक्षी तमाम घोषणाओं और जद्दोजहद के बाद भी नहीं बदली है तस्वीर जम्मू : यूं तो वर्ष 2008 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में कुछ राजनीतिक दलों ने महिलाओं को टिकट देकर यह दिखाने की कोशिश की थी कि वे उन्हें बराबरी कर हक देने के पक्ष में हैं, पर इस बार होने जा […]

अनिल साक्षी

तमाम घोषणाओं और जद्दोजहद के बाद भी नहीं बदली है तस्वीर

जम्मू : यूं तो वर्ष 2008 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में कुछ राजनीतिक दलों ने महिलाओं को टिकट देकर यह दिखाने की कोशिश की थी कि वे उन्हें बराबरी कर हक देने के पक्ष में हैं, पर इस बार होने जा रहे लोकसभा चुनावों में महिलाओं टिकट देने को लेकर कहीं कोई चर्चा तक नहीं हो रही.

पीडीपी को छोड़ कर कोई और राजनीतिक दल महिला को टिकट दिये जाने का संकेत तक नहीं दे रहा. यह गौर करने वाली बात है कि जम्मू-कश्मीर से अब तक तीन महिलाएं लोकसभा में राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. यह बात दीगर है कि उन्हें यह कामयाबी पतियों के नामों के कारण मिली थी, मगर इतना तो हुआ कि उन्होंने देश की संसद में राज्य की एक महिला जनप्रतिनिधि के तौर पर हिस्सा लिया.

पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शेख अब्दुल्ला की विधवा अकबर जहान बेगम 1984 तथा 1977 में संसदीय चुनावों के लिए मैदान में उतरी थीं और उन्होंने दोनों बार दो लाख से अधिक मत प्राप्त किये थे.

1977 के चुनावों में ही प्रथम बार कांग्रेस ने भी अपने एक नेता की विधवा पार्वती देवी को इसलिए मैदान में उतारा था कि नेशनल कांफ्रेंस ने भी महिला उम्मीदवार खड़ा किया था. एक को श्रीनगर और दूसरे को लद्दाख सीट से चुनाव में उतारा गया था. दोनोें जीत गयी थीं.

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी 2014 में अनंतनाग संसदीय सीट से प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या करीब पचास प्रतिशत है, पर चुनाव क्षेत्र में कदम रखने के लिए महिलाओं को उत्साहित नहीं किया जाता. सभी राजनीतिक दलों के महिला विंग बहुत कमजोर भी हैं.

जब चार महिलाएं जीत कर पहुंची थीं विधानसभा

1972 चुनावों में एक बार चार महिलाओं ने विधानसभा चुनावों में जीत का रिकाॅर्ड बनाया था. तब जैनब बेगम, हाजरा बेगम, शांता भारती और निर्मला देवी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंची थीं. वे सभी कांग्रेस की टिकट पर ही विधानसभा में पहुंची थीं, पर इस बार के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस भी महिलाओं पर भरोसा करती नहीं दिख रही. भाजपा भी उम्मीदवार बनाने के मामले महिला नेताओं को तरजीह नहीं दे रही है. गौरतलब है कि पार्टी के इस रवैये के खिलाफ भाजपा महिला विंग ने कई बार प्रदर्शन भी किया है.

हालात बदलने के लिए आवाज उठाती रही हैं महिला नेता

1996 व 2002 के विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में महिलाएं स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में मैदान में जरूर उतरी थीं. ये दो चुनाव ऐसे थे, जिनमें महिला उम्मीदवारों की संख्या एक रिकॉर्ड थी. उन्होंने ऐसा केवल इसलिए किया था, ताकि राजनीतिक दलों का ध्यान उनकी जाए और वे मानें की राज्य महिलाएं राजनीतिक तौर पर जागरूक हैं, विधानसभा में राज्य की नुमाइंदगी करना चाहती हैं और आतंकवाद से घबराने वाली नहीं हैं, मगर इस प्रयोग का ज्यादा असर नहीं हुआ. राजनीतिक दलों ने महिलाओं को चुनाव में उम्मीदवार बनाने के प्रति अपनी उदासीनता का त्याग नहीं किया.

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