मेलबर्न : एक नये अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि दो पैरों पर खडा होना सीख लेने के कारण अन्य आदिम प्रजातियों की तुलना में मानव का मस्तिष्क अधिक जटिल विकसित हो सका. अध्ययनकर्ताओं ने कहा, हालांकि कई अन्य प्राणी सयाने होते हैं लेकिन मानव उनसे भी अधिक समझदार होते हैं. हम अन्य प्रजातियों की तुलना में इतना अलग कैसे सोचते और बर्ताव करते हैं.
एक बच्चे के पैरों पर खडे होकर चलना सीखने के दौरान अध्ययनकर्ताओं को एक नया सुझाव मिला. यह संयुक्त अध्ययन पत्र इस बच्चे के पिता और पितामह ने लिखा है. दोनों सिडनी विश्वविद्यालय में शिक्षाविद हैं.
पिता और पुत्र मैक एवं रिक शाइन ने सुझाव दिया है कि मानव और अन्य प्रजातियों में यह बडा भेद है कि हम अपने दैनन्दिन कार्यों में हमारे मस्तिष्क का उपयोग किस प्रकार करते हैं. उन्होंने इस विचार को प्रतिपादित किया है कि हमारे मस्तिष्क के सबसे विशिष्ट कारक कोरटेक्स (मस्तिष्क का बाहरी आवरण) की सूचनाओं के विश्लेषण की आश्चर्यजनक क्षमता का दोहन करने के मूल में यह बात हो सकती है कि इसे दैनन्दिन गतिविधियों के नियंत्रण के नीरस कार्य से मुक्ति दिलायी जा सकती है.
टाइलर शाइन की मौजूदा उम्र दो साल है. जब वह चलना सीख रहा था तो उसके पिता एवं पितामह ने यह बात गौर की कि टाइलर अपने हर कदम पर पूरा ध्यान देता था.बाद में जब पैदल चलना उसकी आदत में शुमार हो गया तो टाइलर ने उसके आसपास की अन्य चीजों पर ध्यान देना शुरु कर दिया. वह अपना संतुलन बनाने में माहिर हो गया जिसके चलने उसने अपना ध्यान शैतानी करने जैसे अन्य रुचिकर कामों में लगाना शुरु कर दिया.
अध्ययनकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि वह यह काम इसलिए कर पाया क्योंकि उसने अपने संतुलन के नियंत्रण को अपने मस्तिष्क के निचले हिस्सों में स्थानांतरित कर दिया. इससे उसका शक्तिशाली कोरटेक्स अप्रत्याशित चुनौतियों की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए मुक्त हो गया. इन चुनौतियों में जमीन पर बिखरे पडे खिलौनों के कारण फर्श का असमतल हो जाना शामिल था.