नयी दिल्ली : देश के उद्योग एवं रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडिस ही वह शख्स थे जिन्होंने 1977 में विदेशी कंपनी कोका कोला को देश से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया था. इसके करीब ढाई दशक बाद उन्होंने सरकारी पेट्रोलियम कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल) को रिलायंस इंडस्ट्रीज और रॉयल डच शेल जैसी निजी कंपनियों के हाथों बेचने के खिलाफ आवाज बुलंद की थी.
समाजवादी नेता जाॅर्ज फर्नांडिस का मंगलवार को निधन हो गया. तेज-तर्रार ट्रेड यूनियन और समाजवादी नेता फर्नांडिस आपातकाल के बाद 1977 में बनी मोरारजी देसाई सरकार में उद्योग मंत्री थे. इस दौरान विदेशी मुद्रा विनियम अधिनियम (फेरा) के नियमों का पालन करने से मना करने पर उन्होंने कोका कोला के साथ आईबीएम को भारत से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया था. इसके तहत विदेशी कंपनियों को अपनी भारतीय सहयोगी कंपनियों में बहुलांश हिस्सेदारी को बेचना होता था. फर्नांडिस चाहते थे कि कोका-कोला न सिर्फ अपनी बहुलांश हिस्सेदारी का स्थानांतरण करे, बल्कि भारतीय शेयरधारकों को अपना फॉर्मूला भी दे. कंपनी शेयर स्थानांतरित करने के लिए तो तैयार थी, लेकिन फॉर्मूला देने के लिए नहीं, क्योंकि उसका तर्क था कि यह व्यापार से जुड़ी गोपनीय सूचना है.
सरकार ने कोका-कोला को पेय पदार्थों का आयात करने के लिए लाइसेंस देने से मना कर दिया था. जिसके चलते कंपनी को भारतीय बाजार छोड़ना पड़ा. इसके बाद फर्नांडिस ने इसकी जगह देसी ड्रिंक ’77’ पेश किया था. हालांकि, पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा उदारीकरण शुरू करने के बाद कोका-कोला ने अक्तूबर 1993 में फिर से भारतीय बाजार में वापसी की और तब से लेकर वह मजबूत पकड़ बनाये हुए है. इसके करीब ढाई दशक बाद 2002 में जॉर्ज फर्नांडिस ने एक बार फिर से आवाज बुलंद की. हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल) और भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) के निजीकरण का विरोध करने वालों में वह सबसे आगे थे. इस समय वह तत्कालीन वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री थे, लेकिन विनिवेश को लेकर अपने ‘मन की बात’ कहने से कभी नहीं कतराये. यही नहीं, उन्होंने तो यहां तक लिखा कि बेचने की नीति अमीर को और अमीर बनाने और एकाधिकार स्थापित करने के लिए है.
फर्नांडिस राजग के संयोजक भी रहे हैं. अक्सर गठबंधन के सहयोगी दल उनका इस्तेमाल वाजपेयी सरकार में विनिवेश मंत्री रहे अरुण शौरी पर हमला करने के लिए करते थे. कई सप्ताह चली राजनीतिक नूरा-कुश्ती के बाद वाजपेयी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि एचपीसीएल को बेच दिया जायेगा जबकि बीपीसीएल के विनिवेश को आगे बढ़ा दिया जाये. फर्नांडिस ने उस समय आग्रह किया कि एचपीसीएल के लिए शेल, सऊदी अरामको, रिलायंस, मलेशिया की पेट्रोनास, कुवैत पेट्रोलियम और एस्सार ऑयल के साथ-साथ सरकारी कंपनियों को भी बोली लगाने की अनुमति मिलनी चाहिए. शौरी ने उनके इस विचार का विरोध किया था. यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा. उच्चतम न्यायालय ने 16 सितंबर को फैसला दिया कि सरकार को एचपीसीएल और बीपीसीएल की बिक्री से पहले संसद की मंजूरी लेनी चाहिए. हालांकि, 2004 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे थे इसलिए सरकार ने इस मामले को संसद में ले जाने का जोखिम नहीं उठाया. हालांकि, यह अलग बात है कि राजग ने अपने दूसरे कार्यकाल में हिंदुस्तान पेट्रोलियम में सरकार की पूरी 51.11 प्रतिशत हिस्सेदारी को 2018 में ओएनजीसी को बेच दिया.