नासिक (महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र में नासिक की सत्र अदालत ने वर्ष 2004 में सामने आये करोड़ों रुपये के स्टांप पेपर घोटाले के एक मामले में ‘ठोस साक्ष्यों’ के अभाव में अब्दुल करीम तेलगी और सात अन्य को बरी कर दिया. तेलगी की पिछले साल मौत हो गयी थी.
तेलगी को घोटाले से संबंधित कई मामलों में दोषी ठहराया गया था और उसे कुल 30 साल की सजा दी गयी थी. सजा काटते हुए पिछले साल बेंगलुरु में उसकी मौत हो गयी थी. कई राज्यों तक फैले इस घोटाले के सरगना माने जानेवाले तेलगी के खिलाफ आरोपों को उसकी मौत के बाद हटा लिया गया था. जिला एवं सत्र न्यायाधीश, प्रथम श्रेणी पीआर देशमुख ने अपने आदेश में तेलगी और सात अन्य को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने नासिक की अदालत में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत तेलगी और अन्य के खिलाफ अगस्त 2004 में आरोपपत्र दायर किया था.
बचाव पक्ष के वकील एमवाई काले ने कहा कि सीबीआई ने दलील दी थी कि अधिकारियों और रेलवे सुरक्षाबल (आरपीएफ) के कांस्टेबलों समेत आरोपियों ने तेलगी के साथ सांठगांठ की और नासिक की भारतीय सुरक्षा प्रेस से नासिक रेलवे स्टेशन यार्ड में आये पेकैटों की सील तोड़कर स्टांप पेपरों को तेलगी को बेच दिया. ये स्टांप पेपर विभिन्न राज्य सरकारों के कोषागारों में भेजे जाने थे. काले ने बताया कि फरवरी 2015 में आठ आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किये गये. उन्होंने बताया कि सुनवाई के दौरान अदालत ने 49 गवाहों से पूछताछ की और न्यायाधीश ने ‘ठोस सबूतों’ के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया.
तेलगी के अलावा बरी किए गए अन्य आरोपियों में आरपीएफ अधिकारी रामभाऊ पवार, ब्रजकिशोर तिवारी, विलाचंद्र जोशी, ज्ञानेश्वर बर्क, प्रमोद दहागे, मोहम्मद सरवर और विलास मोरे शामिल हैं. इस बारे में तत्काल पुष्टि नहीं हो सकी है कि ये अधिकारी अब भी सेवा में हैं या सेवानिवृत्त हो गये हैं. मामले में सीबीआई की ओर से पेश हुए वकील ने पत्रकारों से बात नहीं की. तेलगी ने सरकारी अधिकारियों और सियासतदानों से सांठगांठ कर कथित रूप से स्टांप पेपर मुद्रित किये और इन्हें बैंकों, स्टॉक दलाल कंपनियों और बीमा कंपनियों को बेच दिया था.