अहमदाबाद : जेल में कैद स्वयंभू संत आसाराम के न्यास की 16 संपत्तियों पर ध्वस्त होने की कार्रवाई का खतरा मंडरा है. गुजरात के राजस्व विभाग ने कहा है कि वे गैर कृषि उपयोग के लिए भूमि को परिवर्तित किए बिना ही बनाए गए थे.
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बढ़ रही है आसाराम की मुश्किलें, 16 संपत्तियों को ध्वस्त करने का फैसला जल्द
अहमदाबाद : जेल में कैद स्वयंभू संत आसाराम के न्यास की 16 संपत्तियों पर ध्वस्त होने की कार्रवाई का खतरा मंडरा है. गुजरात के राजस्व विभाग ने कहा है कि वे गैर कृषि उपयोग के लिए भूमि को परिवर्तित किए बिना ही बनाए गए थे. इस महीने के शुरू में जारी राजस्व विभाग के आदेश […]
इस महीने के शुरू में जारी राजस्व विभाग के आदेश के बाद अहमदाबाद नगर निगम ने उसे ‘प्रभाव शुल्क’ देकर इन संपत्तियों को नियमित करने के लिए न्यास को दी गई सशर्त सहमति को आज निरस्त कर दिया और इनकों तोड़ने पर फैसला जल्द किया जाएगा. एएमसी के अधिकारियों ने कहा कि वह 12 रिहायशी और चार व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की किस्मत का फैसला जल्द करेंगे. इन का निर्माण आसाराम के न्यास ने कराया था.
साबरमती नदी के तट पर एक कुटिया में ध्यान से अपना सफर शुरू करने के बाद 10 हजार करोड़ रुपये का विशाल साम्राज्य खड़ा कर लेने वाले आसाराम की प्रतिष्ठा अब धूल-धूसरित हो गयी है. उसे अब अपयश भरा जीवन गुजारना पड़ेगा क्योंकि एक नाबालिग लड़की से बलात्कार मामले में आज उसे अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया. आसाराम का मूल नाम आसुमल सिरुमलानी था.
400 से अधिक आश्रम
अगर आकंड़ों की बात करें तो 1970 के दशक में साबरमती नदी के किनारे एक झोंपड़ी से शुरुआत करने से लेकर देश और दुनियाभर में 400 से अधिक आश्रम बनाने वाले आसाराम ने चार दशक में 10,000 करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा कर लिया. वर्ष 2013 के बलात्कार मामले में आसाराम की गिरफ्तारी के बाद यहां मोटेरा इलाके में उसके आश्रम से पुलिस द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों की जांच से खुलासा हुआ कि 77 वर्षीय आसाराम ने करीब 10,000 करोड़ रुपये की संपत्ति बना ली थी और इसमें उस जमीन की बाजार कीमत शामिल नहीं हैं जो उसके पास है.
आसाराम के समर्थकों की अब भी अच्छी खासी तादाद हो सकती है लेकिन बलात्कार के आरोपों के बाद उस पर जमीन हड़पने और अपने आश्रमों में काला जादू करने जैसे अन्य अपराधों के आरोप भी लगे. उसकी आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद वृत्तचित्र के अनुसार आसाराम का जन्म वर्ष 1941 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बेरानी गांव में हुआ था और उसका नाम आसुमल सिरुमलानी था.
वर्ष 1947 के विभाजन के बाद आसुमल अपने माता-पिता के साथ अहमदाबाद आया और वह मणिनगर इलाके में एक स्कूल में केवल चौथी कक्षा तक पढ़ा. उसे दस साल की उम्र में अपने पिता की मौत के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. वृत्तचित्र में दावा किया गया है कि युवावस्था में छिटपुट नौकरियां करने के बाद आसुमल ‘‘आध्यात्मिक खोज’ पर हिमालय की ओर निकन पड़ा जहां वह अपने गुरु लीलाशाह बापू से मिला. यही वह गुरु थे जिन्होंने 1964 में उसे ‘आसाराम’ नाम दिया. इसके बाद आसाराम अहमदाबाद आया और उसने मोटेरा इलाके के समीप साबरमती के किनारे तपस्या शुरू की. आध्यात्मिक गुरु के रूप में उसका असल सफर 1972 में शुरू हुआ जब उसने नदी के किनारे ‘मोक्ष कुटीर’ स्थापित की.
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